झिलमिल नदी के किनारे सुरों की बरसात – तानसेन समारोह-2020

तानसेन की जन्मस्थली में आयोजित अष्टम सभा के साथ हुआ समारोह का समापन, राज्य मंत्री श्री कुशवाह, सांसद श्री शेजवलकर, संभाग आयुक्त, कुलपति व कलेक्टर सहित, बड़ी संख्या में कला रसिक संगीत का आनंद लेने पहुँचे

ग्वालियर। प्रतिष्ठित तानसेन समारोह की अष्टम एवं आखिरी सभा संगीत सम्राट तानसेन की जन्मस्थली बेहट में झिलमिल नदी एवं नटराज भोले शंकर के मंदिर के बीच स्थित घनी अमराई के साये में सजी। इस पवित्र जगह पर सुरों के ऐसे फूल खिले कि सारा माहौल सुंदर-सुंदर राग-रागनियों से सुगंधित हो गया।
जहाँ पर तानसेन समारोह की सभा सजी वह वही जगह है, जहाँ मकरंद पांडेय का जन्म से ही बोलने में असमर्थ बेटा “तन्ना” बकरियाँ चराया करता था। कहा जाता है तन्ना रोज अपनी बकरियों का दूध भगवान भोले के मंदिर पर चढ़ाया करता था। भोले शंकर के वरदान से तन्ना की जुबान से ऐसे सुर फूटे कि वह संगीत शिरोमणि बनकर अखिल विश्व में छा गया। यह भी किंवदंती है कि तानसेन की सुरीली तान से भगवान भोले की मढ़ी एक ओर झुक गई, जो आज भी विद्यमान है।
बेहट में सजी तानसेन समारोह की इस सभा का शुभारंभ पारंपरिक रूप से स्थानीय संगीत संस्थाओं के ध्रुपद गायन से हुआ। तानसेन संगीत कला केन्द्र के विद्यार्थियों ने राग ” भैरव” में ध्रुपद गायन किया। अलाप, मध्यलय अलाप एवं द्रुत लय अलाप के बाद सूल ताल में बंदिश पेश की जिसके बोल थे ” शिव आदि मद जो गात जोगी”। इस प्रस्तुति में पखावज संगत श्री संजय पंत आगले ने की।
इसी कड़ी में सारदा नाद मंदिर ग्वालियर का ध्रुपद गायन हुआ। राग ” भूपाली तोड़ी” और चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे ” प्रथम मान ओंकार “। संगीत संयोजन श्री अनूप मोघे व सुश्री वैशाली का था। पखावज संगत श्री संतोष मुरमकर ने की।
पखावज वादन से झिलमिलाई झिलमिल …
अष्टम संगीत सभा मे पहले कलाकार के रूप में पंडित जगतनारायण शर्मा का पखावज वादन हुआ। उन्होंने गणेश परण से अपने पखावज वादन की शुरुआत की। उन्होंने चौताल में बेहतरीन वादन किया। साथ ही पुरानी-पुरानी बंदिशों की कर्णप्रिय धुनें बजाईं। उनके वादन में रेलों की अदायगी भी ओझपूर्ण रही। उनका वादन बोलों की सफाई के साथ मिठास का मिश्रण है। पण्डित जगत नारायण जी ने देश के सुविख्यात पखावज वादक पागल दास जी से पखवाज वादन की शिक्षा ली है। उनकी प्रस्तुति में हारमोनियम पर श्री नवनीत कौशल और सारंगी पर उस्ताद मोहम्मद खाँ ने संगत की।
“मन के पंछी भए रे बाबरे…”
ग्वालियर घराने के उदयीमान ख्याल गायक हेमांग कोल्हटकर ने जब मिसुरी से भी मीठे राग ” गूजरी तोड़ी” और तीन ताल में छोटा ख्याल ” मन के पंछी भए रे बाबरे” गायन किया वातावरण में मिठास घुल गई। इससे पहले उन्होंने राग गूजरी तोड़ी में विधवत आलापचारी के बाद विलंबित ख्याल ” राज दरबार” गाया। उनके गायन में ग्वालियर घराने की गायकी साफ समझ आ रही थी। शब्दों की शुद्धता और आलापचारी में ठहराव व बढ़त भी रसिकों को खूब भायी। बेहट में सजी सभा के दूसरे कलाकार के रूप में उनकी प्रस्तुति हुई। उनके साथ तबले पर डॉ विनय विन्दे और हारमोनियम पर श्री विनय जैन ने बढ़िया संगत की।
तानसेन की देहरी पर राग “मदमाती सारंग” में ध्रुपद गायन….
तानसेन की जन्मस्थली बेहट में घनी अमराई के बीच सजी संगीत सभा में देश की जानी मानी ध्रुपद गायिका सुश्री सोमबाला सातले कुमार ने राग ” मदमादी सारंग” में ध्रुपद गायन कर रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके सुर लगाने के अंदाज ने डागरवाणी की ध्रुपद गायकी का आभास कराया। उन्होंने आलापचारी के बाद धमार ताल में गायन किया। बंदिश के बोल थे ” सखी ब्रज के खिलैया”। इसके बाद उन्होंने सूल ताल में तानसेन रचित बंदिश “तुम रब, तुम साहिब, तुम ही करतार” प्रस्तुत कर अपने गायन को विराम दिया। उनके साथ पखावज पर पण्डित पृथ्वीराज कुमार, सारंगी पर उस्ताद सफीक हुसैन और तानपूरे पर सुश्री मीरा वैष्णव व सुश्री अंशिका चौहान ने मनमोहक संगत की। इसी प्रस्तुति के साथ इस साल के तानसेन समारोह की संगीत सभाओं का समापन हुआ।
राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार श्री कुशवाह व सांसद श्री शेजवलकर सहित वरिष्ठ अधिकारी पहुँचे
बेहट में सजी संगीत सभा में प्रदेश के उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री भारत सिंह कुशवाह, सांसद श्री विवेक नारायण शेजवलकर, संभाग आयुक्त श्री आशीष सक्सेना, राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. साहित्य कुमार नाहर, कलेक्टर श्री कौशलेन्द्र विक्रम सिंह, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री शिवम वर्मा, एसडीएम श्री एच बी शर्मा एवं जनपद पंचायत मुरार के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री राजीव मिश्रा सहित अन्य जनप्रतिनिधिगण तथा बड़ी संख्या में ग्वालियर एवं बेहट व समीपवर्ती गाँवों से आए रसिक शामिल हुए।

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