संबंध टूटने से, प्रेम नहीं छूटता

राधेश्याम रघुवंशी

किसी का साथ छूट जाने पर, प्रेम नहीं छूटता। केवल स्थगित हो जाता है, कुछ समय के लिए। पौधे से अलग होने पर भी गुलाब की खुशबू कम नहीं होती।
किसी का साथ छूट जाने पर, प्रेम नहीं छूटता। केवल स्थगित हो जाता है, कुछ समय के लिए। पौधे से अलग होने पर भी गुलाब की खुशबू कम नहीं होती। जिंदगी की यात्रा में समय-समय पर लोग मिलते रहते हैं। छूटते रहते हैं। रेलगाड़ी जितने प्रेम से यात्रियों को सफर का अवसर देती है। इतने ही प्रेम से उन्हें विदा करती है। मुझे रेल की यात्रा बहुत पसंद है। यह लोगों से मिलने-जुलने और संवाद का अनूठा अवसर देती है। लोगों को पहचानने की क्षमता का भी यहां भरपूर समय होता है। कितनी गहरी आत्मीयता हो जाती है हमें सहयात्री से। जबकि हम जानते हैं सफर कुछ ही घंटे का है। लेकिन हम खुद को रोकते नहीं। सफर खत्म होने के बाद ट्रेन में मिले लोग शायद ही कभी मिलते हों। लेकिन इससे हम यात्रा के दौरान अपनी सहज आत्मीयता को प्रभावित नहीं होने देते।
यह समझ से परे है कि रेल यात्रा के दौरान सहज और प्रेम में डूबे रहने वाले यात्री सफर के बाद अचानक ही इतने क्यों बदल जाते हैं। हम संबंध टूटने को प्रेम का टूटना नहीं मान सकते। संबंध स्थाई नहीं होते। वह बदलते रहते हैं। जैसे किराएदार। लेकिन घर स्थाई होता है। वहीं ठहरा रहता है। प्रेम घर है, संबंध किराएदार।
यह सब ऐसे समय में लिखा जा रहा है, जहां प्रेम को हर वक्‍त कसौटी पर कसा जाता है। प्रेम साबित करने के लिए फेसबुक पर लाइक, शेयर से लेकर हर चीज़ पर तुंरत प्रतिक्रिया की मांग की जाती है। हम प्रेम को इत्‍मीनान की गली से निकालकर शोर के चौराहे पर ले आए हैं।
थोड़ी सी अनबन हुई नहीं कि हम एक-दूसरे से ऐसे मुंह फुला लेते हैं मानिए बरसों की मित्रता का कोई अर्थ ही नहीं। अब तक का जो भी था वह व्‍यर्थ हुआ। ऐसे रिश्‍ते हमें कहां ले जाएंगे। हम जब तक रिश्‍तों में एक दूसरे को जगह नहीं देंगे। हम एक दूसरे से जुड़ ही नहीं पाएंगे।
हमें हमेशा साथ नहीं चाहिए होता है, कभी-कभी सन्‍नाटा भी चाहिए। एकांत भी चाहिए। जहां आप उस काम को कर पाएं जो असल में करना चाहते हैं। उस चेतना से जुड़ पाएं जिसके लिए आपके भीतर गहरी बेचैनी है। जो आपकी आरजू है। जो आप होना चाहते हैं। उसके लिए किसी के साथ जितनी जरूरत एकांत और साथ की होती है।
अपने को सुनना, किसी को प्रेम करने सरीखा ही है। प्रेम करना स्‍वभाव है। एक बार जिसे प्रेम करना आ जाता है, वह केवल दूसरों से प्रेम कर सकता है। उसमें अपना-पराया की बात नहीं होती। केवल प्रेम की होती है। प्रेम स्‍वयं में परिपूर्ण है। उसे किसी की जरूरत नहीं होती। प्रेम में आप शिकायत नहीं करते। केवल प्रेम करते हैं।
इसलिए साथ छूटने का अर्थ यह नहीं कि प्रेम भी चला गया। वह कहीं नहीं जाता। वह हमेशा उपस्थित रहता है। हां, हम ही हैं जो उसे उपेक्षित किए रहते हैं। उसकी सुनते नहीं। प्रेम और संबंध को हमेशा एक-दूसरे से जोड़कर देखते रहते हैं। संबंध केवल उस शहर का नाम है, जहां आप रहते हैं। जबकि प्रेम तो वह घर है, जिसमें आप रहते हैं।खुद को टटोलिए। जो दूर हैं। जिनसे संबंध टूट गया। उनसे प्रेम क्‍यों तोड़ दिया। इसका कोई उत्‍तर आपको नहीं मिलेगा। क्‍योंकि कोई ठोस कारण होता ही नहीं। संबंध जीवन के अलग-अलग मोड़ पर बदलते हैं। जीवन को कष्‍ट उनसे कम हमारे पहले से कठोर और प्रेम की कमी से शुष्‍क हुए मन के कारण अधिक होता है। जितना संभव हो मन को उस कचरे से दूर रखिए जो दूसरे आपकी ओर फेंकते रहते हैं। दूसरे के लिए जमा कुंठा, संकुचित दृष्टिकोण ऐसा ही कचरा है।

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