नवें स्थापना दिवस समारोह में गायन एवं नृत्य प्रस्तुतियां हुईं

भोपाल। जनजातीय जीवन, देशज ज्ञान परम्परा एवं सौन्दर्यबोध पर एकाग्र स्थापित मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय का नौवाँ स्थापना दिवस समारोह 6 से  10 जून,2022 तक आयोजित किया जा रहा है। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र – नागपुर,  उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र- प्रयागराज के सहयोग से आयोजित पाँच दिवसीय इस प्रतिष्ठा पूर्ण समारोह में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत  अलग-अलग प्रदेशों के लोक एवं जनजातीय नृत्य, संगीत, चित्र प्रदर्शनी, शिल्प मेला और उल्लास के अंतर्गत कठपुतली प्रदर्शन संयोजित किया गया है। समारोह में निदेशक जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे द्वारा समारोह में आये कलाकारों का स्वागत किया गया। साथ ही समारोह के अंतर्गत  संग्रहालय में कला यात्रा भी निकाली गई।

स्थापना दिवस समारोह में प्रतिदिन दोपहर 12 बजे से कोरकू, गोण्ड, भील, बैगा समुदाय के पारंपरिक देशज व्यंजन जनसामान्य के लिये सुलभ है। बीते तीन दिनों में लोगों ने जनजातीय व्यंजनों का लुत्फ उठाया और स्वाद की भूरी-भूरी प्रशंसा की। कोरकू समुदाय के व्यंजन को तैयार कर रहे श्री मंशाराम अखंडे, हरदा ने बताया कि उनके यहां सदियों से सुबह नाश्ते में महुआ का लड्डू खाया जाता है। इस लड्डू को वर्षा ऋतु में खाया जाता है। उन्होंने बताया कि किसान धान की बोबाई करने के लिये जाने से पहले यह लड्डू घर से खाकर जाता था जिससे उसे भूख पारंपरिक देशज व्यंजन में कोदो, कुदई, कुटकी, बांस की सब्जी, राई की भाजी, दाल, पानिया ,बड़ा सूखा, गेंहूं पान रोटी एवं अन्य व्यंजन उपलब्ध है।  

शिल्प मेले में बाग, मिट्टी, बांस, पीतल, कॉटन के बने उत्पाद का भी प्रदर्शन किया गया है। मेले में आये श्री दिनेश चंद्र झरिया, नीमच ने बताया कि वे नांदना प्रिंट के कारीगर हैं और वे 7वीं पीढ़ी हैं जो इस काम को कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले के समय में पूरा गाँव इस कार्य को करता था लेकिन समय के साथ अब इस काम को करने वालों की संख्या कम हो गई है और लोग दूसरे काम करने लगे हैं। इस प्रिंट का इतिहास 500 साल है जिसमें डांबर और बटेजा से प्रिंट किया जाता है। 16 अलग-अलग प्रक्रिया करने के बाद 45 दिन में एक साड़ी तैयार होती है और झाबुआ, अलीराजपुर में आज भी नांदना के बिना विवाह संपन्न नहीं होता है।

मेले में पीतल से बने उत्पाद प्रदर्शन कर रहे श्री विजय साकरे, बैतूल ने बताया कि पीतल की कारीगरी उन्होंने अपने पिता से सीखी है। पढ़ाई करने के साथ घर में परिवार के सदस्यों को कार्य करते देखा और वे आज पीतल के साथ सफेद पीतल पर कार्य करने लगे हैं। 4 साल से इस कार्य को वे निरंतर कर कर रहे हैं। पीतल के उत्पाद को बनाने के लिए इसमें मधुमक्खी के छत्ते से प्राप्त मोम का इस्तेमाल करते हैं और मोम से अलग अलग आकृतियां दे कर उत्पाद को तैयार किया जाता है। वे इस काम को करने वाली चौथी पीढ़ी हैं।

