जनजातीय संग्रहालय में प्रारंभ हुए लिखन्दरा और प्रतिरूप-2 शिविर

भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में चित्रांकन और मुखौटों पर केन्द्रित ‘लिखन्दरा’ और ‘प्रतिरूप-2’ शिविर का प्रारंभ हुआ । ये पंद्रह दिवसीय शिविर 25 अक्टूबर से 8 नवम्बर तक आयोजित होंगे ।

पिथौरा चित्रांकन पर केन्द्रित ‘लिखन्दरा’ शिविर में आज वरिष्ठ पिथौरा चित्रकार श्री पेमा फत्या और श्री थावर सिंह ने सबसे पहले  भगवान गणेश  को कैनवास पर उकेरा । गणेश किसी भी कार्य के प्रारंभ होने पर सर्वप्रथम पूजे जाते हैं। पेमा फत्या जी ने बताया कि  उन्होंने पिथौरा  के अंतर्गत काठया घोड़ा भी बनाया जिससे जुडी मान्यता है कि यह घोड़ा अपने  सभी सगे सम्बन्धियों को अनुष्ठान हेतु  आमंत्रण देता है।

दरअसल भील समुदाय का महानायक पिथौरा है। वह पूजा  जाता है, चित्रित होता है, और उसका गान है। पिथौरा पेंटिंग एक आर्ट फॉर्म की तुलना में अधिक अनुष्ठान हैं। इन अनुष्ठानों को या तो भगवान का शुक्रिया करने के लिए या एक इच्छा या वरदान के लिए किया जाता है। घर के बरामदे  की मुख्य दीवार जो इसे रसोईघर से विभाजित करती है, पिथौरा के लिए पवित्र माना स्थान माना जाता है। पिथौरा की किंवदंतियों से संबंधित दीवार चित्रकारी, इस दीवार पर की जाती हैं।

मुखौटों पर केन्द्रित  ‘प्रतिरूप-2’ शिविर में आज गोंड कलाकार  शिवप्रसाद धुर्वे, बंसराज परस्ते, धन सिंह, गंगाराम व्याम, मनेष, अर्जुन परस्ते और भील  कलाकार खुमान सिंह, गंगाराम सिंह, कारला, भाया ने अलग-अलग  देव मुखौटों का सृजन किया । इस शिविर में भील, गोंड भारिया और बैगा जनजातियों के कलाकार अपनी-अपनी शैलीगत विशेषताओं के साथ मुखौटों का सृजन कर रहे हैं।

आदिम मानव जब विकास के पथ पर था, तभी से उसने मुखौटे का रहस्य समझ लिया था, इसलिए उसने अपने अनुष्ठान और कला में मुखौटे को स्थान दिया। मुखौटों में निहित मूल्य तथा उपयोग की सामाजिक, सांस्कृतिक प्रक्रिया ही उसके रूप तथा कार्य का निर्धारण करती है। भयावह, मजाकिया, विस्मयकारी शब्दों से परे भी मुखौटे में उसके सतही रूप, गुणवत्ता और दर्शक की कल्पना होती ही है।

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