भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय की ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ किसी एक जनजातीय चित्रकार की प्रदर्शनी सह विक्रय का संयोजन शलाका नाम से प्रतिमाह किया जाता है। इसी क्रम में आज 3 जुलाई ,2022 से भील समुदाय की चित्रकार कस्सू बारिया के चित्रों की प्रदर्शनी का संयोजन किया गया है। यह 27वीं चित्र प्रदर्शनी 30 जुलाई, 2022 तक निरंतर रहेगी।
भील बाहुल्य क्षेत्र झाबुआ के पिटोल गाँव में वर्ष 1982 में जन्मी कस्सू बारिया ने अपने आस-पास परंपरा से रचे जाने वाले सौंदर्य को देखा और घर परिवार और गांव की महिलाओं द्वारा भूमि और भित्ति पर किये जाने वाले अंकनों को देखकर चित्र बनाने की प्रेरणा प्राप्त की। चित्रकारी का कोई अनुभव नहीं था, केवल मिट्टी से उकेरी रेखाओं और कभी-कभी कुछ प्राकृतिक रंगों से सजाना। कम आयु में विवाह के पश्चात अपने पति रमेश के साथ भोपाल आ गयी और घर परिवार को संभालने में व्यस्त हो गयी। चित्रकला तो दूर-दूर तक कहीं भी इनके विचार में नहीं थी, किन्तु घर में अपनी सास पद्मश्री भूरी बाई प्रतिष्ठित भीली चित्रकार हैं, को हमेशा ही चित्र बनाने में मग्न देखा। साथ ही अपने ससुर स्व. जोर सिंह को एवं घर के अन्य सदस्य को भी चित्र बनाते देखा तो खाली समय में कस्सू ने भी अपनी गांव में देखी और किये अलंकरण को रंग एवं ब्रश के माध्यम से साधना शुरू किया। धीरे-धीरे आकारों एवं रंगों की समझ बढ़ने लगी तब कस्सू ने स्वयं के लिए चित्र बनाना आरम्भ किया। इनके चित्रों में कुछ अनगढ़पन शेष रहा तथा रंगों का चयन भी एकदम प्राथमिक है। कस्सू के चित्रों में सास भूरी बाई के चित्रों का प्रभाव एवं छवि स्वत: ही देखने को मिल जाती है।
कस्सू बारिया की एक माह तक चलने वाली चित्र प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्र जन सामान्य के लिये विक्रय हेतु भी उपलब्ध रहेंगे। सुश्री बारिया ने इन प्रदर्शित 28 चित्रों में हिरण एवं पक्षी, करंजी वृक्ष एवं पक्षी, मोर एवं वृक्ष, वडला वृक्ष एवं पक्षी, नीम वृक्ष, मोर एवं अन्य पक्षी, गुंइदी वृक्ष एवं पक्षी, महुआ वृक्ष एवं पक्षी, कछुआ एवं मछली, नील गाय एवं पक्षी, भगोरिया मेला, बेर एकत्र करते युवक युवतियां, बैल गाड़ी एवं जल भरे मटके, हाथी सवार, महुआ एकत्र करती महिलाएं, ताड़ वृक्ष एवं युवा, गातला देव, अंडे की सुरक्षा करती मोरनी, उल्लू, गिलहारी एवं साथी, पक्षी एवं पीपल वृक्ष, हाथी सवार, वृक्ष एवं पक्षी, ऊँट सवार, मछलियों का झुण्ड, बकरी एवं पक्षी, शेर एवं पक्षी, ताड़ी एकत्र करते युवक, अन्डो की सुरक्षा करते पक्षी, हाथी सवार एवं जल संग्रहण जैसे ग्रामीण जीवन के प्राकृतिक और सुंदर दृश्यों और कथाओं को अभिव्यक्त किया है।
वर्तमान में कस्सू पति एवं परिवार के साथ अपने चित्रकर्म को निर्वाध रूप से कर रही हैं, उन्होंने भोपाल सहित देश भर के विभिन्न शहरों में आयोजित चित्र शिविरों में भागीदारी की है और सतत चित्रकर्म में संलग्न हैं।