कला विविधताओं का प्रदर्शन ‘गमक’ अंतर्गत ‘मालवी गायन’ एवं गोंड जनजातीय ‘गेड़ी’ की हुई प्रस्तुति

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा श्री नन्दराम बारिया एवं साथी- धार द्वारा ‘मालवी गायन’ एवं श्री विजय बन्देवार और साथी- छिंदवाडा द्वारा गोंड जनजातीय ‘गेड़ी’ की प्रस्तुति हुई।
प्रस्तुति की शुरुआत श्री नन्दराम बारिया और साथियों द्वारा ‘मालवी गायन’ से हुई, जिसमें गणेश वंदना- ‘रमा झमा घर आओ गजानंद’, ‘कुआं पानी कैसे जाऊं रे नजर लग जाए’, ‘बनी चालो हमारा देश’, ‘घर होती म्हारा पीयू ने मनाई लेती’, ‘लेजा रे थारी गाठड़ली’, ‘तू मोडो केसे आयो रे’ एवं ‘हम तो जावा हमारा देश’ आदि मालवी गीत प्रस्तुत किये।
प्रस्तुति में मंच पर- वायलिन पर- श्री अशोक खडिया, ढोलक पर- श्री भूरालाल बारिया, खंजरी पर- श्री भेरु सिंह सिंघार, मजीरे पर श्री अमृत,श्री आशीष, श्री सीताराम जी एवं सुश्री नेहा मोरे ने संगत दी।
दूसरी प्रस्तुति श्री विजय बन्देवार द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य- ‘गेड़ी’ की हुई जिसमें मंच पर- नर्तक के रूप में श्री अरविन्द धुर्वे, दुर्गेश, गोविंदा, अरविन्द परतेती, हरिराम, पलाश, शुभम्, सुश्री ख़ुशी धुर्वे, अर्चना परतेती, करिश्मा एवं बुलबुल नवरेती और टिमकी पर- सुशील कुमरे, ढोल पर- सुनील बंशकार, झांझ पर- पवन एवं बाँसुरी वादन में श्री संतोष कुमार ने संगत की।
प्राचीन समय में जब आवागमन के साधन उपलब्ध नहीं थे और कीचड़ वाले रास्तों से एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए आदिवासी अंचल के लोग बाँस के डंडों से बनी गेड़ी का उपयोग करते थे। आदिवासी अंचलों में प्रमुख रूप से गेड़ी की पूजा पोला पर्व में की जाती है और विभिन्न तीज त्यौहार में लगने वाले मेलों में इस नृत्य की प्रस्तुति की जाती है, गेड़ी नृत्य मुख्यतः गोंड जनजातिे के युवक-युवतियों द्वारा बड़े उत्साह के साथ बांस के डंडे के ऊपर खड़े होकर हाथ में रुमाल लेकर आदिवासी परिधान में गोंडी धुन एवं शैतमा ताल पर बांसुरी तथा झांज बादय यंत्रों के साथ इस नृत्य को किया जाता है।
गतिविधियों का सजीव प्रसारण संग्रहालय के सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूट्यूब
http://bit.ly/culturempYT और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/culturempbpl/live/ पर भी किया गया।

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