सवाल 35-ए से स्वतंत्रता का

यतीन्द्र अत्रे

जम्मू कश्मीर में अतिरिक्त सैनिकों की बढ़ती तैनाती को लेकर अनेक संभावनाएं तलाशी जा रही है। राज्य में होने वाले चुनाव इसका कारण हो सकते हैं, यह भी कहा जा रहा है कि पहले से तैनात सैनिकों को आराम देने के लिए सामान्य प्रक्रिया के अंतर्गत यह कार्रवाई की जाती रही है। इसी बीच मीडिया चैैनल और कुछ बड़े समाचार पत्रों के माध्यम से यह भी खबर आ रही है कि यह कार्यवाई कहीं 35-ए की समाप्ति की और उठाए जाने वाला कदम तो नहीं है। उल्लेखनीय है कि 6 अगस्त को अनुच्छेद 35-ए को भंग करने के संदर्भ में दायर जनहित याचिका पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई होने वाली है। 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश पर अनुच्छेद 35-ए पारित हुआ था जिसे धारा 370 का ही एक भाग बताया गया था। यह अनुच्छेद जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा को राज्य में स्थाई निवास और विशेषाधिकार को तय करने का अधिकार देती है जब यह अनुच्छेद लागू किया गया था तब से लेकर आज की परिस्थितियां भिन्न है। वर्तमान में विसंगति का कारण यह हो सकता है कि देश के क्षेत्र के लिए अलग कानून और शेष हिस्सों के लिए अलग, यह किस दृष्टि से उचित होगा ? विशेषज्ञाों का इस संबंध में कथन है कि जब राष्ट्रपति की अनुमति से इसे संविधान में जोड़ा गया था तो उन्हीं की अनुमति से ही इसे समाप्त क्यों नहीं किया जा सकता है ? वहीं संसद में दो तिहाई बहुमत से सरकार भी इसे हटा सकती है, जिसमें राज्य के सहयोग की आवश्यकता नहीं होगी। एक ताजा खबर के अनुसार कश्मीरी नेता महबूबा मुफ्ती ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा है कि वे कश्मीर से छेड़छाड़ ना करें। अब जन सामान्य के मध्य बड़ा सवाल यह है कि क्या 35-ए की समाप्ति होगी ? संभव हो इसके समाप्त होने से वहां के स्थानीय लोगों को भी लाभ पहुंचे। दूसरे राज्यों के निवेश से उन्हें रोजगार मिलेगा जिससे बेरोजगारी के कारण वहां हो रही पत्थर मार की घटनाएं थमेगी। साथ ही कश्मीर घाटी से पलायन करने पर मजबूर उन लाखों हिंदू परिवारों को भी न्याय मिलेगा जिनके संवैधानिक अधिकारों की चर्चा भी आज नहीं होती है। एक तरफ कश्मीर घाटी में होने वाले विधानसभा चुनाव के मध्य कोई भी नेता इस संबंध में बोलने से परहेज कर रहा हैं तो दूसरी ओर वहां के कुछ युवा आज यह कहने लगे हैं कि अब हम शांति से हम जीना चाहते हैं समाचार पत्रों के माध्यम से मिल रही जानकारी के अनुसार वहां हालात तेजी से सामान्य हो रहे हैं। पर्यटन स्थलों पर उमड़ती भीड़ भी यही संकेत दे रही है सरकार को चाहिए कि वहां के निवासियों की खुशहाली और देश वासियों में समानता के अधिकार के तालमेल के साथ आगे बढ़ने के लिए कदम उठाएं।

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