कला विविधताओं का प्रदर्शन ‘गमक’ अंतर्गत गोंड जनजातीय नृत्य ‘सैला एवं करमा’ की हुई प्रस्तुति

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा सुश्री उर्मिला पाण्डेय और साथी, छतरपुर द्वारा ‘बुन्देली गायन’ एवं श्री शिवचरण कुशराम और साथी, डिंडोरी द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य ‘सैला एवं करमा’ की प्रस्तुति हुई ।
प्रस्तुति की शुरुआत सुश्री उर्मिला पाण्डेय एवं साथियों द्वारा बुन्देली गायन से हुई- सुश्री पाण्डेय ने गायन की शुरुआत लगभग सौ वर्ष पुरानी माता की भगत ‘मैया नैन वान दुर्गे मार रही हो माँ’ उसके बाद ‘अब दिन आये बसन्ती नीरे लाल’, ‘महादेव बाबा बड़े रसिया रे’, ‘मोरी काये गौरा, बताओ गौरा’, ‘अरी ऐरी भोलानाथ, बारात सजी है’, ‘होरी खेलो आज मोरे नन्दलाला’, ‘अयोध्या से राम बना जी बन आये’ एवं ‘सखी भौंरा बड़ो बेईमान अंचरवा में लिपटो फिरे’ आदि बुन्देली गीत प्रस्तुत किये।
प्रस्तुति में मंच पर- सह गायन में- सुश्री अनामिका पाण्डेय एवं सुश्री विनीता पटैरिया ने और बाँसुरी पर- श्री रमाशंकर मिश्रा, ढोलक पर- श्री जीतेंद्र नागर, झींके पर- मुरारी लाल रैकवार एवं मजीरे पर- श्री राजेश तिवारी ने संगत दी।
श्रीमति उर्मिला पाण्डेय बचपन से ही संगीत से जुडी हैं, आपने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प. श्री कृष्ण कुमार शास्त्री एवं पं. श्री राम प्रसाद मिश्रा जी से प्राप्त की। बुन्देली लोकगीत, परिवार से विरासत में मिला, जिसे माँ श्री मति जानकी देवी जी ने तराशा, बाद में इस गायिकी की बारीकिया गुरू श्री जनार्दन खरे जी से सीखी। बी-म्यूज (संगीत प्रभाकर) की परीक्षा पास करने के उपरांत आपने अपना ध्यान बुन्देली लोकगीतों पर ही केन्द्रित कर लिया।
आप आकाशवाणी छतरपुर से वर्ष 1977 से लोक संगीत प्रस्तुत करती रहीं हैं। दूरदर्शन तथा कई निजी चैनलों पर लोक संगीत से लोक संगीत के कार्यक्रम प्रसारित होते रहे। आप बुन्देली लोकगीत की ‘ए’ ग्रेड कलाकार है आपको 1998 में छत्रसाल जयंती के अवसर पर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल डों भाई महावीर जी की गरिमामयी उपस्थिति में सम्मानित किया गया। ओरछा में केशव जयंती पर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह द्वारा आपको सरोज सुन्दरम पुरूस्कार से नवाजा गया।खरगापुर में भूतपूर्व संसदीय सचिग द्वारा कंठ कोकिला का खिताब दिया गया नागपुर में आयोजित लोक संगीत सभा में महामहिम राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया। आप देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं।
दूसरी प्रस्तुति श्री शिवचरण कुशराम एवं साथियों द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य ‘सैला एवं करमा’ की हुई।मंच पर श्री शिवचरण कुशराम के साथ श्री खुमान सिंह ने मादर, सतीश ने टिमकी, मुकेश ने गुदुम, रविकांत मार्को ने शहनाई वादन व सैला/ करमा नृत्य किया एवं बिहारी सिंह, पहलवान सिंह, गूहा सिंह, नाहर सिंह, दलवीर सिंह, देवन्ती मरावी, पूजा, कविता, लालवती, गंगोत्री एवं श्रीमति बजरी बाई ने- ‘तय ना ना मोर ना ना गा, नाय गोड़ बाजय पैयरी तोर’ गीत पर सैला और पानी गिरया झिम के, नागर फांदय मिलके गीत पर करमा नृत्य में सहभागिता निभाई।
सैला -सवा हाथ का डण्डा हाथ में लेकर नृत्य गीत करने के कारण इसका नाम सैला पड़ा है। गोण्ड जनजाति का दशहरा त्यौहार के बाद शरद चांदनी की रात में सैला रीना नृत्य गीत के साथ सम्पन्न होता हैं और दीपावली के दिन गांव में सामूहिक रूप से एकत्र हो कर सैला रीना नृत्य गीत करते है। जब कभी किसी दूसरे गाँव के प्रमुख व्यक्ति के विशेष आमंत्रण पर गांव के महिला एवं पुरूष सज-धज कर अपना सांस्कृतिक दल ले कर एक गांव से दूसरे गांव में जा कर सैला -रीना नृत्य गीत करते है। मेजवान गाव इस दल का खूब आदर-सत्कार करता है एवं समापन पर गौ का दान टीका लेकर आशीष लेता है।
करमा नृत्य- कर्म की प्रेरणा देने वाला यह नृत्य-गीत एक श्रृंगारिक नृत्य है। मादल वाद्य की थाप व ताल: टिमकी वाद्य की तेजस्वी ध्वनि में चार चांद लगाते हैं।गोड जन जाति भादों माह के शुक्ल पक्ष में अपने इष्ट देव, कुल देव, बड़ा देव एवं अन्य देवी-देवताओं की पूजा कर नवा खाते हैं। नवा खाने के बाद से ही करमा गीत होते हैं एवं कहीं से गांव में महिला मेहमान के आने पर गांव के युवक युवती उसे ले कर करमा नृत्य गीत का आयोजन करते हैं।
गतिविधियों का सजीव प्रसारण संग्रहालय के सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूट्यूब
http://bit.ly/culturempYT और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/culturempbpl/live/ पर भी किया गया।

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