छत्तीसगढ़ में रहने वाली माड़िया जनजाति का एक स्मृति स्तंभ – सप्ताह के प्रादर्श

इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा कोरोना वायरस (कोविड-19) के प्रभाव से उत्पन्न कठिन चुनौतिपूर्ण समय में जनता को संग्रहालय से ऑनलाइन के माध्यम से जोड़ने एवं उन्हें संग्रहालय के ऐतिहासिक, प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के बारे में गहरी समझ को बढ़ावा देने के उद्देश से शरू की गई नवीन श्रृंखला ‘सप्ताह का प्रादर्श’ के अंतर्गत इस माह के अंतिम सप्ताह के प्रादर्श के रूप में ‘मुंडा’, बस्तर, छत्तीसगढ़ में रहने वाली माड़िया जनजाति का एक स्मृति स्तंभ को दर्शकों के मध्य प्रदर्शित किया गया। दर्शक इस का अवलोकन मानव संग्रहालय की अधिकृत साईट (https://igrms.com/wordpress/?page_id=272) एवं फेसबुक (www.facebook.com/onlineIGRMS) के माध्यम से घर बैठे कर सकते हैं।

‘मुंडा’ यह सागौन की ठोस लकड़ी के एक ही आयताकार टुकड़े से बना है, इसकी ऊंचाई लगभग 12 फीट है। इसमें चारो तरफ नक्काशीदार सुंदर अलंकरण है। स्तंभ के ऊपरी भाग में दो छोटी गुंबद जैसी संरचनाएं हैं। स्तंभ के एक तरफ पक्षियों और जानवरों की आकृतियां हैं तो दूसरी तरफ कृषि और आर्थिक गतिविधियों को जुताई और भार ढोने आदि दृश्यों के माध्यम से दिखाया गया है। स्तंभ के तीसरी तरफ लोगों के वैवाहिक और यौन जीवन का विवरण है, जबकि चौथे में नृत्य स्वरूपों और ढोल वादकों की प्रतिनिधि आकृतियों के साथ उत्सवों के उत्साह को दर्शाया गया है।

यह स्तंभ सामुदायिक भावनाओं की अभिव्यक्तियों का प्रतीक है। इसे 1962 में बस्तर के एक गाँव में एक राजनीतिक शख्सियत की स्मृति में बनवाया गया था। अब इस तरह के काष्ठ स्तंभों का स्थान धीरे-धीरे पत्थर या कंक्रीट की संरचनाओं ने ले लिया है।

संग्रहालय के निदेशक डॉ पी के मिश्र ने बताया की इस श्रृंखला का मुख्य उद्देश्य पारंपरिक जीवन शैली की सौंदर्यात्मक विशेषताओं, स्थानीय ज्ञान और संस्कृति की आधुनिक समाज के साथ निरंतर प्रासंगिकता को उजागर करना है।

            

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