‘थाल’ – पीतल से निर्मित एक पारंपरिक अनुष्ठानिक थाल – फरवरी माह का प्रादर्श

भोपाल। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के अंतरंग भवन वीथि संकुल में “माह के प्रादर्श” श्रृंखला के अंतर्गत माह फरवरी, 2021 के प्रादर्श के रूप में हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले के ‘’थाल’’ पीतल से निर्मित एक पारंपरिक अनुष्ठानिक थाल का उदघाटन डॉ. पी. के. मिश्र, निदेशक, मानव संग्रहालय द्वारा किया गया। इस अवसर पर अनेक गणमान नागरिक उपस्थित थे। इस प्रादर्श का संकलन डॉ. राकेश मोहन नयाल (सहायक क्‍यूरेटर) द्वारा किया गया है एवं संयोजन श्री राजेन्‍द्र कुमार झारिया द्वारा किया गया है।
प्रदर्शनी में प्रदर्शित प्रादर्श के बारे मे श्री राजेन्‍द्र कुमार झारिया, सहायक कीपर ने बताया कि देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश अपनी नयनाभिराम भूसंरचना एवं प्राकृतिक संपदा के लिए प्रसिद्ध है। इसके चंबा जनपद के विविधता पूर्ण शिल्प प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को एक सुदृढ़ आयाम देते हैं। इनमें धातु एवं काष्ठ शिल्प, कशीदाकारी, टोकरी निर्माण इत्यादि सम्मिलित हैं। प्रस्तुत प्रादर्श पीतल से निर्मित एक पारंपरिक अनुष्ठानिक थाल है जो यहाँ के धातु शिल्प का उत्कृष्ट प्रमाण है। इस थाल को गद्दी एवं अन्य लोक समुदायों द्वारा घरों एवं मंदिरों में पूजा के साथ-साथ वैवाहिक एवं अन्य मांगलिक अवसरों में भी उपयोग किया जाता है।
थाल के प्रकार – चम्बा की धातु शिल्प परम्परा में मुख्यतः दो प्रकार के थाल प्रचलित हैं। – गणेश थालः जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है इस थाल के केन्द्र में भगवान श्री गणेश का स्थान होता है। चतुर्भुज गणेश की छवि को शंख, चूड़िओं, मुकुट, माला आदि वस्तुओं से सुसज्जित दर्शाया जाता है। सामान्यतः यह आकार में छोटे होते है। विष्णु थालः इस अपेक्षाकृत बड़े आकार के थाल के केंद्र में कमल पर भगवान विष्णु को स्थान दिया गया है तथा चारों ओर इनके अवतारों – मत्स्य, कच्छप, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण एवं कल्कि को प्रदर्शित किया गया है। इनके अतिरिक्त कारीगर खरीददार या उपयोग कर्ता की माँग और रूचि के अनुसार आयताकार, वर्गाकार, षटकोणीय आदि आकारों में भी अन्य देवी-देवताओं और उनके कथानकों को दर्शाने लगे हैं।
निर्माण विधि – उभारकर बनायी गयी आकृति वाले अनुष्ठानिक थाल चम्बा जिले के हस्त शिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इसके निर्माण हेतु धातु को पीट कर ढलाई की तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। थाल का आकार और माप उपयोगकर्ता की रूचि और सामथ्र्य अनुसार होता है। सामान्यः 30, 24, 20, 18 और 16 इंच व्यास के वृत्ताकार थाल बनते हैं और तद्नुसार ही पीतल की चादर को काट लिया जाता है। सर्वप्रथम छैनी, हथौडी तथा ठिया की सहायता से थाली के किनारों को पंखुड़ियों के आकार मे बनाया जाता हैं। भगवान विष्णु का आरेख चित्र एक कागज में बनाकर उसे थाल के मध्य में चिपका दिया जाता है तथा नुकीली छैनी एवं हथौड़ी के माध्यम से थाल पर चित्र उकेर लिया जाता है। इसी तरह भगवान विष्णु के अवतारों को उकेरा जाता है। प्रत्येक अवतार को वृत्ताकार में छह पंखुडियों वाले फूलों के मध्य में उकेरा जाता है। हिमाचल प्रदेश के सबसे प्रमुख हस्त शिल्पों में से एक है धातु शिल्प। सामान्यतः देश के समस्त समुदायों में अनुष्ठानिक कार्यो हेतु थाली/थाल का उपयोग किया जाता है किंतु इस प्रकार के बड़े तथा सजावटी थाल का उपयोग गद्दी समाज द्वारा विशेष रूप से किया जाता है। वर्तमान में ये थाल अनुष्ठानिक कार्यों के साथ-साथ सजावट हेतु भी उपयोग किये जाने लगे हैं।

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