इस अवसर पर संग्रहालय में 6 से 30 जून, 2022 तक गोण्ड जनजातीय चित्रकार पद्मश्री सुश्री दुर्गा बाई के चित्रों की प्रदर्शनी शलाका भी आयोजित की गई है। उनके चित्रों में ग्रामीण जीवन, महुआ वृक्ष तले वन्य जीव, लकड़हारा एवं देवी पूजन, मेढ़क परिवार, हिरण एवं वृक्ष, ,सुवा गीत, लकड़ी ले जाते ग्रामीण, हाथी सवार, वृक्ष तले गाय, खेत जोतते किसान परिवार, राजा रानी एवं सुनेला घोड़े की कथा और अन्य कई विषय देखने को मिलते हैं। प्रदर्शनी में उनके द्वारा बनाये 26 चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। उल्लास के अंतर्गत 2 बजे से कलाकार श्री दिलीप भट्ट द्वारा कठपुतली कला में छोटी-छोटी कथाएं प्रस्तुत की गईं। सायं 7 बजे से नृत्य एवं अन्य गतिविधियों का प्रदर्शन हुआ।

समारोह में सायं प्रस्तुति में सुश्री संगीता कपिल एवं साथी, भोपाल द्वारा निमाड़ी गायन की प्रस्तुति दी गई। उन्होंने गणेश वंदना- नया जमाना की गाड़ी गजानंद घेर गाड़ी…, मेहंदी गीत- लागी-लागी गौरी थ्यारा हाथ…, जल्दी करीलला वजार उठई जायेरे…, एक अरज म्हारी सुनो रे भोले जी…, विति गई रे श्रावण की रात…, काका मत बोलो …, म्हारी सासू ना लिपयो अंगनो…, जल भरू की डूबी मरी जाऊं…, गीतों की प्रस्तुति दी।   इनके साथ मंच पर सह- गायन में सुश्री लता कनाड़े, सुश्री सरिता मोहे, ढोलक पर रघुवीर सिंह , हारोमनियम पर जितेंद्र शर्मा,  ऑक्टोपेड पर श्री धीरेंद्र कुमार रेकवार ने प्रस्तुति दी।

समारोह के अगले क्रम में पोमई नागा जनजातीय नृत्य-मणिपुर, मीजो जनजातीय नृत्य-मिजोरम, गोण्ड करमा-मध्यप्रदेश, तारपा नृत्य-महाराष्ट्र, करमा-उत्तरप्रदेश, गरासिया-राजस्थान, भारिया भड़म-मध्यप्रदेश, थारू नृत्य-उत्तरांचल, करमा-बिहार , माथुरी नृत्य-तेलंगाना , सौंगीमुखौटा-महाराष्ट्र , ढोलूकुनिथा-कर्नाटक की प्रस्तुतियां दी गईं। इसमें बिहार से आये जनजातीय दल द्वारा करमा की प्रस्तुति दी गई, यह नृत्य अच्छी फसल की कामना के लिये  किया जाता है। कर्नाटक ढोलूकुनिथा नृत्य दल ने अपनी परंपरा का प्रदर्शन किया। यह नृत्य बकरी चराने वाले पुरूष द्वारा किया जाता था लेकिन  25 साल पहले महिलाओं का दल बनाया गया, यह कर्नाटक का एक मात्र महिला दल है जो ढोलूकुनिथा नृत्य की प्रस्तुति दे रहा है। राजस्थान से आये जनजातीय कलाकारों ने गरासिया नृत्य की प्रस्तुति दी। यह नृत्य समुदाय में एकत्रित होकर, त्योहार, खुशी अवसर पर करते हैं।

समारोह में 9 जून को सुश्री दीपा श्रीवास्तव एवं साथी, भोपाल द्वारा बुन्देली गायन एवं मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, उत्तराखण्ड, राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड और उड़ीसा के जनजातीय नृत्यों की प्रस्तुति दी जायेगी।

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