यतीन्द्र अत्रे
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय। जब भी गुरु शिष्य परंपरा की बात होती है तब यह पंक्तियां सहज ही याद आ जाती है, जिसमें गोविंद के दर्शन गुरु के माध्यम से संभव होना बताए गए हैं साथ ही वे दृदृश्य भी स्मरण हो जाते हैं जो महाभारत, रामायण के साथ अन्य पौराणिक कथाओं में दर्शाएं गए हैं। जिसमें पेड़ के नीचे गुरु के द्वारा शिष्यों को ज्ञान देते हुए बताया गया है। तो क्या गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वहन मात्र शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही होता है? संबंधित विषय पर यदि हम परिचर्चा आयोजित करेंगे तब पाएंगे कि स्वाभाविक रूप से कुछ पक्ष में होंगे तो कुछ विपक्ष में स्कूली शिक्षा के दौरान हम हमारे नवनिहालों के लिए अच्छे से अच्छे स्कूल का चयन करते हैं, क्योंकि हम चाहते हैं की बचपन से उन्हें सही शिक्षा एवं दिशा मिले। मुझे स्मरण आता है कि जब मैं स्कूल में पढ़ता था तब हमारे गुप्ता सर बड़े ही सख्त एवं अनुशासन प्रिय हुआ करते थे। उनका एक कथन मुझे आज भी याद वे अक्सर कहा करते की तुम जिस जमीन पर खड़े हो वह जमीन नहीं रेत का ढ़ेर है इसमें तुम कभी भी धंस सकते हो। कक्षा पूरी होने के बाद हम सहपाठी उनके इस कथन को बार-बार दोहराते थे और खूब हंसते। आज जब मैं उस कथन को याद करता हूं तो समझ में आता है कि बाल मन बहुत ही कोमल होता है उस समय कोई भी दृष्टिकोण समझ में नहीं आता है, अच्छे बुरे की समझ नहीं होती जो भी दिशा मिलती हम उसी की तर्ज पर आगे बढ़ते हैं। उस दौरान यदि क्लास बंक की तो आगे पाठ पीछे सपाट… यानी कि उस समय गुरु का मार्गदर्शन और उनका अनुशासन कितना आवश्यक होता है। अब प्रश्न उठता है कि क्या ता उम्र हमें किसी गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है? उत्तर यह होना चाहिए कि शिक्षा के दौरान रहे गुरु तो हमेशा साथ नहीं होंगे, उन्होंने तो अपना कर्तव्य पूर्ण कर आपकी नींव मजबूत कर दी है। अब इमारत रूपी दृष्टिकोण क्या होगा यह आपको तय करना होगा। तो अब क्या नया गुरु तलाशेंगे? कहा जाता है कि गुरु तो हर मोड़ पर मिलते हैं बस आपको तलाशने की आवश्यकता है। कभी-कभी हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देते हैं, पदोन्नति होती है या कोई लंबित कार्य पूर्ण होता है और उस समय यदि हम उसका आकलन करें तो पाएंगे कि किसी वरिष्ठ या अनुभवी व्यक्ति द्वारा दिए सुझाव पर अमल करने से उक्त लाभ हमें प्राप्त हुआ। हमारी दृष्टि में उनके लिए सहज ही सम्मान की भावना उत्पन्न हो जाती है। यकीन मानिए बस वही व्यक्ति आपके जीवन में गुरु की भूमिका निभा रहा है। ऐसे गुरु जीवन में कदम-कदम पर आपके साथ होंगे, बस हमें उन्हें ढूंढने के लिए दिव्य दृष्टि की आवश्यकता होगी।
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