इस सप्ताह का प्रादर्श है – सतसंग/सुतसांग तंत्री वाद्य

भोपाल। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के नवीन श्रृंखला ‘सप्ताह का प्रादर्श’ के अंतर्गत सितम्बर माह के चतुर्थ सप्ताह के प्रादर्श के रूप में सतसंग/सुतसांग, कलिम्पोंग, पश्चिम बंगाल से संकलित लेपचा समुदाय के तंत्री वाद्य को दर्शकों के मध्य प्रदर्शित किया गया।
इस सम्बन्ध में संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि सतसंग काष्ठ के एक ही टुकड़े से बना चार तारों वाला तंत्री वाद्य है। यह कलिम्पोंग, पश्चिम बंगाल के लेपचा समुदाय से संबंधित है। सतसंग की उत्पत्ति राजा रॉन्गबंग पुनु के शासनकाल में एक शक्तिशाली आखेटक सातो से मानी जाती है। जब सातो ने यह देखा कि बांसो को आपस में रगड़ने से मधुर ध्वनि निकलती है तब उन्हें इस वाद्य यंत्र को बनाने का विचार आया। घर पहुंच कर उन्होंने बांस की पतली खपच्चियों से गज (bow) बना कर इस मनोहर वाद्य यंत्र को बनाना प्रारंभ किया। उनके द्वारा रचे जाने के कारण ही इस वाद्य यंत्र को उनके नाम से जाना जाता है। इस वाद्य यंत्र की अनूठी विशेषता यह है कि इसमें ध्वनि को प्रतिध्वनित करने के लिए चमड़े की झिल्ली के स्थान पर लकड़ी की पतली झिल्ली का उपयोग किया गया है।
दर्शक इस का अवलोकन मानव संग्रहालय की अधिकृत साईट (https://igrms.com/wordpress/?page_id=1090) तथा फेसबुक (https://www.facebook.com/NationalMuseumMankind) पर के अतिरिक्त इंस्टाग्राम एवं ट्विटर के माध्यम से घर बैठे कर सकते हैं।

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