डॉ. हरीश कुमार सिंह
अस्सी वर्ष की आयु में 22 मई 2019 को डा. शिव शर्मा ने सबसे बिदा ली । राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रख्यात व्यंग्यकार , राजनीतिक विश्लेषक और हास्य व्यंग्य के आयोजन टेपा सम्मलेन के प्रणेता के रूप में ख्याति प्राप्त डा. शिव शर्मा, अपनी मेहनत और काबलियत के दम पर शिवकुमार शर्मा से डा. शिव शर्मा बने । होता यूँ है कि अठारह वर्ष की उम्र में एक नौजवान राजगढ़ ब्यावरा , कस्बे से महाकाल की नगरी में पढने ,लिखने और रोजगार की तलाश में सिर्फ एक जोड़ी कपडे लेकर उज्जैन आता है और यहाँ बिना किसी जान पहचान के कोई ठिकाना न होने पर दिन में यहाँ वहाँ अपना समय व्ययतीत करते हुए अपनी रातें रेलवे स्टेशन पर बिताते हुए अपने भविष्य की शुरुआत करता है । उस समय के सिंहस्थ में भीड़ भाड़ में रेलवे वाले उन्हें टिकट कलेक्टरी की अस्थाई नौकरी में रख लेते हैं और शिव जी इस नौकरी के साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखते हैं। अपने करियर की शुरुआत डा. शिव शर्मा फिर पत्रकारिता से करते हैं तथा नवप्रभात, नईदुनिया, जागरण, हितवाद , पेट्रियाट से होते हुए आकाशवाणी के संवाददाता बन जाते हैं। माधव कालेज में छात्र के रूप में प्रवेश लेते हैं और राजनीति शास्त्र में पहले स्नातकोत्तर फिर डाक्टरेट कर लेते हैं। इसी माधव कालेज में वे प्राध्यापक बनते हैं और छात्रों के बीच लोकप्रिय हो जाते हैं । यह वह समय था जब शहर की राजनीति माधव कालेज से चलती थी और यहाँ के छात्र, कालेज राजनीति में सक्रिय रहकर, बाकायदा राजनीति में प्रवेश करते थे और तब माधव कालेज, प्राध्यापकों की विद्वता के कारण उनके नाम से जाना जाता था। अब समय आता है कि यही डा. शिव शर्मा , माधव कालेज के प्राचार्य बनते हैं। एक छात्र का उसी कालेज में पहले प्राध्यापक होना और फिर प्राचार्य बन जाना, एक बिरला ही उदहारण रहा है । जाहिर है कि तमाम कठिनाइयों, संघर्षों से जूझते हुए धीरे धीरे उज्जैन शहर में अपनी जानदार पहचान शिव शर्मा बना लेते हैं। इस प्रकार माधव कालेज का कार्यकाल डा. शिव शर्मा के लिए अद्भुत रहा चाहे वह छात्र के रूप में हो या प्राचार्य के रूप में। माधव कालेज के सौ वर्ष पूर्ण होने पर वर्ष 1998 में शताब्दी समारोह के भव्य आयोजन की रूपरेखा और क्रियान्वयन का श्रोय प्राचार्य के रूप में आपको ही मिला।
टेपा सम्मलेन की जो आज लोकप्रियता है उसके केंद्र में सिर्फ डा. शिव शर्मा हैं । टेपा के आयोजन का विचार उन्हें डा. प्रभात भटाचार्य के सानिध्य से आया। तब डा. शिव शर्मा, भटाचार्य जी के, प्रगाढ़ शिष्य हुआ करते थे और गुरु के सारे कार्यों में सबसे आगे खड़े रहते थे।
फिर शुरूआत होती है डा. शिव शर्मा के व्यंग्य लेखन की । प्रख्यात साहित्यकार कमलेश्वर ने जब नई कहानी आन्दोलन की शुरूआत की तो पत्रिका ‘सारिका’ के लिए शिव जी ने कहानी भेजी । कमलेश्वर जी ने कहानी का प्रकाशन करते हुए शिव जी को, कहानीकार बनने के लिए प्रेरित किया। शिव जी के गुरु डा. प्रभात भटाचार्य जी भी शिव जी को, कहानी लेखन में आगे रखना चाहते थे मगर शिव जी तो व्यंग्य के लिए बने थे। शिव जी बताते हैं कि प्रथम टेपा सम्मलेन की रपट जब उन्होंने ‘ टेपा हो गए टाप ‘ शीर्षक से धर्मयुग को भेजी तो वह छप गई और फिर धर्मयुग में उनके व्यंग्य प्रकाशित होने लगे। यह युग सम्पादक धर्मवीर भारती का युग था और उन्होंने शिव जी को व्यंग्य में ही बने रहने, लिखने को कहा और फिर शिव जी ने व्यंग्य को ही अपने लेखन का केंद्र बना लिया। डा. शिव शर्मा ने आजादी के बाद कई सिंहस्थ बहुत नजदीकी से देखे तथा बाबाओं के तम्बुओं का कोना कोना आपने छान मारा और फिर एक व्यंग्य उपन्यास ‘बजरंगा’ लिखा जिसमें बजरंगा राजगढ़ का वही नौजवान था, जो 1956 में उज्जैन आया और अपनी आँखों देखी घटनाओं को उपन्यास बजरंगा में उतारा।
वर्ष 1970 के दशक से व्यंग्य-लेखन में सक्रिय डा. शिव शर्मा के व्यंग्य संग्रहों में, ‘जब ईश्वर नंगा हो गया’, ‘चक्रम दरबार’, ‘शिव शर्मा के चुने हुए व्यंग्यश्’ ‘टेपा हो गए टाप’, श्कालभैरव का खाता’, श्अपने-अपने भस्मासुर’, ‘अध्यात्म का मार्केट’, ‘दुम की दरकार’ सम्मिलित हैं। आपका एक व्यंग्य एकांकी ‘थाना आफतगंज’ भी प्रकाशित हुआ है। डा. शिव शर्मा का पहला व्यंग्य उपन्यास- ‘बजरंगा’ था और दूसरा व्यंग्य उपन्यास ‘हुजूर-ए-आला’ (शिव शर्मा – रोमेश जोशी) 2016 में भारतीय ज्ञाानपीठ से प्रकाशित हुआ जो काफी चर्चित हुआ और उपन्यास डा. शिव शर्मा जी को यह पता होता है कि किससे कब और कितनी बात करनी है। किसे कब और क्यों सलाम करना है या उसके सलाम का जवाब देना है । अपनी सही और स्पष्ट राय व्यक्त करने में वे कतई देर नहीं करते फिर भले ही सामने वाले को उनकी बात बुरी ही क्यों न लग जाए । उनका हर निर्णय सोचा ,समझा और समय पर खरा उतरने वाला होता था। सदी में कुछ व्यक्वि अलग ही होते हैं जो एक बार ही जन्म लेते हैं । शिव जी, शिव जी थे और अब कोई दूसरा डा. शिव शर्मा भविष्य में धरती पर नहीं होगा। जिंदगी लंबी होने के बजाय महान होनी चाहिए। डा शिव शर्मा जी की जिंदगी लंबी भी रही और महान भी। शिव जी के जाने से व्यंग्य के एक युग का अवसान हो गया । उन्हें नमन ।
ऋषि नगर उज्जैन
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