कला के लिए जीवंत रवीन्द्र भवन अब रागों से सुसज्जित

गणतंत्र दिवस पर लोकरंग उत्सव के शुभारंभ के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के सबसे बड़े 1500 सीटर क्षमता वाले रविंद्र कन्वेंशन सेंटर (रविंद्र भवन) का लोकार्पण किया। माना जा रहा है कि संभवत देश में यह पहला ऐसा कन्वेंशन सेंटर होगा जिसके कक्षों को रागों का नाम दिया गया है। इसमें एक बैंक्वेट हॉल भी होगा जिसके लिए यह स्पष्ट किया गया है कि इसे शादी या जन्मदिन समारोह के लिए नहीं दिया जाएगा। हंसध्वनि, गौरांजनी, जयजयवंती, मालकौश, कौशिकी, मल्हार, श्रीराजिनी, कुरंजिकाऔर बागीश्वरी राग के रूप में अब रवीन्द्र भवन के कक्ष सुसज्जित रहेंगे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि हमारी कला और संस्कृति अद्भुत है, प्रदेश के कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे साथ ही यह भी कहा कि अच्छा कार्य करने वाले कलाकारों को मध्य प्रदेश सरकार की ओर से कभी निराश
नहीं होने देंगे। वहीं लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव ने कहा कि रविंद्र भवन सभा गम केंद्र का उद्घाटन मध्यप्रदेश के लिए उपलब्धि का दिवस है। उल्लेखनीय है। 59 वर्ष पहले यानी कि वर्ष 1962 में मध्य प्रदेश में कला को जीवंत करने के लिए रविंद्र भवन बनाया गया था, तब से इसका उपयोग निर्धारित मापदंडों के आधार पर कला एवं साहित्य से जुड़े शासकीय गैर शासकीय आयोजनों में होता है। सांस्कृतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों के लिए तो प्रदेश की राजधानी चर्चित रही है इसके अतिरिक्त रंगमंच की बात करें तो देश में पुणे और मुंबई के बाद भोपाल रंगमंच की गतिविधियों में तुलनात्मक रूप से दूसरे शहरों से अधिक सक्रिय है अभी भोपाल में जानकारी के अनुसार लगभग 28 रेपेट्री हैं, जिन्हें केन्द्र एवं मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा अनुदान एवं सहायता प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त नाटक प्रस्तुति के लिए संस्थागत नाट्य समारोह के लिए भी कलाकारों को अनुदान प्रदान किया जाता है। एक नाटक प्रस्तुत होने के पूर्व कम से कम एक से तीन माह की रिहर्सल आवश्यक होती है, इसके पश्चात भी कई बार प्रस्तुति के लिए कलाकारों को मंच उपलब्ध नहीं होता है। यहां आए दिन कोई ना कोई नाट्य समारोह होता रहता है। हालांकि पिछले 2 वर्षों से कोरोना महामारी केचलते और प्रशासन के निर्देश के कारण दर्शक नहीं के बराबर उपस्थित होते थे यानी कि यह गतिविधियां लगभग बंद हो गई थी कलाकारों द्वारा दर्शकों के मनोरंजन के लिए वर्चुअल माध्यम से उसका विकल्प भीखोजा गया किंतु सीमित कलाकारों और जगह की प्रतिबद्धता के कारण दर्शकों को वह आनंद की अनुभूति नहीं हुई जो मंचीय प्रस्तुति के दौरान हुआ करती है। दूसरी लहर के बाद गतिविधियां फिर से आरंभ हुई तो ऐसा लगा कि हमारे अंदर की संवेदनाएं फिर से जागृत हो गई हैं। पहले शहीद भवन, रवींद्र भवन के साथ भारत भवन भी कलाकारों को उपलब्ध हो जाया करता था। फिर जनजातीय संग्रहालय, मध्यप्रदेश संग्रहालय के साथ लिटिल बेले टूप भी कलाकारों को उपलब्ध होने लगा। किंतु अब अपनी नीतियों के कारण भारत भवन वर्तमान समय में बड़े एवं शासकीय आयोजनों के अतिरिक्त कलाकारों के लिए नाट्य आयोजनों हेतु उपलब्ध नहीं होता है जबकि भारत भवन के मंच पर नाट्य प्रस्तुति देना एक गर्व का विषय माना जाता है। सांस्कृतिक,साहित्यिक कार्यक्रमों के अंतर्गत होने वाली गतिविधियों में कवि सम्मेलन हो कोई नृत्य हो, आर्केस्टा प्रोग्राम हो या रंगमंच, ये सभी मंच पर प्रस्तुत होने वाली ऐसी विधाएं है जिसमें साहित्यकार, कलाकारों के साथ उसे प्रोत्साहित करने वाले दर्शकों का भी योगदान होता है। दर्शकों की सुविधा की दृष्टि से तो सरकार का यह कदम प्रशंसनीय होगा किंतु कलाकारों एवं संबंधित संस्थाओं को भी यह मंच आसानी से उपलब्ध हो अन्यथा भारत भवन जैसे यह भी विभागीय आयोजनों तक सीमित न रह जाए।

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