‘गमक’ अंतर्गत ‘तेजा जी कथा गायन’ तथा जनजातीय नृत्य ‘भगोरिया’ की प्रस्तुति हुई

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा श्री हरिश्चंद्र दुबे और साथी, सिंगरोली द्वारा ‘बघेली गायन’ एवं श्री शैलेन्द्र मंडोड़ और साथी, द्वारा ‘तेजा जी कथा गायन’ एवं भील जनजातीय नृत्य ‘भगोरिया’ की प्रस्तुति हुई।
प्रस्तुति की शुरुआत श्री हरिश्चंद्र दुबे और साथियों द्वारा बगेली गायन से हुई- प्रस्तुति की शुरुआत तिलक गीत- राजा दशरथ फूले ना समय से हुई उसके बाद सोहाग गीत- आवा चलो सखियाँ शिव शंकर जी के मंदिर, बुन्देली कजरी- वर्षा है पनिया छिटक रही, दादरा- जरे भिनुसारे क निंदिया के मारे एवं बनरा- सात सीक क पिंजरवा हो आदि बघेली गीत प्रस्तुत किये।
मंच पर कीबोर्ड एवं गायन- श्री लल्लू प्रसाद वर्मा, सह गायन – सुश्री रागिनी कुशवाहा व चंद्रकांत पाण्डे, झालर पर- श्री नीरज कुमार पांडे, ऑक्टोपैड पर- श्री धीरज कुमार पांडे एवं नाल पर- श्री विशिष्ट जायसवाल ने संगत दी।
श्री हरिश्चंद्र दुबे विगत दस वर्षों से संगीत से जुड़े हुए हैं और आप कई बड़े मंचों पर अपनी प्रस्तुती दे चुके हैं।
दूसरी प्रस्तुई श्री शैलेन्द्र मंडोड़ और साथियों द्वारा ‘तेजा जी कथा गायन’ एवं भील जनजातीय नृत्य ‘भगोरिया’ की प्रस्तुति हुई।
तेजाजी आदिवासी समुदाय के लोकदेवता माने जाते हैं, तेजाजी की कथा में आज उनकी धर्म बहन जो की एक ग्वालन है, मेनिया चोर उनकी मवेशी चुरा लेता है, जब तेजाजी को पता चलता है कि उनकी बहन की मवेशी मेनिया चोर ने चुरा ली है, वो उसको छुडाने जाते हैं। रास्ते में उनका पैर एक नाग की पूंछ पर पड़ जाता है, नाग उनको डसने लगता है तो तेजेजी उससे आग्रह करते हैं कि वो बहुत आवश्यक कार्य से जा रहे है कार्य को समाप्त करते ही तुम्हारे पास वापिस आऊंगा। मेनिया चोर से युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात् अपना वचन निभाने नाग की मांद पर पहुँचते हैं और अपना वचन पूरा करते हैं।
प्रस्तुति में श्री बालु वसुनीय, इंदुसिंह, विनोद, दल्लू, रत्तु, राजू एवं धनजी कटारा ने अभिनय किया एवं ढोलक पर- कालू डोडियार, ईश्वर गुन्डिया, झांझ/ मंजीरा पर- दल्लू, इंदुसिंह, धनंजी, विनोद, सुगना, जमना, सुनीता ने संगत दी। परिकल्पना- शैलेन्द्र मंडोड़ की थी।
भगोरिया नृत्य- भील जनजाति का पारंपरिक नृत्य है। फागुन मास में होली के सात दिन पूर्व से आयोजित होने वाले हाटों में पूरे उत्साह और उमंग के साथ भील युवक एवं युवतियों द्वारा पारंपरिक रंग-बिरंगे वस्त्र, आभूषण के साथ नृत्य किया जाता है। फसल कटाई के पश्चात् वर्षभर के भरण-पोषण के लिए समुदाय इन हाटों में आता है। भगोरिया नृत्य में विविध पदचाप समूहन पाली, चक्रीपाली तथा पिरामिड नृत्य मुद्राएँ आकर्षण का केंद्र होती हैं। रंग-बिरंगी वेशभूषा में सजी-धजी युवतियों का श्रृंगार और हाथ में तीरकमान लेकर नाचना ठेठ पारंपरिक व अलौकिक संरचना है।
गतिविधियों का सजीव प्रसारण संग्रहालय के सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूट्यूब
https://bit.ly/3c0mifU और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/culturempbpl/live/ पर भी किया गया।

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