यतीन्द्र अत्रे
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भारत ने कहा है कि अगर भारतीय वेक्सीन को मंजूरी नहीं मिलती है तो यूरोप से आने वाले यात्रियों को भी 14 दिन के क्वारेंटाइन में रहना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि यूरोपीय देशों की यूनिक इकोनामिक एंड पॉलीटिकल यूनियन ने भारत में निर्मित कोविशील्ड और को वैक्सीन को सूची में सम्मिलित नहीं किया है। परिणामस्वरूप इन दिनों भारत से जा रहे नागरिकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। भारत से बड़ी संख्या में लोग नौकरी एवं पढ़ाई के लिए यूरोपीय देशों में जाते हैं,लेकिन भारतीय वेक्सिनो को पासपोर्ट से संबंध न करने से उन्हें परेशानी हो रही है। जबकिखबरों के अनुसार भारतीय वेक्सीन के देशवासियों सहित दुनिया भर में 250 करोड़ डोज लग चुके हैं। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अध्ययन में पता चला है कि यह वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है और टीका गंभीर संक्रमण के विरुद्ध 100% और बिना लक्षण वाले संक्रमण में 70% प्रभावी है। यह स्थिति तब निर्मित हुई है जब भारत में टीकाकरण का महा अभियान चल रहा है और उसमें देश के सभी लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। इस समय महामारी के कारण विश्व के अनेक देशों में लगे लॉक डाउन के कारण विद्यार्थी एवं निजी कंपनियों में कार्यरत देशवासी वतन लौटने के लिए बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं। इन व्यक्तियों का कहना है कि चाहे आपकी रिपोर्ट नेगेटिव हो दोनों डोज लगे हो आप 2 हफ्ते के क्वारेंटाइन के लिए तैयार हों फिर भी चूंकि आप भारत से हैं तो आप प्रतिबंधित है, जबकि दूसरे देशों के यात्री आ जा सकते हैं। देखा जाए तो इन अजीब नियमों का कोई अर्थ नहीं है जबकि सारे देश मिलकर कोविड-19 मुकाबला कर रहे हैं। ऐसे निर्णय से निश्चित रूप से भारत की छवि पर प्रभाव पड़ेगा। भारत जैसे विकासशील देश अब टीकाकरण के माध्यम से मृत्यु दर को नियंत्रित करते हुए वायरस के साथ जीवन जीने पर ध्यान दे रहे हैं, ऐसे समय में इन देशों पर प्रतिबंध लगाना पागलपन होगा। हम भारतीयों को इसका पुरजोर विरोध करना चाहिए। जानकारों का कहना है कि यह अनुचित नीतियां नहीं बदली गई तो इन राष्ट्रों के परस्पर संबंधों को चोट पहुंचेगी, क्योंकि वायरस के विरुद्ध तो हम टीकाकरण के माध्यम से छुटकारा पा सकते हैं लेकिन पक्षपात से बचने का कोई भी टीका उपलब्ध नहीं हो पाएगा, इसे परस्पर बातचीत के द्वारा ही हल किया जा सकता है।