आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी आनलाइन एवं प्रत्यक्ष माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है। योग प्रशिक्षण के दौरान केंद्र पर आने वाले साधकों को यौगिक शरीर विज्ञान के बारे में बताया जाता है हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है जिसमे वायु तत्व का बहुत महत्व है।
इस अवसर पर योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि दुनियाभर 15 जून को विश्व वायु दिवस मनाया जाता है,यह एक विश्वव्यापी कार्यक्रम है, इस दिन का उददेेश्य पवन ऊर्जा और इसके उपयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। पवन ऊर्जा के महत्व और यह कैसे दुनिया को बेहतर बना सकता है, इसके लिए दुनिया भर में यह दिन मनाया जाता है। ये सोचना भी नामुकिन ला लगता है कि बिना हवा के जिंदगी कैसे होगी। हवा है तो जिंदगी है। आज भी दुनियाभर के वैज्ञाानिक कई अन्य ग्रहो पर वायु की तलाश में लगे हैं।
योग अभ्यास में वायु तत्व का महत्व सबसे ज्यादा है, वायु तत्व का रंग घिसे हुए अंजन (सुर्मा) या धुंए के रंग के समान हल्का-मटमैला है। बीजमंत्र यं यकार है और ईश्वर इसके देवता है। यह तत्व सत्वगुण मय है। योग बल के प्रभाव से वायु तत्व को उदय करके एकाग्रचित्त हो प्राणवायु को खींचकर कुंभक प्राणायाम के द्वारा पाँच घड़ी तक धारण करें। इसका नाम वायवीय मुद्रा है (वायु धारणा)। इसके अभ्यास से वायु द्वारा कभी मृत्यु नहीं होती और साधक को आकाश गमन करने का सामर्थ्य प्राप्त हो जाता है। और मृत्यु का नाश करती है। यह विधि मूर्ख, नास्तिक या वह व्यक्ति जिसके भीतर भक्ति भाव नहीं होते, जो शठ हैं ऐसे व्यक्ति को कभी न बताएँ। ऐसा करने से सिद्धि प्राप्त नहीं होती है। आयुर्वेद में भी वायु का विशेष और महत्त्वपूर्ण स्थान प्रतिपादित करते हुए महर्षि चरक ने चरक संहिता सूत्रस्थान में स्पष्ट किया है कि वायु-शरीर और शरीर अवयवों को धारण करने वाला प्राण, उदान, समान, अपान और ब्यान इन पाँच प्रकारों वाला, ऊँची और नीची सभी प्रकार की शारीरिक चेष्टाओं का प्रवर्तक, मन का नियंत्रक और प्रणेता, सभी इन्द्रियों को अपने अपने विषय को ग्रहण करने में प्रवृत्त कराने वाला, शरीर की समस्त धातुओं का व्यूह करने वाला, शरीर का संधान करने वाला है। वाणी का प्रवर्तक, स्पर्श और शब्द की प्रकृति, श्रावण और स्पर्शन इन्द्रिय का मूल, हर्ष और उत्साह की योनि, जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाला, विकृत दोषों का शोषण करने वाला स्वेद, मुत्र, पुरुष आदि मलों को बाहर निकालने वाला, स्थूल और सूक्ष्म स्त्रोतों का भेदन करने वाला है। इस प्रकार अकुपित वायु, आयु या जीवन के अनुवृत्ति निर्वाह में सहायक है। यह भी कहा है कि प्राण को मातरिश्वा कहते हैं। वायु ही प्राण है भूत, भविष्य और वर्तमान सब कुछ प्राण में ही अधिष्ठित है।
हस्त वायु मुद्रा से लाभ मिलता है,शरीर में यदि वायु की अधिकता हो जाए तो कई प्रकार की बीमारियाँ हो जाती हैं। जैसे हाथ-पैरों का कांपना, लकवा, गठिया, सिर दर्द, हृदयविकार आदि कई प्रकार के वायु दोष इस वायु मुद्रा द्वारा दूर किए जा सकते हैं।तर्जनी अँगुली को मोड़कर अँगूठे की जड़ पर रखें एवं अँगूठे को तर्जनी अँगुली के ऊपर हल्का दबाव रखते हुए रखें। शेष तीनों अँगुलियाँ लंबवत् रखें। यह मुद्रा वायु दोष को दूर कर शरीर में वायु को नियंत्रित करती है।