‘शबरी की प्रतिक्षा के साथ स्थापना दिवस समारोह में हुई अनेक प्रस्तुतियां

भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में जनजातीय जीवन देशज ज्ञान परम्परा एवं सौन्दर्यबोध पर एकाग्र ‘छठवें वर्षगाँठ समारोह के दूसरे दिन संग्रहालय के मुक्ताकाश मंच पर कई प्रस्तुतियाँ हुईं। वर्षगाँठ समारोह के दूसरे दिन सर्वप्रथम ज्ञानसिंह शाक्य(मध्यप्रदेश) ने अपने साथी कलाकारों के साथ लांगुरिया गायन‘देवी वंदना ‘जगर मगर मठ होय मइया तेरी पूजा न जानू‘का गायन कर की। देवी वंदना के बाद कलाकारों ने मठिया के खोल किवार लंगुरिया दुनिया ठाढ़ी दर्शन को‘प्रस्तुत कर सभी दर्शकों को मोह लिया। इसके पश्चात कलाकारों ने ‘झूला उराय देय फूल बाग में हो माय‘प्रस्तुत किया। ज्ञानसिंह शाक्य ने साथी कलाकारों के साथ मइया के भवन में घुटुअन खेले लंगुरिया‘प्रस्तुत करते हुए अपनी गायन प्रस्तुति को विराम दिया। गायन प्रस्तुति के दौरान ज्ञाानसिंह शाक्य का सहयोग हारमोनियम पर सुखदेव ने, ढोलक पर सुरेश कुमार ने, झींका पर गणेश गुप्ता ने, तबले पर राजेश कुशवाहा ने और गायन में शिवानी भदौरिया और हिमांशू शाक्य ने किया। इसके पश्चात् शबरी के धैर्य और भक्ति पर केंद्रित नाटक शबरी की प्रतीक्षा‘का मंचन प्रयागराज की रंग निर्देशिका सुषमा शर्मा के निर्देशन में संग्रहालय के मुख्ताकाश मंच पर हुआ। इस नाटक के केंद्र में शबरी है। भील जाति में उत्पन्न हुई श्रामणा नमक शबरी प्रारम्भ से ही अपने परिवेश से अलग संस्कार की थी। उसे पशु हिंसा से घृणा थी। अपने विवाह पर भोजन हेतु वध के लिए लाये गए पशुओं का जीवन बचने के लिए शबरी ने गृह त्याग दिया। भटकते-भटकते शबरी मतंग ऋषि के आश्राम के द्वार पर पहुँच गई। मतंग ऋषि से उसने प्रभु सेवा करने को अपना लक्ष्य बताया, पर आश्राम की सामाजिकता को दृष्टि में रखते हुए मतंग ऋषि ने शबरी को गौशाला में गायों की सेवा का कार्य सौंप दिया। अपनी सेवा, मृदुस्वभाव और भक्तिभाव से जहाँ शबरी मतंग ऋषि की प्रिय शिष्या बन बैठी, वहीँ दूसरी और अन्य आश्रामवासियों के क्रोध एवं ईर्ष्या और विरोध के चलते शबरी ने आश्रम त्यागकर अलग कुटी बना ली। कालान्तर में अपनी मृत्यु को समीप जान मतंग ऋषि ने शबरी से कहा कि वह अपनी देह अवश्य धारण किये रहे। प्रभु राम-स्वरुप में अपने अनुज लक्ष्मण के संग उसे अवश्य दर्शन देंगे। वर्षों प्रतीक्षा के बाद शबरी की कुटी में प्रभु आये और शबरी के आदर-सत्कार से प्रसन्न हुए। प्रभु राम ने शबरी को नवधा भक्ति का सन्देश दिया और सीता खोज में शबरी की सहायता माँगी। शबरी से मार्ग निर्देशन पाकर प्रभु राम चले गए। इधर प्रभु दर्शन से तृप्त शबरी योगाग्नि में जल परम धाम को चली गईं। अतः इसी के साथ नाटक शबरी की प्रतीक्षा का अंत हुआ। इस नाट्य प्रस्तुति में शबरी के धैर्य और भक्ति भाव को बड़ी ही खूबसूरती से कलाकारों ने दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया।           

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