भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा सुश्री दीपा श्रीवास्तव और साथी भोपाल द्वारा ‘बुन्देली गायन’ एवं सुश्री पायल सेन और साथी सागर द्वरा ‘नौरता’ लोकनृत्य की प्रस्तुति हुई|
प्रस्तुति की शुरुआत सुश्री दीपा श्रीवास्तव एवं साथियों द्वारा बुन्देली लोक गायन से हुई, उन्होंने अपने गायन में सर्व प्रथम गणपति भजन- गौरा के गणपति गणेश गजानन कहाए, उसके पश्चात सोहर गीत – सखी भौरा बढ़ो बेईमान, सखी आए दो राजकुमार बाग मिथिलापुर में, मंडप गीत- आज मंडप अती सुंदर ना जाने कोन गुना, ठांडे बबूल मोरे सोच करत हैं कहना बसाऊं बरात सखी जू, दादरा गीत- हल्के सैया खबर उन्हें नैयां, दादरा गीत- सैयां ले दे कर्धनिया, हमको जोगनिया बना गए अपन जोगी हो गए राजा एवं फाग- में तो खेलू ना तुमाए संग फाग सांवरे बहुत करत तुम बरजोरी आदि गीत प्रस्तुत किये|
मंच पर मुख्य गायिका- सुश्री दीपा श्रीवास्तव, कोरस में- सुश्री नंदिनी श्रीवास्तव और सुश्री काजल पाल| ऑर्गन पर- श्री मुकेश तिवारी, ढोलक पर- श्री दुष्यंत कुमार एवं ऑक्टोपैड पर- श्री सुमित ने संगत दी|
सुश्री दीपा श्रीवास्तव विगत पंद्रह वर्षों से गायन के क्षेत्र में सक्रिय हैं, आपने उस्ताद सलीम अल्लाह वाले से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की, आप देश के कई बड़े मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं| आपको भारत सरकार द्वारा ‘बुन्देलखंडी लोकगीतों की विषयवस्तु एवं उसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण” विषय पर संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की आउटस्टैंडिंग पर्सन इन द फील्ड ऑफ़ कल्चर सीनियर फैलोशिप प्राप्त है|
दूसरी प्रस्तुति सुश्री पायल सेन और साथियों द्वारा बुन्देलखण्ड के नौरता लोकनृत्य की हुई जिसमें ढोलक पर- श्री सोहित सेन, टिमकी व लोटा- श्री गौतम ऋषि, मृदंग पर- श्री राजकुमार, ढपला पर- श्री वैजनाथ धानक, बाँसुरी- श्री प्रिंस यादव एवं मंगल यादव ने रमतूला वादन में संगत की|
नौरता नृत्य कुँवारी कन्याओं द्वारा नवरात्री के समय किया जाने वाला नृत्य है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में सुआटा नाम का राक्षस कुवारी कन्याओं का वध करके ले जाता था तब देवी को प्रसन्न करने के लिए कन्याओं ने उनकी आराघना की देवी ने राक्षस का वध किया, तब से कुँवारी कन्याएँ यह नृत्य करती हैं और अच्छे जीवन साथी की प्राप्ति की कामना भी करती हैं। इस नृत्य में वादन में ढपला, नगड़िया, लोटा, ढोलक, बाँसुरी आदि लोक वादयों का उपयोग किया जाता है।