अखिल भारतीय साहित्य परिषद भोपाल इकाई द्वारा रचनापाठ कार्यक्रम आयोजित

भोपाल। अभासाप भोपाल इकाई की अध्यक्ष डॉक्टर नुसरत मेहदी ने की, उन्होने अपने उद्बोधन में कहा भारतीय जीवन परम्परावादी है, यहां ऋषि-मुनियों ने बहुत सोच विचार कर, ज्ञान, विज्ञान और समय की कसौटी पर सौ प्रतिशत कस कर कुछ परम्पराओं का निर्माण किया। ऐसी ही एक परम्परा है गुरु पूर्णिमा उत्सव की परंपरा।’ मुख्य अतिथि श्री ऋषिकुमार मिश्रा राष्ट्रीय महामंत्री अभासाप उपस्थित रहे, उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि साहित्य किसी प्राप्ति की कामना से नही लिखा जाता है। साहित्य शुद्ध, सात्विक भाव से लिखा हो तो समाज का कल्याण ही होता है। साहित्यकार के चिंतन की धारा नही रुकने चाहिए। कार्यक्रम में वरिष्ठ गीतकार व लेखक संघ प्रांताध्यक्ष डॉ. रामवल्लभ आचार्य जी का सम्मान परिषद के सदस्यों द्वारा किया गया। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहाकि- ऐसी अपनी बोलियाँ। जिनमें माटी की सुवास है, जिनमें जीवन का उजास है, ऐसी अपनी भाषायें हैं ऐसी अपनी बोलियाँ । मन के आँगन में रचतीं जो शब्दों की राँगोलियाँ। – डॉ. राम वल्लभ आचार्य ‘लोक साहित्य में गुरु शिष्य परम्परा’ विषय पर वरिष्ठ गीतकार डॉ. राजेंद्र शर्मा अक्षर जी ने वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा- लोक साहित्य मौखिक रूप से आगे बढ़ता रहता है आंचलिक बोलियों की मिठास इसकी विशेषता है। लोक साहित्य का वर्गीकरण पांच प्रकार से किया गया है- 1गीत ,2गाथा,3 कथा -कहानी, 4नाटक,5 कहावतें मुहावरे लोरी पहेलियां आदि। वर्गीकरण पर अलग-अलग विद्वानों की अलग-अलग राय है। बीज वक्तव्य परिषद की महामंत्री सुनीता यादव ने दिया,उन्होनें बताया कि परिषद प्रतिमाह कीर्तिशेष साहित्यकारों के साहित्यिक अवदान को स्मरण करती है, इस माह मुंशी प्रेमचंद को याद किया गया। भाषा की बात करते हुए उन्होंने कहा- ’भाषा को झाड़ गन्ने का झाड़ जैसा होत है। जामे ब्रज भाषा मिश्रा सी, बूँदी सी बुंदेली,बताशे सी बघेली, मालपुएँ से मालवी,और नौनी संग गुड़ की डली सी निमाड़ी मिठास लिए रहत है।’ कार्यक्रम का संचालन डॉ विनीता राहुरीकर ने, सरस्वती वंदना श्रामती ममता बाजपेई ने,परिषद गीत,परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष श्री धर्मेन्द्र सोलंकी ने,स्वागत गीत संस्कृत भाषा में श्री रमेश व्यास शास्त्री जी ने प्रस्तुत की। आभार परिषद के उपाध्यक्ष श्री प्रेमचंद गुप्ता ने किया। ’विभिन्न बोलियों के सभी रचनाकारों द्वारा रचनापाठ हुआ।’ अभासाप की राष्ट्रीय मंत्री डॉ. साधना बलवटे जी ने पढ़ा अंधों पीस न कुतरा खाय ज काय रे भाई क्यों छपरो फाड़ी न कमाय ज सांप घर सांप पावणो, न जीभ की लपालपी माउसेरा भाई न ख सच्चई पढाय ज? डॉ. कुमकुम गुप्ता ने बुंदेली में वर्ष भर के त्योहार का वर्णन किया। देखें जे बुंदेली त्योहार व्याह काज मंगलाचार श्री किशन तिवारी ने बुंदेली में पढा नदिया बहा ले गई हिम्मत नईं हारियो हरे भरे खेत सुनहरे सपने कितने बिराने कितने अपने फटे पुराने उन्ना लत्ता बिड़ी तमाखू चूना कत्था श्री सुरेश कुशवाह तन्मय ने अपनी रचना निमाड़ी में पढ़ी वादळा घहर घहर घहराय रे सजन मन की वात करो जीव म्हारो तुमरा बिना कंदराय रे सजन मन म उजास भरो।। श्री प्रदीप मणि तिवारी ‘धुव भोपाली’-बघेली, में पढ़ी। श्रीमती उषा चतुर्वेदी ने भदावरी में रचना पढ़ी अमवाँ तरे झूला जो डारो सावन में झूला पडेगे श्रीमती महिमा वर्मा श्रीवास्तव (मालवी) श्रीमती अंशु वर्मा (बुंदेली) बिरछा कटवे सें हमखां बचाउने जांगन तांगन पेड़ लगाउने। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में रचनाकार, साहित्यकार उपस्थित रहे।

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