जनजातीय संग्रहालय के ‘लिखन्दरा दीर्घा’ में ‘शलाका 11’ की प्रदर्शनी

भोपाल। मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय के ‘लिखन्दरा दीर्घा’ में गोंड समुदाय की युवा चित्रकार श्री द्वारका परस्ते के चित्रों की प्रदर्शनी ‘शलाका 11’ का प्रदर्शन किया जा रहा है। लिखन्दरा पुस्तकालय के प्रदर्शनी दीर्घा में ‘शलाका 11’ की चित्रकला प्रदर्शनी 28 फरवरी, 2021 तक रहेगी।
द्वारका परस्ते-
1985 में मध्यप्रदेश के डिण्डोरी जिले के ग्राम-गारकमट्टा में जन्में द्वारका परस्ते, गोण्ड समुदाय के एक युवा चित्रकार हैं। बचपन गाँव में बीता, सो जातीय मिथक और कथाएँ सुनने को मिलती रहीं और उनके बारे में गहनता से जानने की उत्कंठा भी बनी रही। किन्तु उन कथाओं-मिथकों, रूपाकारों, चिन्हों को चित्र में परिवर्तित करने का मार्ग या कहें कि कला शहर आकर सीखी। युवावस्था का बहुत सारा समय गाँव में खेती-किसानी एवं मजदूरी करने में ही व्यतीत हुआ, किन्तु बचपन की सुनी कथाओं के रूपाकार मन में कहीं निर्मित होते जार हे थे। रोजगार के बेहतर अवसरों की तलाश द्वारका को भोपाल शहर की ओर खींच ले आयी। जैसा की शहर की ओर आने वाला प्रत्येक व्यक्ति फिर शहर का ही हो कर रह जाता है, ठीक वैसे ही द्वारका परस्ते भी यहीं के हो कर रह गए। भोपाल शहर में अपने गाँव, समुदाय के बहुतेरे चित्रकार साथियों, नातेदारों के सम्पर्क में आये और फिर इनके चित्रकर्म का सिलसिला आरम्भ हुआ। जीविकोपार्जन के लिए शुरूवाती दिनों में मजदूरी का कार्य भी किया और फिर समय मिलने पर चित्र बनाना शुरू किया। राजेन्द्र कुमार श्याम एवं वेंकटरमन सिंह श्याम को इन्होंने अपना कला गुरु बनाया और इनके सान्निध्य एवं प्रशिक्षण से अपने चित्रों को नए आकारों, नए रूपों में सृजित करना प्रारंभ किया। प्रयास ये भी रहा कि गुरुओं से सीखी कथा व्यर्थ न जाए, साथ ही हु-ब-हु उनके आकारों की नकल भी न हो। धीरे-धीरे द्वारका परस्ते के चित्र परिष्कृत होते गए। समस्त जनजातीय समुदाय के चित्रकारों की ही तरह इनके चित्रों में वन्य जीवजगत के प्राणी, वृक्ष एवं वनस्पति देखने को मिलती है, किन्तु प्रत्येक चित्रकार के चित्र सृजन में एक अलग दृष्टि काम करती है, जो उस कलाकार के चित्रों को आकर्षक बनाती है, इनके चित्रों में भी वन्यजीवों के साथ वनस्पतियों एवं वृक्षों का समन्वय दिखता है। इनके अधिकांश चित्रों के पशुओं में मातृकता एवं उससे निर्मित कथानक एक अनूठा दृश्य उत्पन्न करते हैं। द्वारका परस्ते ने सन् 2000 से प्रशिक्षण एवं कला शिविरों, प्रदर्शनियों में अपनी सक्रिय भागीदारी प्रारंभ की। लगभग 20 वर्ष की कलायात्रा में द्वारका ने प्रदेश एवं देश के अनेक स्थानों पर अपने चित्र प्रदर्शित हैं।

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