भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा श्री परमानन्द केवट एवं साथी- सिरोंज द्वारा ‘ढिमरयाई’ गायन एवं श्री राजेश चौरसिया और साथी- सागर द्वारा बुंदेलखंड के ‘बधाई एवं नौरता’ नृत्य की प्रस्तुति हुई।
प्रस्तुति की शुरुआत श्री परमानन्द केवट और साथियों द्वारा ‘ढिमरयाई’ गायन से हुई, जिसमें उन्होंने कोहल कौआ दो झने बैठे एकई डार, ढीमर घर बालक भये, उतर चलो भई पार गंगा उतर चलो, गोरीधना की बातों में आके बाप मैतारी से भये न्यारे आदि गीतों पर ढिमरयाई नृत्य प्रस्तुत किया।
ढिमरयाई- बुंदेलखंड के ग्रामीण अंचल का प्रचलित लोकनृत्य है, इस नृत्य को ढीमर समुदाय के लोग करते हैं इसलिए इसे ढिमरयाई नृत्य कहते हैं, शादी विवाह एवं नवरात्री आदि विभिन्न अवसरों पर इस नृत्य को किया जाता है। नृत्य करते समय प्रमुख नर्तक श्रंगार और भक्ति से गीत गाता है और सेहवत के लोग उसे दोहराते हैं। मुख्य नर्तक एक विशिष्ट प्रकार से पद परिचालन करते हुए नृत्य करता है, इस नृत्य की विशेषता पद चालन की है। दौड़ना, पंजों के बल चलना, मृदंग की थाप पर कलात्मक ढंग से ठुमकना, पदाघात करना आदि। द्रुत गति से घूमते हुए सात आठ चक्कर लगाना इसके प्रमुख भाव है। इस नृत्य में कींगड़ी, खंजड़ी, बाँसुरी, झंजरा, मंजीरा, तवा एवं टिमकी, आदि वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है।
प्रस्तुति में मंच पर- कींगड़ी पर- रामप्रसाद केवट एवं जयराम केवट, बाँसुरी पर- हरिसिंह केवट, खंजड़ी पर- कमरलाल केवट, तवे पर- रामचरण केवट, झंजरा पर- कमल सिंह केवट और सूरज केवट एवं विष्णु केवट ने नृत्य में संगत दी।
दूसरी प्रस्तुति श्री राजेश चौरसिया एवं साथियों द्वारा बुन्देलखण्ड के बधाई एवं नौरता नृत्य की हुई- बधाई बुन्देलखण्ड का प्रसिद्व लोकनृत्य है, बधाई नृत्य खुशी के अवसर पर देवी देवताओं के समक्ष शादी विवाह के अवसर पर किया जाता है। इसमें नृत्य में लोक गायन एवं लोक वाद्य ढपला, नगङिया, लोटा, ढोलक एवं बाँसुरी आदि को बजाया जाता है।
नौरता नृत्य नवरात्री के समय किये जाने वाला नृत्य है। यह नृत्य कुँवारी कन्याओं के द्वारा किया जाता है। सुआटा नाम का राक्षस कुवारी कन्याओं का वध करके ले जाता था देवी की आराघना करके कुवारी कन्याओं ने उन्हे प्रसन्न करने के लिये यह नृत्य किया। इस नृत्य में बजने वाले वाद्य ढपला, नगङिया, लोटा, ढोलक, बासुरी आदि हैं।
श्री चौरसिया विगत 25 वर्षों से लोकनृत्य (बधाई, नौरता, बरेदी एवं जवारा) की प्रस्तुति देते आर रहे हैं, आपने स्व. श्री विष्णु पाठक से नृत्य की शिक्षा प्राप्त की आपको भारत सरकार संस्कृती विभाग से जूनियर फ़ेलोशिप प्राप्त है, आपने राजा मानसिंह तोमर विश्वविद्यालय, ग्वालियर से संगीत में स्नातकोत्तर की उपाधि की। आप विभिन्न नाटकों में संगीत निर्देशन का कार्य किया है, श्री चौरसिया देश के विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी सफल प्रस्तुति दे चुके हैं। वर्तमान में आप एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में कार्य कर रहे हैं एवं युवाओं को लोकनृत्य की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।
गतिविधियों का सजीव प्रसारण संग्रहालय के सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूट्यूब http://bit.ly/culturempYT और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/culturempbpl/live/ पर भी किया गया।