सुविधाओं को लेकर उठते विरोध के स्वर

यतीन्द्र अत्रे

शासन की योजनाओं का लाभ सही रूप से अंतिम व्यक्ति तक पहुंच पा रहा है या नहीं इस कथन में हमेशा पारदर्शिता की अपेक्षा भ्रम की स्थिति ही निर्मित रही है, इसका ताजा उदाहरण मालवा, निमाड़ के आदिवासी अंचलों में देखने को मिल रहा है। समाचारों के अनुसार पिछले 6 माह में रतलाम, धार, झाबुआ, खरगोन और बड़वानी जिलों में आदिवासियों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर रैलियां आयोजित की गई है। भोपाल में भी इन्हीं आदिवासियों ने गत 10 फरवरी को शक्ति प्रदर्शन हेतु गर्जना डिलिस्टिंग महारैली का आयोजन किया था। बताया जा रहा है कि इनका अगला लक्ष्य दिल्ली होगा ताकि वर्ष 1970 से संसद में लंबित डीलिस्टिंग बिल को पारित कराया जा सके। जानकारों के अनुसार स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जाति और जनजातियों को आरक्षण का लाभ देने का प्रावधान संविधान में किया गया था। विधि विशेषज्ञों के अनुसार अनुच्छेद 341-1 में अनुसूचित जातियों के संबंध में व्याख्या की गई है जबकि 341-2 में जनजातियों के लिए प्रावधान रखे गए हैं। भ्रम की स्थिति यहां यह है कि अनुसूचित जाति से यदि कोई धर्म परिवर्तन करता है तो उसे सूची से डीलिस्टेड माना गया है जबकि जनजाति से धर्म परिवर्तन करने वाला व्यक्ति धर्म परिवर्तन के पश्चात भी आदिवासियों को मिलने वाली सुविधाओं का उपभोग करता रहेगा। विरोध के स्वर इसी कारण उठ रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस अभियान की शुरुआत 1967 में बिहार के जनजातीय नेता कार्तिक उरांव ने की थी, उन्होंने उस समय 235 तत्कालिक सांसदों का समर्थन भी जुटाया था लेकिन आदिवासी संगठनों के प्रवक्ताओं के यह प्रकरण आज तक लंबित है। जानकारी के अनुसार देश में मध्य प्रदेश आदिवासियों का गढ़ माना जाता रहा है, जिसमें सिर्फ मालवा और निमाड़ में आदिवासी भीलों की संख्या सबसे अधिक है। यह जाति अन्य की अपेक्षा सीधी-सादी मानी जाती है। जिन्हें सबसे अधिक प्रभावित बताया जा रहा है। इस अभियान में प्रमुख भूमिका निभा रहे जनजाति सुरक्षा संगठन की गतिविधियां अभी मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में संचालित बतायी जा रही हैं लेकिन शीघ्र ही सक्रियता अन्य राज्यों में भी बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है। मुद्दा सिर्फ सुविधाओं के लाभ लेने का नहीं है वरन धर्म परिवर्तन भी इससे जुड़ा हुआ है आदिवासी संगठनों द्वारा सरकार के पास उचित माध्यमों से संपर्क जारी है,खबर है कि महामहिम राष्ट्रपति को भी इस संदर्भ में ज्ञापन दिया गया है। उल्लेखनीय है कि विधान सभा चुनाव तथा उसके पश्चात लोकसभा चुनाव होने हैं। समस्या नासूर बन जाए इसके पूर्व उचित कदम उठाया जाना न्यायोचित होगा।


मो.: 9425004536

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