भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा श्री रामगोपाल दीक्षित और साथी, नरसिंहपुर द्वारा बुन्देली ‘ऋतू गीत’ एवं श्री घूमन प्रसाद पटेल और साथी, दमोह द्वारा बुन्देली लोकनृत्य ‘सैरा’ की प्रस्तुति हुई।
प्रस्तुति की शुरुआत श्री रामगोपाल दीक्षित और साथियों द्वारा बुन्देलखण्ड अंचल में विशेष अवसरों पर गाये जाने वाले ऋतू गीतों से हुई। अपने गायन में श्री दीक्षित ने लोक भजन- ‘मन भजले सीताराम, उमरिया रह गई थोड़ी’, पारंपरिक होली गीत- ‘रंग डारी चुनर रंग डारी श्याम ने’, ‘मैं तो ऊंसई अतर में भींजी लाला’, गारी गीत- सांवरे वरन गुइयां पति मोरे’, हास्य गीत- ‘बोले मोरे मुर्गा बोल मोरे भाई’ एवं गोंड़ी गीत- गाड़ी वारे छैला मारे नजरिया’ आदि बुन्देली गीत प्रस्तुत किये।
श्री रामगोपाल दीक्षित का बचपन से ही संगीत से लगाव था, आप वर्ष 1995 से आकाशवाणी जबलपुर में प्रस्तुति देते आ रहे हैं, आप आकाशवाणी जबलपुर के बी. हाई ग्रेड कलाकार हैं। श्री दीक्षित देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं।
प्रस्तुति में मंच पर हारमोनियम पर श्री रामगोपाल दीक्षित, सहगायक व तबले पर- श्री रामस्वरूप दीक्षित, ढोलक पर- श्री सुकरत सिंह ठाकुर, चट्कोली पर- श्री शालकराम साहू- मजीरे पर- श्री रामकिशन पटैल एवं झांझ पर श्री बालकराम झरिया ने संगत दी।
दूसरी प्रस्तुई श्री घूमन प्रसाद पटेल और साथियों द्वारा बुन्देली लोकनृत्य ‘सैरा’ की हुई जिसमें- गणेश वंदना से प्रस्तुति की शुरुआत करते हुए, बारह मास का सैरा- आजा नंद किशोर मोरे घरे आजा एवं पाई – घुंघटा उठा दे बदरिया सावन की आदि लोकगीतों पर अपनी नृत्य प्रस्तुति दी।
प्रस्तुति में सहगायक – श्री गुलजार सिंह, श्री महेश सिंह एवं श्री मुलायम सिंह, तारवादन- श्री विश्वनाथ सिंह
ढोलक पर- श्री जीवन सिंह, नगड़िया पर- श्री सिद्धि, झींगा पर- श्री घनश्याम पटेल और कुलदीप शुक्ला, संतोष सिंह तोमर, मुहर सिंह तोमर, प्रकाश सिंह सेंगर, बबलू यादव, तुलसीराम, देवी सिंह तोमर, संदीप अहिरवार, सुनील सिंह सेंगर एवं लक्ष्मण सिंह राजपूत ने नृत्य में सहभागिता निभाई।
सैरा बुन्देलखण्ड अंचल के ग्रामीण क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है, पुरुषों द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य विशेष रूप से त्योहारों के अवसर पर किया जाता है। इसमें दोनों हाथ में लगभग ढाई फिट का डंडा लेकर उसे आपस में लड़ाते हुए गोल घूमकर नृत्य किया जाता है।
गतिविधियों का सजीव प्रसारण संग्रहालय के सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूट्यूब
http://bit.ly/culturempYT और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/culturempbpl/live/ पर भी किया गया।