कला विविधताओं का प्रदर्शन ‘गमक’

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा श्री राजीव शर्मा (शर्मा बंधु) और साथी उज्जैन ने ‘भक्ति गायन’ एवं श्री शिव कुमार धुर्वे और साथी डिंडोरी द्वारा बैगा जनजातीय नृत्य ‘करमा एवं परघोनी’ की प्रस्तुति दी|
प्रस्तुति की शुरुआत शर्मा बन्धु द्वारा महाकवि संत तुलसीदास द्वारा रचित गणेश वंदना- ‘गाइये गणपति जग वंदन’ से हुई। पश्चात् डॉ.राजीव शर्मा द्वारा रचित –‘आते जाते, राम कहो’, भक्ति गीत- ‘हे दुख भंजन, मारुति नंदन’, मीरा का भजन –‘श्याम म्हने चाकर राखो जी’ एवं महाकाल भजन- ‘जप ले शिव शंभो का नाम’ आदि भक्ति गीत प्रस्तुत किये और नव वर्ष के लिए डा.राजीव शर्मा द्वारा रचित गीत अब न कोई दुख आए से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया।
शर्मा बंधू राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं, आपको हरिओम शरण भक्ति संगीत अवार्ड, मीरा सम्मान, मीरा कला संस्थान, उदयपुर राजस्थान एवं लता मंगेशकर अवार्ड, सुर सिंगार संसद, मुम्बई आदि कई सम्मान प्राप्त हैं।
मंच पर भजन गायन- पंडित राजीव शर्मा, मुकेश शर्मा, शैलेश शर्मा और मिथिलेश शर्मा तबले पर-अरूण कुशवाह, वायलिन पर- संजय झंवर, की बोर्ड पर- अभिषेक सिंह चौहान, बाँसुरी पर- विद्याधर आमटे एवं ऑक्टोपैड पर हरीश शेर ने संगत दी ।
दूसरी प्रस्तुति श्री शिव कुमार धुर्वे और साथियों द्वारा बैगा जनजातीय नृत्य ‘करमा एवं परघोनी’ की हुई-करमा नृत्य- बैगाओं का करमा नृत्य विजयादशमी से लगाकर वर्षा के प्रारम्भ तक चलता है। जब युवक मांदर पर थाप लगा देते हैं तो युवतियाँ घर से निकल जाती हैं और करमा नृत्य शुरू हो जाता है। करमा नृत्य रात भर चलता है। करमा नृत्य में पुरुष बीच में खड़े होकर माँदर बजाते हैं और गाते हैं, स्त्रियाँ उनके आसपास घेरे में कमर में हाथ रखकर नाचती हैं पैरों की मद्दम गतियों के साथ झुककर एक हाथ से हाव-भाव दिखाते हुए नाचती हैं, कहीं-कहीं पुरुष और स्रियाँ अलग पंक्तियों में नाचते हैं।
परघौनी विवाह नृत्य है, बारात की अगवानी में पुरुष विचित्र वेश-भूषा बनाकर हाथ में फरसा लेकर नाचते हैं। यह नृत्य नगाड़ो और टिमकी की ताल पर किया जाता है। जितना तेज नगाड़ा बजता है, पुरुष उतने ही उत्तेजित और तरह-तरह की मुद्राएँ बनाकर नाचते हैं। किलकारी देते हैं । इसी अवसर पर लड़के वालों की ओर से हाथी बनाकर आँगन में नचाया जाता है। नगाड़े बजते रहते हैं, हाथी पर बैठने वाला हाथों से तरह-तरह के हाव-भाव करता है। स्त्री-पुरुष खूब सज-धजकर इस नृत्य में हिस्सा लेते हैं।
प्रस्तुति में मंच पर- गायन में- अर्जुन सिंह धुर्वे और भागवती, मांदर पर- शिवलाल एवं गोरेलाल टिमकी पर- सम्मेलाल बाँसुरी पर- फागूराम एवं लखनलाल, सिधराम, राजेश कुमार, जोधा सिंह, कुंदिया बाई, संतोषी, मिथलेश एवं फूलवती ने नृत्य में संगत दी।
गतिविधियों का सजीव प्रसारण संग्रहालय के सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूट्यूब http://bit.ly/culturempYT और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/culturempbpl/live/ पर भी किया गया।

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