‘गमक’ अंतर्गत ‘कबीर गायन’,‘परघौनी एवं करमा’ की प्रस्तुति हुई

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित कला विविधताओं के प्रदर्शन की श्रृंखला ‘गमक’ के अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा श्री बाबूलाल धोलपुरे और साथी, शाजापुर द्वारा मालवी शैली में ‘कबीर गायन’ एवं श्री आशीष धुर्वे और साथी, डिंडोरी द्वारा बैगा जनजातीय नृत्य ‘परघौनी एवं करमा’ की प्रस्तुति हुई।
श्री बाबूलाल धोलपुरे और साथियों द्वारा कबीर गायन की शुरुआत गुरुवंदना- भजो गुराजी को नाम परम सुखकारी से हुई उसके बाद गुरूजी सरीका देव हमारे मन भावे, चालो हो गुरा जी का देश में, वारियो म्हारो लहरयो रंग रंगीलो, दुनिया दारी अवगुण हरिजन भेद मत कीजारी एवं पानी में मीन चली आई आदि कबीर पद प्रस्तुत किये।
मंच पर- सहगायन- श्री दिनेश अहिरवार, मजीरा पर- राजेश कुमार, हारमोनियम पर- अशोक रामलाल, ढोलक पर- विनोद कुमार, करताल पर- बाबूलाल भागीरथ एवं खंजरी पर- गणेश निमोरी ने संगत दी।
श्री धोलपुरे ने पंद्रह वर्ष की आयु से गायन करते आ रहे हैं, आपने संगीत की शिक्षा अपने पिता श्री घासीराम धोलपुरे से प्राप्त की, आप देश के कई बड़े मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं।
दूसरी प्रस्तुति श्री आशीष धुर्वे एवं साथियों द्वारा बैगा जनजातीय नृत्य ‘परघौनी एवं करमा’ की हुई- प्रस्तुति में मांदर वादन- श्री दयाराम एवं श्री घासीराम ने और टिमकी वादन- श्री अमरसिंह ने किया तथा लालसिंह, सुग्रीव सिंह, सुकल सिंह, अशोक कुमार, सतलू सिंह, कृपाराम, अंजली, फूलवती, सुक्वती, सोनवती और प्रेमवती ने नृत्य में सभागिता निभाई।
परघौनी- परघौनी एक विवाह नृत्य है, बारात की अगवानी में पुरुष विशेष वेश-भूषा बनाकर हाथ में फरसा लेकर नाचते हैं। यह नृत्य नगाड़ो और टिमकी की ताल पर किया जाता है। जितना तेज नगाड़ा बजता है, पुरुष उतने ही उत्तेजित और तरह-तरह की मुद्राएँ बनाकर नाचते हैं। किलकारी देते हैं । इसी अवसर पर लड़के वालों की ओर से हाथी बनाकर आँगन में नचाया जाता है। नगाड़े बजते रहते हैं, हाथी पर बैठने वाला हाथों से तरह-तरह के हाव-भाव करता है। हाथी बनाकर नचाने का अनुष्ठान प्रसन्नता की अभिव्यक्ति भी करता है। स्त्री-पुरुष खूब सज-धजकर इस नृत्य में हिस्सा लेते हैं।
करमा नृत्य में बैगा अपने ‘कर्म’ को नृत्य-गीत के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं, इसी कारण इस नृत्य-गीत को करमा कहा जाता है। विजयादशमी से वर्षा के प्रारंभ होने तक चलने वाला यह नृत्य बैगा युवक-युवतियाँ टोली बनाकर एक दूसरे के गाँव जा जाकर करते हैं।

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