भोपाल। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय की लोकप्रिय कड़ी संग्रहालय लोकरुचि व्याख्यान माला के अंतर्गत, फ्रांस के प्रसिद्ध मनोवैज्ञाानिक, प्रो. सेर्गे ली गुइर्रिएक ने डॉन्यी-पॉलो ऑर सन, मून एंड़ ट्राईबल आर्ट इन कनेक्शन विथ द साइंस ऑफ मेगालिथिस्म इन एनसिएंट ब्रिटेनी’’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भारत का इतिहास केवल 2 यां 3000 वर्ष. पुराना नहीं है, अपितु इसके इतिहास के बारे में कई साक्ष्य प्राप्त हुए है जैसे उदारहणतः पूरे भारत में विभिन्न आदिम जनजाती के लोग एवं कई स्थानों पर पाई गई रॉक आर्ट पेंटिग्स (लगभग 10000 वर्ष पुरानी) इसमें समाहित है। समय के साथ लाखों वर्षां के दौरान संग्रहित किये गये ज्ञान का संचार पीढ़ी दर पीढ़ी इन आदिम जनजातियों लोगों में होता रहा है। इस दौरान भारत में कई घुसपैठ हुए जिनमें भारत की महत्वपूर्ण तथ्यों को नष्ट किया गया। इसी तरह की नीति भारत के अरूणाचल प्रदेश के लिये भी अपनाई गई थी किन्तु ईसाइ मिशनरी के भरोसे दिलाएं जाने एवं अपने संपूर्ण ज्ञाान को संग्रहित करके वहां की जनजातियों द्वारा इस नीति के खिलाफ एक सामजिक आंदोलन प्रारंभ किया गया जिसे दोनिया पोलियो अर्थात् सूर्य एवं चांद जो इन लोगों की विशेष संवेदनशीलता को दर्शाता है जिसके द्वारा वे यह जान पाते है कि उनका अस्तित्व केवल पृथ्वी माँ तक ही सीमित नहीं है अपितु समस्त ब्रहांड से है जिसमें लगभग सभी तत्व स्वतंत्र है और प्रकृति के साथ इस संबंध, भारत की जनजातियों एक विशेषता बतलाता है। लगभग 5000 बीसी के लगभग एक अनजान व्यक्ति द्वारा ब्रिटनी फ्रांस में 25 कि.मी. x 20 कि.मी. के आकार की स्टोन बुक बनाने का निश्चय किया गया जिसमें एस्ट्रो ज्योमेट्री, समय स्पेस एवं मनुष्य से संबंधित ज्ञाान के बारे में बतलाया गया। प्रो. गुइर्रिएक ने अपना व्यख्यान फ्रेंच भाषा में दिया जिसका धारा प्रवाह हिंदी में अनुवाद कर्नल पूरण सिंह राठौर ने किया। इस अवसर पर राजस्थान से मेजर सुरेन्द्र माथुर विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ सूर्य कुमार पांडे ने प्रो. गुइर्रिएक परिचय दिया एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. सरित कुमार चौधरी ने ब्रम्हांड की अवधारणा, समय की अवधारणा एवं सभ्यता की अवधारणा के बारे में बताया एवं मानव विज्ञान में लेविस-ट्रास द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत के उदहारण देते हुए मानव की मानसिक विचारो की एकता के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कार्यक्रम के अंत में संयुक्त निदेशक दिलीप सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।