आशीश खरे
भारत देश के आग्नेय कोण में एक ऐसा राज्य स्थित है जो अपनी संस्कृति, अपनी कलां, रीति रिवाज, रहन सहन के तौर तरीके, अपने यहां के पारम्परिक पहनावे के लिये ही नहीं बल्कि धर्म के प्रति लोगों की आस्था की गौरवशाली परम्पराओं को आज भी यहां यथार्थ रूप में देखा जा सकता है । यदि हम बात करें यहां पाये जाने वाले मिनरल और खनिज संपदा की तो, यह बात पूरी तरह से सच है कि प्रकृति ने इस राज्य को प्राकृतिक रूप से अनेकों सौगात से नवाजा है यही कारण है कि यह राज्य विकास की राह में तेजी से आगे बढ़ रहा है । इतना सब सुनने बाद तो सहज ही जान चुकें होंगे कि हम किस राज्य की बात कर रहें हैं? आज हम अपने इस श्रंखला में उड़ीसा राज्य के छोटे से ग्राम की बात करने जा रहे हैं।
ग्राम राउतपाड़ापुरी से मात्र 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सरकारी बस या अपने साधन से यहां आया जा सकता है । पुरी मंदिर में दर्शन करने के बाद यहां आकर इस गांव में भगवान जगन्नाथ, वलभद्र और बहिन सुभद्रा के अंगों के लिये बनाये जाने वस्त्र तैयार करने की पूरी प्रक्रिया को प्रत्यक्ष रूप से देख सकतें हैं । लगभग 650 बुनकरों के परिवार वाले इस गांव में प्रवेश करते ही हैण्डलूम की मशीनों निकलने वाली करतल ध्वनि की आवाजें सुनकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे आपके आने की खुशी में मंगल गीत गाये जा रहे हो और मशीन का हर पुर्जा भगवान जगन्नाथ की गौरव गाथा गाकर सुनाने के लिये आतुर हो रहा हो। जब आप इस करतल ध्वनि के बीच राउतपारा गांव में प्रवेश करते हो आपको यहां की हवा में, यहां की धरा के कण कण में, पेड़ों के पत्तों में और बहने जल की स्वर लहरियों में जगन्नाथ जगन्नाथ नाम का उदघोष गुंजायमान होने का आभास को महसूस किया जा सकता है । इस गांव के बारे में ऐसा कहा जाता कि भगवान जगन्नाथ साक्षात रूप इन बुनकरों साथ हमेषा यहां मौजूद रहते हैं, यह बात में लेखक होने के नाते मैं नहीं, बल्कि यहां के बुनकर और यहां आने उन पर्यटकों ने, जिन्होंने ऐसा महसूस किया है, उनका ऐसा कहना है ।



यहां के परिवार पिछले 30 सालों से महाप्रभु के वस्त्र बनाने में लगे हुये हैं । वस्त्र निर्माण की पूरी प्रक्रिया में घर का हर सदस्य जिसकी उम्र 10 की हो 95 साल की हो वो सभी किसी न किसी रूप में वस्त्र निर्माण में अपना अपना योगदान अपनी उम्र के हिसाब से देते आ रहा हैं, उनका मानना है कि उनको भगवान जगन्नाथ ने स्वयं उनकी सेवा करने का अवसर दिया है जिसे कर वे अपने आप को धन्य मानते हैं। यहां गरीबी चरम पर हैं लेकिन भगवान जगन्नाथ की ऐसी कृपा इन लोगों पर ऐसी बनी हुई है कि इस गांव को एक भी व्यक्ति को भूखे पेट नहीं सोना पड़ता है।
यहां पर आकर आप वस्त्र के धागे को कैसे बनाया जाता है, कैसे उसपर रंगकारी की जाती है और किन किन प्रक्रियाओं का सामना करने के बाद भगवान के वस्त्र तैयार होते हैं और यह भी जान पायेंगें कि एक वस्त्र बनाने में महीनों का समय क्यों लग जाता है ? यहां पर बने वस्त्रों गुणवत्ता देखते ही बनती है तभी इन वस्त्रों की कीमत हजार से लाख रूपये तक होती है और गुणवत्ता ऐसी की देखते ही रह जाये। यहां पर यह बात भी बताना जरूरी है महाप्रभु के वस्त्र सात दिन के हिसाब से सात अलग अलग रंगों में तैयार किये जाते हैं और दिन में तीन से बार महाप्रभु के कपड़े बदले जाते हैं। प्रति लगभग 216 मीटर कपड़े की खपत हो जाती है ।
हर वर्ष निकले वाली रथयात्रा के लिये विशेष वस्त्र तैयार किये जाते हैं । राउतपारा में बुनकर का कार्य करने वाले सभी बुनकरों को मंदिर द्वारा बनाई समिति बनाने का आर्डर देती है और उसी के अनुरूप बुनकर वस्त्र तैयार कर समिति को देते हैं । इसका सबसे बड़ा फायदा बुनकरों को हुआ है और हर माह एक निश्चित आय के रूप में एक परिवार 15 से 20 रूपये की आमदानी प्राप्त कर लेता है ।
यह बात तो तय हो गई है कि पूरी के मंदिर में बिराजे महाप्रभु जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहिन सुभद्रा के लिये बनाये जाने वाले आकर्षक और आम जनता को मोहित कर देने वाले वस्त्रों को बनते देखना भी अपने आप में महाप्रभु के साक्षात दर्शन करने के बराबर माना जाता है । तो यदि आ रहे है पूरी दर्शन करने के लिये तो राउतपाड़ा आना मत भूलियेगा । अलविदा आगे के अंकों में उड़ीसा के बारे में ओर भी बहुत कुछ ।
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