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सांची विश्वविद्यालय में योग ध्यान शिविर

भोपाल। साँची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित ध्यान शिविर के दूसरे दिन वैश्वनार ध्यान के बारे में बताया गया।

योग एवं आयुर्वेद विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉक्टर उपेंद्र बाबू खत्री ने कहा कि वैश्वानर का अर्थ विश्व का नर अर्थात् जो संपूर्ण जगत है वह वैश्वानर ही है जो जागृत अवस्था का देवता है।  योग शिविर में आज माण्डूक्य उपनिषद के प्रथम तीन श्लोक का अर्थ सहित पाठ पारायण कराया गया।

मांडूक्य  उपनिषद के अंतर्गत परब्रह्म के चार पाद बताए गए। जिस प्रकार समुद्र के चार किनारे समुद्र से अलग नहीं है ,उसी प्रकार यह चार पाद एक दूसरे से अलग नहीं  हैं । जिसमें से पहला पाद वैश्वानर ही है । डॉ. खत्री ने बताया कि वैश्वानर ध्यान के अंतर्गत जो भी हलचल प्रतिक्रिया संवेदना विचार उत्पन्न होते हैं , उसे दृष्टा भाव से देखना व ग्रहण करना है बिना कोई प्रतिक्रिया किए l

डॉ. उपेंद्र बाबू खत्री ने कहा कि ध्यान के दौरान अगर कोई विचार आए , तो उसे रोकना नहीं है उसे भी दृष्टा भाव से देखना है। चाहे विचार सकारात्मक हो या नकारात्मक। प्रयास करना है कि कोई प्रतिक्रिया ना हो। विचारों को उत्साह पूर्वक ग्रहण करना है।

डॉ. खत्री द्वारा वैश्वानर के अंतर्गत नाम रूप के विषय में बताया गया। उन्होंने कहा कि साधारण मनुष्य नाम रूप में फँसा रहता है ,परंतु वह स्वयं ही परब्रह्म  है।

योग विभाग की टीम ने शिविर में आकर योग करने वाले लोगों को ओम की चार मात्रा अकार, उकार , मकार और अनुस्वार के विषय में बताया।अकार जागृत अवस्था से संबंधित है। ध्यान के अभ्यास से पहले ध्यान में उपयोगी आसन कराए गए इसके पश्चात 25 मिनट ध्यान का अभ्यास कराया गया।

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