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।। अथ श्री गणगौर चालीसा ।।

विजय जोशी ‘शीतांशु’

ममता की मूरत सदा,मात मंगल प्रवेश ।

गौर गणगौर में बसे,शिवम गौरा गणेश।।

लाल जोड़ा खूब सजे, रणुबाई को वेश

चार धाम पग-पग चले, बसी निमाड़ प्रदेश

नमो नमो शुभ मंगल  करणी।

नमो नमो धन धारण धरणी ।। १।

रूप  गणगौर , गौरा  प्यारी।

है निमाड़ में, महिमा न्यारी।। २।

हरा  जवारा,  मुख  हरियाला।

तपन काल ज्यों शीतल प्याला।।३।

रूप  गणगौर,  गौरी पाए।

शिव शंकर के संग सुहाए।।४।

चैती  ग्यारस  मूठ  धरावे।

मातु अमावस दरश दिखावे।।५।

केशर, कस्तूरि  लेप लगावे।

तीज तिथि पर पाट बैठावे।।६।

घर-घर गाँव में, रथ सजाएं।

धूम धाम से, माता लाएं।। ७।

तुम निमाड़ की सुंदर बाला।

धन धान्य देती, जग पाला।।८।

लोक  देवी  गणगौर माता।

रणुबाई में मन रम जाता।।९।

तुम्हीं  ईश की  गौरा प्यारी।

महिमा  अपरम्पार तुम्हारी।।१०।

कली काल के सब दुःख हारी।

बसी निमाड़-मालवा  प्यारी।।११

भगत  सदा गौरी गुण गाए।

सूरीमल राजा, नित ध्याए।।१२।

धनियर राजा सद्गुण गावे।

रणुबाइ को सम्मान बढ़ावे।।१३।

अन्न में रहे, वास तुम्हारा।

दीन हीन को सदा उबारा।।१४।

बाल रूप सखियन को प्यारा।

अमराई  में  वास  तुम्हारा।।१५।

चैत्र मास परगट भई अम्बा।

जाग रूप लियो माँ जगदम्बा।।१६।

बेटी निमाड़  की   रणुबाई।

मौली  राज  संग  परणाई।।१७।

तुम्हीं निमाड़ में  सयत रानी।

सुरिमल राजा की पटरानी।।१८।

रेवा तट पर, धाम बनाया।

माहिष्मति में उत्सव छाया।। १९।

सजे यहाँ गणगौरा न्यारी।

झालरियाँ देते नर- नारी।।२०।

चौक बाजार,  माता आए।

नृत्य भैरवी,  मन को भाए।। २१

धन्य धरा  माहिष्मति  पावे ।

रेवा-तट  रणु  बाई  आवे।। २२।

सप्त मातृका,  दुर्गा रानी।

रक्षक भैरव माता भवानी।।२३।

जसलमेर में तुम पूजावत।

बिना ईसर गणगौर गावत।।२४।

बीकानेर  में  संग  ईसर।

निकले सवारी माता गवर।।२५।

रूप हरालों अधिक सुहावे

भक्त जनों के मन अति भावे।।२६।

आम नीम की  बगिया साजे

मातु गणगौर, आन विराजे।।२७।

माता को वापस घर लाए।

मन्नत लेकर , रथ बौढ़ाए।।२८।

सजे कण्ठ मोतीयन माला।

गणगौर मातु रूप निराला।।२९।

रंग- बिरंगी   चुनरी  धारे।

सोलह श्रृंगार तुम्हें प्यारे।। ३०।

 हाथ कंगन,कमर काँदोरा।

कर्ण कुंडल, केश पे बोरा।३१।

साड़ी महेश्वर, की प्यारी।

पहन रणुबाइ गोट किनारी।।३२।

पग में पायल, छम छम बाजे।

हाथ  मेहँदी सुंदर साजे।। ३३।

कुंकुम टिका,रणु बाइ धारी।

बेटी निमाड़ की, लग न्यारी।।३४।

सेगावां  में तुम्हीं  विराजत।

अनुप-लोक में डंका बाजत।३५।

लक्ष्मी रूप, काली जग माई।

जगत  अन्नपूर्णा,  कहलाई।३६।

जाग में बसे, शक्ति तुम्हारी

चैत्र  मास,  पूजे नर नारी।३७।

प्रेम भक्ति से विजय मनावे।

गुड़ चावल का भोग लगावे ।।३८।

ले जीवन मुक्ति की लालसा

नित पढ़े विजय,यह चालीसा।।३९।

माँ  कर   मनोकामना  पूरी।

इच्छा रहे, न कोई अधूरी ।।४०।।

                   -दोहा-

शिव पार्वती ने  धरा, मात गणगौर  रूप

जगत जननी जगदंबा, माँ के कितने रूप,

!! इति श्री गणगौर चालीसा !!

महेश्वर जिला खरगोन

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