*राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस – सांख्य अर्थात् गिनाने वाला शास्त्र, योग में अनुसंधान विधियाँ एवं सांख्यिकी का महत्व , सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक उपयोगिता – योग गुरु महेश अग्रवाल*

आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी ऑनलाइन  एवं प्रत्यक्ष माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है । योग प्रशिक्षण के दौरान केंद्र पर सभी समाज की जयंती, महापुरुषों की जयंती, सभी धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय पर्व उत्साह पूर्वक मनाये जाते है, स्वच्छता, नशामुक्ति वृक्षारोपण, पर्यावरण, शिक्षा, खेलकूद जैसे विषय पर जागरूकता अभियान एवं सभी राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय दिवस का महत्व एवं जीवन में उपयोगिता बताते हुए साधकों को स्वस्थ रहते हुए सेवा कार्य करते रहने के लिए प्रेरित किया जाता है ।
राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस के अवसर पर योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि सांख्य अर्थात् गिनाने वाला शास्त्र, सांख्यिकी एक गणितीय विज्ञान है जिसमें किसी वस्तु/अवयव/तंत्र/समुदाय से सम्बन्धित आकड़ों का संग्रह, विश्लेषण, व्याख्या या स्पष्टीकरण और प्रस्तुति की जाती है।सामाजिक-आर्थिक नियोजन और नीति निर्माण में आंकड़ों की काफी अहमियत होती है. इनके बगैर कोई भी बड़ा सर्वेक्षण, रिसर्च और मूल्यांकन पूरा नहीं किया जा सकता। इसलिए सांख्यिकी के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रत्येक वर्ष 29 जून को राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य रोजमर्रा की जिंदगी में और योजना एवं विकास की प्रक्रिया में सांख्यिकी के महत्त्व के प्रति लोगों को जागरूक करना है ।  यह दिवस प्रसिद्ध सांख्यिकीविद् प्रो. प्रशांत चंद्र महालनोबिस की जयंती पर मनाया जाता है।अपने जीवन में हम सभी विभिन्न अखबारों, पत्रिकाओं में इंटरनेट, विभिन्न टीवी एवं रेडियो चैनलों आदि पर विज्ञान, वैज्ञानिक एवं उनसे संबंधित आविष्कार, खोज, अन्वेषण सिद्धान्त, आदि शब्दों के बारे में सुनते रहते हैं एवं हमारे मनों में सहज ही ये जिज्ञासा होती हैं कि के ये कार्य किस प्रकार संभव होते हैं एवं इनके होने की प्रक्रिया क्या है? दूसरे शब्दों में कहें तो आज हमारे सामने नित्य ही नयी नयी वस्तुयें निर्मित होकर आती रहती हैं एवं उन्हें उपयोग कर लेने के अलावा उनके बारे में हम कुछ नहीं जान पाते हैं, पर जब भी हम इनकी कार्य प्रक्रिया की ओर अपना ध्यान आकर्षित करते हैं, हम आश्चर्य चकित रह जाते हैं कि इसके निर्माण के पीछे कितना श्रम, समय, एवं धन लगाया गया होगा, तथा हम यह सोचने लगते हैं कि इस आश्चर्य जनक कृति के निर्माण में कितना बौद्धिक कौशल लगाया गया होगा, बुद्धि द्वारा कैसा ताना बाना बुना गया होगा। हमारे शिक्षक इस बौद्धिक कौशल एवं बुद्धि के ताने-बाने को विज्ञान का विषय मानते हैं। इस प्रकार के सभी कार्यों को विज्ञान की उपज माना जाता है एवं इसे क्रियान्वित करने वालों को वैज्ञानिक कहा जाता है। भौतिकी के क्षेत्र में इस प्रकार का कार्य करने वालों को भौतिक विज्ञानी, रसायनों के क्षेत्र में रसायन विज्ञानी, जीव-जन्तु से संबंधित क्षेत्र में जीवविज्ञानी एवं जन्तु विज्ञानी कहा जाता है। इसी प्रकार मनोविज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने वाले को मनोवैज्ञानिक कहते हैं। ज्ञान के किसी भी क्षेत्र के वैज्ञानिक हों उन सभी के इस प्रकार के कार्यों के पीछे एक व्यवस्थित प्रक्रिया काम करती है। इस प्रक्रिया को ही अनुसंधान, शोध, एवं रिसर्च की संज्ञा दी जाती है। इस प्रक्रिया को जान लेने के बाद इसका उपयोग योग के क्षेत्र में अर्थात् योग विषय से संबंधित विभिन्न प्रकार की सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक समस्याओं को सुलझाने एवं उनका हल ढूँढ़ने में कर सकते हैं।
योग विषय में अनुसंधान की आवश्यकता को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
(1) योग विषय अत्यंग ही गूढ एवं गंभीर है। इसमें मनुष्य के समस्त दुखों को दूर करने के उपायों का वर्णन सूत्र रूप में किया गया है। ये सूत्र कूट भाषा के रूप में हैं। इन सूत्रों में उल्लिखित शब्दों में अन्तर्निहित भावों को यदि ठीक-ठीक स्पष्ट किया जा सके तो अत्यंत ही महत्वपूर्ण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। (2) योग जीवन का उद्देश्य भी है एवं प्रक्रिया भी इस जीवन उद्देश्य न भी प्राप्त किया जा सके तो भी इसकी प्रक्रिया को जीवन में अपनाने से व्यक्तित्व की कई क्षमतायें जाग्रत हो सकती हैं। अतएव परिणाम न सही प्रक्रिया पर अनुसंधान किये जाने से व्यक्तित्व विकास एवं परिष्कार की कई प्रविधियाँ उपलब्ध हो सकती हैं। एवं उनकी प्रभावशीलता को जाँचा जा सकता है। (3) योग बच्चे, वयस्क, वृद्ध एवं महिलाओं सभी के द्वारा अभ्यास किये जाने योग्य हैं। क्योंकि इसमें सभी द्वारा अभ्यास किये जाने योग्य कुछ न कुछ है एवं इसका उद्देश्य ही चेतना का परिष्कार एंव चित्त की वृत्तियों का निरोध है। इसमें वर्णित समस्त विधियों इसी लक्ष्य की प्राप्ति करवाती हैं। इसके कई प्रकार है जैसे हठयोग, राजयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग, लययोग आदि। यह सब पूर्णतः स्पष्ट नहीं है। ( 4 ) वर्तमान में विभिन्न प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोग प्रचलित हैं। जो जीवनशैली में उत्पन्न हुए व्यतिकम से उत्पन्न हुए हैं। योग स्वयं ही एक जीवन जीने की कला का नाम है जो व्यक्ति को एक ऐसी जीवनशैली प्रदान करता है जिससे न केवल व्यक्ति स्वयं को शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रख सकता है अपितु विभिन्न आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त कर सकता है। इस पर शोध एवं अनुसंधान की असीम संभावनाएँ हैं। उपरोक्त वर्णन से योग में शोध एवं अनुसंधान किये जाने की आवश्यकता एवं संभावनाएँ स्पष्ट होती हैं।

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