भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा श्री गणेश गुर्जर और साथी, खण्डवा दारा ‘निमाड़ी संतों के पद’ एवं श्री देवीसिंह एवं साथी डिंडोरी द्वारा बैगा जनजातीय नृत्य ‘करमा’ की प्रस्तुति हुई।
श्री गणेश गुर्जर और साथियों ने गायन की शुरुआत गणेश वंदना- गणपति का लागा पाय उसके बाद खजुरी में जनम, अरे हाऊ गुरु घर चाकर रहूंगा, सीधी बनाओ पगडंडी गुरूजी, दुल्लव वन्या रे महाराज, मानो रे बचन हमारो, गुरु मुख गोविन्द एवं गुरु जी थारा पैयाँ लागूं आदि निमाड़ी संतों के पदों का गायन किया।
प्रस्तुति में मंच पर- हारमोनियम पर- श्री सीवाराम ठाकुर, तबले पर- श्री धन्नालाल डाक्से, कोरस में श्री ताराचंद खेड़े, ढोलक पर – श्री कृष्ण कुमार डोंगरे एवं झांज पर- श्री देविदास श्रीवास ने संगत दी।
श्री गुर्जर ने गायन की शुरुआत बचपन से ही ग्रामीण परिवेश में रहते हुए की, आप विगत बीस वर्षों से देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति देते आ रहे हैं।
दूसरी प्रस्तुति श्री देवीसिंह और साथियों द्वारा बैगा जनजातीय नृत्य ‘करमा’ की हुई। मंच पर बाँसुरी- श्री देवी सिंह पट्टा, मांदर- भगत सिंह उइके व पंचराम पट्टा एवं श्री सम्हर सिंह ने टिमकी वादन और गुलाब सिंह, वैसाखू सिंह, जीवन सिंह, सोन सिंह, शंकर सिंह, सुश्री वैसखिया बाई, फूलवती, चमेली बाई, सम्पतिया एवं बृहस्पतिया बाई ने नृत्य में भागीदारी निभाई।
करमा नृत्य- बैगा जनजातीय की परंपरा के अनुसार भादों माह के शुल्क पक्ष के चौथ तिथि में अपने-अपने ईष्ट देव, कुल देवी देवताओं की पूजा-पाठ कर नवा खाते हैं। उसी दिन से ही करमा नृत्य- गीत करते हैं। यह नृत्य- गीत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष अर्थात बिदरी पूजा तक चलता है। इसमें मांदर, टिमकी एवं बाँसुरी मुख्य वाद्य यन्त्र होते हैं। पुरुष- झागा कुरता, जैकिट, फेंटा, सिर में मोरपंख कलगी पैरों में पैजना एवं हाथ में ठिसकी लेकर नृत्य करते हैं। महिला- मुंगी साड़ी, ब्लाउज, बीरनमाला, मोरपंख कलगी पैरों में पैर पता गले में माला-गुरिया और हाथ में ठिसकी लेकर नृत्य करती हैं।
गतिविधियों का सजीव प्रसारण संग्रहालय के सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूट्यूब
http://bit.ly/culturempYT और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/culturempbpl/live/ पर भी किया गया।