विश्व बंधुत्व की भावना से विजयी होगा भारत

मोहित काबरा

विश्व बंधुत्व की भावना में दुनिया के सभी देशों के बीच आपसी भाईचारा, सहयोग, सहभागिता और मानवीयता को साथ लेकर चलने का संकल्प है। पिछले तीन महीनों में हमने देखा कि कोरोना महामारी से निबटने और इसके समाधान के लिए अनेक बिखरे देश अब एकजुट हो गए हैं। वैश्विकरण के अनेक फायदे हैं, तो दूसरी ओर व्यापारिक हितों के नजरिये से देखें, तो कहीं-कहीं नुकसान भी है। इस विषय की गंभीरता को देखते हुए शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने का जनता से आव्हान किया है।
विश्व के विकसित देशों के बीच रक्षा, विदेश व्यापार, कर, आयात-निर्यात तथा कई समझौतों के विषयों पर कभी-कभी विवाद बढ़ जाते हैं। प्रतिस्पर्धा के कारण टकराहट बढ़ जाती है। अमेरिका और चीन इसका उदाहरण हैं। शी जिनपिंग ने अमेरिका द्वारा शुरू हुए आक्रामक बर्ताव को देखते हुए चीन में आयात होने वाले सामानों पर सरकारी शुल्क बढ़ाना शुरू कर दिया और इसी के साथ ही चीन ने अमेरिका को भेजे जाने वाले सामानों में कटौती भी शुरू कर दी। पिछले तीन वर्षों से इन दोनों देशों में तनातनी चल रही है। नतीजतन आज ये देश एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए हैं। रक्षा, व्यापार और सीमा विवादों से तनाव इतना बढ़ गया कि ये देश आने वाले दिनों में कभी भी ताल ठोककर आमने-सामने आ सकते हैं। इन दोनों देशों के कारण विश्व आज संभावित तीसरे विश्वयुद्ध की ओर आगे बढ़ रहा है।
विश्व में बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत ने अभी से कमर कस ली है। इसका उपाय है “आत्मनिर्भर भारत”। इस हेतु भारत सरकार ने दो बार हाल ही में विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से वित्तीय सहायता देने की घोषणा की है, इसमें प्रत्यक्ष हित लाभ और अप्रत्यक्ष हित लाभ शामिल हैं। हमें विश्वास है कि इसका लाभ आम आदमी तक अवश्य पहुँचेगा। देश आत्मनिर्भर होगा तभी वह विश्व विजयी बन सकता है। भारत अपने संसाधनों का उपयोग स्वयं की क्षमताओं को बढ़ाकर करना चाहता है।
आज कोरोना संकट के कारण विश्व के अनेक देशों में मांग और आपूर्ति की श्रृंखला पूरी तरह से बिखर गई है। उद्योग-धंधे, आवागमन, क्रय-क्षमता, रोजगार, मांग सबकुछ धरातल पर आ गया है। ऐसी स्थिति में भारत पूरी क्षमता से इस अवसर को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए ऊपर उठने का प्रयास कर रहा है। जो कंपनियां चीन छोड़कर दूसरे देशों में जाना चाहती हैं, उन्हें अपने यहाँ भारत आमंत्रित कर रहा है। इन कंपनियों को उघोग लगाने के लिए भारत सभी तरह की सुविधाएं मुहैया करा रहा है।
भारत मेक इन इंडिया के एजेण्डे पर काम कर रहा है। इस सफलता के लिए उसे उद्योगपतियों, व्यापारियों, नौकरशाहों के साथ-साथ जनता का भी सहयोग चाहिए तभी वह इस सपने को साकार कर पाएगा। हमें याद है कि 2007 में विश्वव्यापी आर्थिक संकट पैदा हुआ। इस संकट से देश सफलतापूर्वक उभरकर उठ खड़ा हुआ। वर्ष 2017 अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड-वाॅर शुरू हुआ। इसका असर भारत सहित अनेक देशों पर पड़ रहा है।
अब जनवरी 2020 से कोविड-19 महामारी से विश्व के साथ भारत भी लड़ रहा है। पहले भी कई संकट भारत के सामने आए परंतु कोरोना का संकट ज्यादा गहरा है। इसका प्रभाव आने वाले कई वर्षों तक रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है। ऐसी स्थिति में भारत को अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करते हुए अपनी तकनीक और मानव-संसाधन के बल पर आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ना होगा। इसका सूत्र है – “विश्व बंधुत्व”। सभी मित्र देशों का सहयोग लेते हुए और वैश्विकरण के मूल सिद्धांतों का पालन करते हुए हमें विश्व विजय के पथ पर अग्रसर होना होगा।

(लेखक प्रबंधन से जुड़े विषयों के जानकार हैं)।

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