पहले देशहित का सोचें

इतिहास साक्षी है कि जब-जब मनुष्य में लोभ और अहंकार बढ़ा है, उसका विवेक और निर्णय क्षमता पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। म.प्र. में आए राजनीतिक संकट के मूल में कुछ नेताओं का इसी तरह का अहंकार देखने में आया है। यहां कांग्रेस के दिग्गज नेताओ की टकराहट ने पार्टी को दो धड़ों में बांट दिया। नतीजतन सरकार पर अल्पमत का संकट आ गया। कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों ने अपने-अपने विधायकों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा। कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा ज्वाइन कर ली। उनके समर्थक सभी मंत्रियों ने बगावत का बिगुल फूंक दिया। सभी समर्थक विधायकों ने कहा & जहां महाराज वहां हम’।
कांग्रेस के इसे घटनाक्रम का प्रभाव जनता पर पड़ा। प्रदेश के नागरिक सवा साल पहले बनी इस कांग्रेस सरकार से उम्मीद कर रहे, कि अब समय है, जब चुनाव पूर्व किये वादों को सरकार पूरा करेगी, परन्तु उनके सपनों को साकार होने से पहले ही जैसे तुषारापात हो गया। समाचार पत्रों और टीवी में आने वाले समाचारों में बढ़-चढ़ कर दिखाया जा रहा है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने लगातार सिंधिया की उपेक्षा की कांग्र्र्रेस हाई कमाण्ड ने भी सिंधिया को मिलने का समय नही दिया। पार्टी द्वारा सिंधिया को लगातार किनारे किए जाने का प्रयास किया जाता रहा। ऐसे कई कारणों से सिंधिया कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ गये। यहां उनका भारी स्वागत हो रहा है। कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता उन्हें भला -बुरा कह रहे हैं। यह चर्चा का विषय है कि विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल का अगला कदम क्या होगा। कांग्रेस फ्लोर टेस्ट में फेल होगी या पास। फेल होने पर भाजपा सरकार बनाएगी, तब भाजपा मुख्यमंत्री सिंधिया समर्थक मंत्रियों, विधायकों और कार्यकर्ताओं का समायोजन कैसे करेंगी। सिंधिया तो केन्द्र की राजनीति में रहेंगे परन्तु उनके समर्थकों के बारे में एक नई समस्या भाजपा को झेलना होगी। गौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस और भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के व्यवहार और जीवन&शैली में काफी अन्तर रहता है। ऐसे में सामंजस्य बैठ पाना एक समस्या बनी रहेगी। यह भाजपा के लिए छोटी चुनौती नही है। फिर भी, पार्टी नियमों का पालन करना हर सदस्य का कर्तव्य है।
अब हम मूल विषय पर आते हैं। जनता की आंखे बाट जोह रही है कि सरकार उनकी सुने। किसानों की कर्ज माफी की समस्या है। उनकी खाद&बीज और उपज के समर्थन मूल्य वृद्धि जैसी समस्या है। बेराजगार युवक नौकरी पाने की आशा में है। नगरों और ग्रामीण क्षेत्रो में लंबित पड़े विकास पूरे होने की प्रतीक्षा वहां के नागरिकों के मन मे हैं। अतिथि शिक्षकों के नियमितीकरण, कर्मचारियों की समस्याओं का निराकरण, व्यापारियों और उद्योगपतियों की समस्याओं का समाधान, शिक्षा, स्वास्थ, विकार में जुड़े अनेक कार्य पूरे होने का सपना प्रदेश की जनता देख रही है। इधर, नेताओं के आपसी अहंकार और लोभ के कारण सरकार पर संकट आना, अनिश्चितता की स्थिति बनना क्या दर्शाता है? सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की। नुकसान किसका हो रहा है। लोकसभा, राजयसभा या विधानसभा हो, इनके संचालन में अवरोध पैदा करना, हंगामा करना, चलती हुई सरकार को गिरा देना। इन घटनाओं के परिणाम स्वरूप नेताओं की जय और पराजय होती है, परन्तु अंततोगत्वा हानि जनता की होती है। यदि मध्यावधि चुनाव की नोबत आती है तो आर्थिक भार सरकार पर पड़ता है। यह पैसा कर के रूप में सरकार को प्राप्त जनता का ही है। हर चुनाव में करोड़ों रूपये खर्च होते है। इसलिये हमारे नेताओं को यह समझना चाहिए कि अपने लोभ और अहंकार से उपर उठकर वे देशहित की पहले सोचें।

  • श्रीराम माहेश्वरी

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