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सपनें

विपिन चन्द्र साद

आखों को बंद करते ही
कई चलचित्रों कि भांति
दिनचर्या से मेल खाते
आखों कि दुनिया मे
बसते है
सपनें
बनते है, बिगडते है,
आंख खुलते ही
वास्तविक रूप मे
मिल जाते है,
सपनें,
जो कभी पूरे नही होते,
पूरे होने के आभास,
प्रतीत होते है,
सपनें,

446 प्रणाम सिटी 2
खंडवा

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