सूचनाओं की भरमार से निकालना होगा अपने सरोकार का मैटेरियल

कानपुर। थिएटर में जो भी कार्य करें पूरी शिद्दत, पूरी खूबसूरती से करें। अच्छी कहानियां, नाटक आज भी लिखे जा रहे हैं मगर आज सूचनाओं की भरमार के बीच आपको अपने सरोकार का मैटेरियल तलाशना होगा। यह बात आज अनुकृति रंगमंडल द्वारा आयोजित ऑनलाइन वेबिनार में वरिष्ठ नाटककार, निदेशक कथक केन्द्र और उपसचिव ड्रामा संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली श्री सुमन कुमार ने कही।
सुमन जी ने अपने बचपन के बारे बताया कि छोटा था तब रामलीला देखने का बहुत शौक था इस दौरान नाटक करने की जिज्ञासा बढ़ गई। काफी मेहनत के बाद एक पुलिस वाले का किरदार निभाने का मौका मिला, बहुत मेहनत की लेकिन बाद में उन्हें डांट खानी पड़ी और मुझे अपनी गलतियां सुधारने का मौका मिला। इस कार्यशाला के दौरान उन्होंने बताया अपने पहले नाटक में डायलॉग बोलते समय दर्शकों के सामने पीठ रखी, बाद में पता चला कि हम जब भी डायलॉग बोले तो हमारा चेहरा दर्शकों के सामने रहना चाहिए।
सुमन जी ने बताया कि रेडियो में समाचार वाचक का काम किया। समाचार पत्र में पत्रकारिता भी की। जिसमें इन्होंने कई समाचारों का संपादन किया। वर्षों के मशक्कत के बाद एन.एस.डी में दाखिले के लिए अप्लाई किया लेकिन नतीजा सिफर रहा। चौथे प्रयास में दाखिला मिल सका, जहां इन्होंने बहुत कुछ सीखा।
उन्होंने बताया की पटना इप्टा में जावेद अख्तर के साथ दूरदेशी जैसे नाटकों का निर्देशन किया। हरिशंकर परसाई जी की कहानी पर नाटक दस दिन का अनशन लिखा। साथ ही अंग्रेजी नाटकों का अनुवाद तथा निर्देशित भी किया। एन.एस.डी में कई वर्कशॉप कीं। उन्होंने कहा कि नाटककार, लेखकों को सम्मान देना चाहिए और यथासंभव पैसे भी, कई बार उनको पैसे नहीं मिलते हैं।
सुमन जी को लंदन मे डिजाइनिंग और बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। इनको लिखने और पढ़ने में इतनी जिज्ञासा थी की पॉकेट में जब भी पैसे होते तब लाइब्रेरी में किसी नए नाटक की खोज में निकल पड़ते थे। उन्होंने बताया कि रंगमंच एक समकालीन कला है इसमें कोई यह नहीं कह सकता कि हम को सब आता है क्योंकि हमें हर मोड़ पर कुछ ना कुछ नया सीखने को मिलता रहता है। आज हम जो चाहे वह सीख सकते हैं इंटरनेट के द्वारा लेकिन जब तक हम उसे प्रैक्टिकली नहीं करेंगे तब तक वह सीखना हमारे लिए बेकार है, इन्होंने बताया किस बदलते दौर में हमें रोज कुछ ना कुछ नया सीखते रहना चाहिए जिससे हमें नया अनुभव मिले और दुनिया के साथ कदम पर कदम बढ़ाते रहें।
पूजा जी ने भी अपना प्रश्न सुमन जी के सामने रखा और पूछा जिस समय आप लिखते थे और जो आज का समय है उसके लेखन में क्या परिवर्तन हुआ है क्योंकि पहले के समय में जो लिखा जाता था उसे पढ़ने का अपना ही एक अंदाज था, जो आज कहीं खोया-खोया नजर आता है।
वेबिनार का संचालन कर रहे अनुकृति रंगमंडल कानपुर के सचिव डा. ओमेन्द्र कुमार ने सवाल किया कि प्रशिक्षण रंगकर्मियों के लिए कितना जरूरी है। इस पर सुमध जी ने कहा कि खुद को अपडेट करने और वर्तमान संदर्भों से जुड़ने के लिए प्रशिक्षण या वर्कशॉप अटेंड करनी चाहिए।
वेबिनार में रंगकर्मी जौली घोष, सुरेश श्रीवास्तव, महेन्द्र धुरिया, लीलाधर जोशी (दिल्ली), दिशा वर्मा, पूजा श्रीवास्तव, कैलाश बाजपेयी, दीपिका सिंह, शुभी मेहरोत्रा, नीलू सिंह, विजय भास्कर, कमल गौतम, शुभम भदौरिया, साहिल शेरगिल, यश वर्मा, शिवेन्द्र त्रिवेदी, आरती शुक्ला, दिनेश कुमार, समेत कई लोग मौजूद रहे।

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