ग़ज़ल संग्रह “साथ होते तुम अगर” हुआ लोकार्पित

भोपाल। ‘विश्वरंग’ के अंतर्गत रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल के तत्वावधान में वनमाली सृजन पीठ, भोपाल एवं आईसेक्ट पब्लिकेशन के संयुक्त आयोजन में आइसेक्ट पब्लिकेशन द्वारा वरिष्ठ ग़ज़लकार डॉ. विनोद सक्सेना ‘गुलजार’ के ताजा प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह ‘साथ होते तुम अगर” का लोकार्पण एवं पुस्तक–चर्चा कार्यक्रम वनमाली सृजन पीठ, भोपाल में आयोजित किया गया। यह आयोजन ऑनलाइन जूम माध्यम पर भी आयोजित किया गया। सर्वप्रथम अतिथियों ने ‘साथ होते तुम अगर’ ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण किया।

डॉ. विनोद सक्सेना ‘गुलजार’ ने अपने ताजातरीन ग़ज़ल संग्रह ‘साथ होते तुम अगर’ के लोकार्पण एवं पुस्तक–चर्चा कार्यक्रम में ग़ज़ल के चंद शेर पेश करते हुए कहा–

खुश्बुओं की यूँ हिफाजत कर रहा हूँ

मैं हवाओं की खिलाफत कर रहा हूँ

नफरतों के तीर जिस पर चल रहे हैं

मैं उसी शय से मुहब्बत कर रहा हूँ

उन्होंने आगे कहा–

इस तरह यूँ न बिखरती साथ होते तुम अगर

मौज साहिल पर मचलती साथ होते तुम अगर।

यूँ तो गुजरी है मगर वैसी नहीं गुजरी सनम

जिंदगी बेहतर गुजराती साथ होते तुम अगर।

इस अवसर पर उन्होंने बहुत ही शानदार ग़ज़लों का बेहतरीन पाठ किया। आपने आईसेक्ट पब्लिकेशन को सुंदर कलेवर के साथ ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित करने के लिए हार्दिक साधूवाद दिया।

लोकार्पण कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वनमाली सृजन पीठ, भोपाल के अध्यक्ष, वनमाली कथा पत्रिका के प्रधान संपादक, आईसेक्ट पब्लिकेशन के निदेशक, वरिष्ठ कथाकार मुकेश वर्मा ने कहा कि विनोद सक्सेना जी की गज़लें सीधी दिल की गहराइयों तक पहुँचती है। उनकी गज़लों में जिन्दगी की हकीकत बयां होती है। महोब्बत, तन्हाई, जुदाई, के साथ–साथ सामाजिक विसंगतियों पर भी उनकी गज़लें तीखा प्रहार करती हैं। यह हुनर बहुत कम लोगों में होता है।

वरिष्ठ गजलकार जिया फारूखी ने कहा कि विनोद सक्सेना जी अपनी गज़लों में प्रेम, करुणा, आध्यात्मिकता और सामाजिकता को बहुत शिद्दत से व्यक्त करते हैं। गणित के प्रोफेसर और कुलपति रहने के बावजूद उर्दू में गहरी दिलचस्पी रखते हुए आपने अपनी गज़लों में समाज की सच्चाइयों पर बहुत उम्दा लिखा है।

वरिष्ठ गज़लकार डॉ. विजय कलीम ने कहा कि विनोद सक्सेना जी का यह ताजातरीन ग़ज़ल संग्रह एक मुक्कमल किताब है। इसमें शामिल ग़ज़लों में आपने जिन्दगी के हरेक पहलुओं पर बहुत गहराई से लिखा है। उनकी एक ग़ज़ल में वे कहते हैं–

आईने पर गर्द यूँ जमती रही

एक दिन आखिर वो अंधा हो गया।

चश्मदीदों की गवाही के सबब

एक जिन्दा शख्स मुर्दा हो गया।

विनोद जी बहुत कम अल्फाजों में बहुत बड़ी बात कह जाते हैं।

लोकार्पण एवं पुस्तक–चर्चा का सफल संचालन वरिष्ठ ग़ज़लकार बद्र वास्ती ने किया। सर्वप्रथम आईसेक्ट पब्लिकेशन के प्रबंधक महीप निगम ने स्वागत उद्बोधन एवं आईसेक्ट पब्लिकेशन के विषय में सारगर्भित वक्तव्य दिया। वनमाली सृजन पीठ, भोपाल के संयोजक संजय सिंह राठौर ने अंत में आभार व्यक्त किया। उल्लेखनीय है कि इस लोकार्पण एवं पुस्तक चर्चा कार्यक्रम में ऑनलाइन माध्यम पर बड़ी संख्या में देशभर से रचनाकारों एवं ग़ज़लप्रेमियों ने रचनात्मक भागीदारी की।

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