अभिव्यक्ति पूर्व चिंतन जरूरी

यतीन्द्र अत्रे

कहते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती है और यह भी सही है कि व्यक्ति जितना ज्ञान अर्जित करता है उतना ही वह विनम्र होते जाता है। शनै शनै शब्दों को मर्यादित ढंग से व्यक्त करने में वह पारंगत होते चले जाता है और यदि इस कला में वह पारंगत नहीं है तो मान लीजिए उसको अभी सीखने की आवश्यकता है। लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है, लेकिन स्वतंत्रता का तात्पर्य यह कतई नहीं होना चाहिए कि बिना प्रमाण के किसी व्यक्ति को सार्वजनिक रूप में अपराधी घोषित कर दिया जाए, आपकी अभिव्यक्ति उस समय और भी सुलझी होनी चाहिए जब आप संस्था प्रमुख या किसी महत्वपूर्ण पद पर विराजमान हैं।यह नहीं भूलना चाहिए कि आपके पीछे अनेक व्यक्तियों का समूह है । सामान्यतः जब किसी अभियान की सफलता का परिणाम आपके पक्ष में होता है उस समय आप रोल माॅडल हो जाते हैं और यदि विपक्ष में है तब यह नहीं भूलना चाहिए कि आपके साथ उसकी भरपाई उन व्यक्तियों को भी करनी होती है जो आपसे संबंधित हैं या  आपका अनुसरण कर रहे हैं। सूरत की एक कोर्ट के निर्णय ने उस घटना की याद फिर से ताजा कर दी है जब सार्वजनिक रूप से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरनेम को लेकर टिप्पणी की थी  कोर्ट ने उन्हें 2 वर्ष की सजा सुनाई है साथ ही 15 हजार रुपये का जुर्माना भरने का आदेश भी दिया है। हालांकि उसी कोर्ट ने राहुल की जमानत मंजूर करते हुए सजा के अमल पर 30 दिन की रोक लगाई है। उल्लेखनीय है कि 13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था – नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी में एक चीज काॅमन है, सभी चोरों का सरनेम मोदी जी कैसे हैं ? कोर्ट के इस निर्णय से राहुल की मुश्किलें और भी बढ़ती दिखाई दे रही हैं, क्योंकि लोकसभा सचिवालय ने इसे संज्ञानता में लेते हुए निर्णय दिया है  जिसमें पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष एवं सांसद राहुल गांधी को संसद सदस्यता से अयोग्य ठहरा दिया है। उसके बाद से क्या हो रहा है हम सभी टीवी चैनल, समाचार पत्रों के माध्यम से जान ही रहे हैं। देशभर में प्रदर्शनों के साथ आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी आरंभ हो गया है। संभवतः अब राजनीतिक गतिविधियों, प्रदर्शनों के माध्यम से दिशा बदलने का प्रयास भी किया जाएगा। हालांकि जानकारों का इस संदर्भ में कहना है कि सरकार ने निर्णय लेने में जल्दबाजी की है। संभवतः राहुल को शीर्ष न्यायालय में स्टे मिल जाता है या आदेश स्थगित होता है तब क्या निर्णय बदला जा सकता है ? विधि विशेषज्ञों की मानें तो निर्णय में महत्वपूर्ण बिंदु 2 वर्ष की सजा है। यदि अदालत सजा कम कर देती है तब संसद सदस्यता को बचाया जा सकता है बहराल यह उन सभी गणमान्य व्यक्तियों के लिए एक अच्छी सीख होगी जो पार्टी प्रमुख या प्रवक्ता जैसे पदों पर विराजित हैं

मो.: 9425004536

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