अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस हर वर्ष 30 जुलाई को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है – विश्व में मित्रता, आपसी समझ, शांति और सौहार्द को बढ़ावा देना। अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस का इतिहास: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2011 में 30 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस के रूप में मान्यता दी। इसका उद्देश्य संस्कृति, जाति, धर्म, रंग जैसी सभी सीमाओं को पार करके मानवता को जोड़ने वाले मित्रता के भाव को प्रोत्साहित करना है। हर वर्ष दोस्ती के भाव को जिन्दा रखने के लिए एवं दोस्ती के पलों को यादगार बनाने के लिए अंतराष्ट्रीय मित्रता दिवस मनाया जाता है।
योग गुरु अग्रवाल नें मित्रता: एक आध्यात्मिक मूल्य के बारे में बताया कि भारतीय संस्कृति में मित्रता को केवल सामाजिक संबंध नहीं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्व दिया गया है। जैसे: भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता:- जो निःस्वार्थ और आत्मिक थी। राम और सुग्रीव – धर्म और न्याय पर आधारित मित्रता। कृष्ण और अर्जुन -जहाँ मित्र ही गुरु बन गया और जीवन का मार्गदर्शन किया। योग, धर्म और मित्रता का संबंध: योग हमें सिखाता है – मैत्री भाव विकसित करना। धर्म हमें सिखाता है – सहयोग, समर्पण और सत्यता से संबंध निभाना। मित्रता इन दोनों का समन्वय है – जहाँ प्रेम के साथ आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।
अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस पर करें ये संकल्प: मित्रों के साथ सत्संग करें। उन्हें सच्चे प्रेम, विश्वास और समझ के साथ अपनाएँ। संबंधों में योग के सिद्धांतों (सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह) को उतारें। केवल मनोरंजन नहीं, आत्मिक विकास के लिए मित्रता निभाएँ। अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि मित्रता केवल समय बिताने के लिए नहीं, बल्कि जीवन को सार्थक बनाने के लिए होती है। जब मित्रता में योग का संतुलन, अध्यात्म की गहराई और धर्म का पथ जुड़ जाता है, तब वह केवल रिश्ता नहीं, एक जीवन साधना बन जाती है।
मित्रता केवल साथ बैठकर हँसने, बातें करने और समय बिताने का नाम नहीं है। यह एक ऐसा आध्यात्मिक बंधन है, जो आत्मा से आत्मा का मेल कराता है। जिस प्रकार योग शरीर, मन और आत्मा को एक सूत्र में बाँधता है, उसी प्रकार सच्ची मित्रता दो आत्माओं को जोड़ती है – निस्वार्थ प्रेम, समझ और सहयोग के माध्यम से।
योग कहता है – “संगं गच्छध्वं”, अर्थात् मिलकर चलो। यह केवल शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन के हर रिश्ते में संतुलन और सामंजस्य का संदेश है। मित्रता भी एक प्रकार का योग है – संगति योगः – जिसमें हम अपने अहंकार को छोड़कर दूसरे के भाव में एकाकार हो जाते हैं।
जब हम ध्यान करते हैं, तो आत्मा की शांति में उतरते हैं। उसी प्रकार एक सच्चा मित्र हमें भीतरी शांति प्रदान करता है – जब हम उसके साथ होते हैं, तो तनाव कम होता है, मन हल्का लगता है, और ऊर्जा बढ़ती है। क्या यह किसी ध्यान से कम है ?
आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो हर मित्र हमारे जीवन में किसी उद्देश्य से आता है। कुछ हमें सिखाते हैं, कुछ हमारी परीक्षा लेते हैं, और कुछ हमारे जीवन के सच्चे सहयात्री बनते हैं। ऐसे मित्र दुर्लभ होते हैं, जिन्हें “सहज योगी” कहा जा सकता है – जो बिना प्रयास के आपके मन और आत्मा से जुड़ जाते हैं।
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन की मित्रता एक श्रेष्ठ उदाहरण है – जहाँ मित्र न केवल साथ देता है, बल्कि धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है। इस मित्रता दिवस पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने मित्रों के साथ केवल समय ही नहीं, बल्कि सच्ची संवेदना, सत्य, और आध्यात्मिक ऊर्जा भी साझा करें।
“मित्रता: आत्मा की यात्रा में साथ चलने वाला सच्चा संबंध” – मित्रता में भी योग है, जहाँ दो आत्माएँ मिलकर एक शक्ति बन जाती हैं। यही सच्ची संगति है, यही आध्यात्मिक मैत्री है।
योग गुरु अग्रवाल नें बताया कि मित्रता: योग, अध्यात्म और धर्म की पवित्र यात्रा है। मित्रता एक ऐसा रिश्ता है जो जन्म से नहीं, प्रेम, विश्वास और आत्मीयता से बनता है। यह एक आध्यात्मिक संगति है – जहाँ दो आत्माएँ न केवल एक-दूसरे का साथ देती हैं, बल्कि जीवन के गूढ़ अर्थ को खोजने में सहायक बनती हैं। भारतीय संस्कृति में मित्रता को केवल सामाजिक नहीं, बल्कि धार्मिक, योगिक और आध्यात्मिक मूल्य माना गया है।
योग और मित्रता का संबंध – योग का अर्थ है – “युज”, अर्थात् जोड़ना। जैसे। जैसे योग शरीर, मन और आत्मा को जोड़ता है, वैसे ही सच्ची मित्रता दो आत्माओं को एक-दूसरे से जोड़ती है। पतंजलि योगसूत्र में कहा गया है – “मैत्री करुणा मुदितोपेक्षाणि सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भावनात: चित्तप्रसादनम्”(योगसूत्र 1.33) अर्थात् – मैत्री, करुणा, आनंद और उदासीनता जैसे भावों का अभ्यास चित्त को प्रसन्न करता है। मित्रता को यहाँ योग के माध्यम से मानसिक शुद्धि और स्थिरता का साधन माना गया है। जब हम सच्चे मित्र बनते हैं, तो हमारे अंदर करुणा, सहानुभूति और सहयोग की भावना स्वतः विकसित होती है, और यही योग का मूल उद्देश्य है।
अध्यात्म में मित्रता की भूमिका – अध्यात्म आत्मा की यात्रा है – स्वयं को जानने और ईश्वर से जुड़ने की साधना। इस यात्रा में एक सच्चा मित्र कभी-कभी “साक्षी” बनता है, जो हमें हमारे आंतरिक सत्य से परिचित कराता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था –”True friendship is when two souls meet beyond selfish needs and help each other grow towards the Divine.” एक आध्यात्मिक मित्र हमें आत्म-निरीक्षण, आत्म-स्वीकृति और आत्मोन्नति के मार्ग पर प्रेरित करता है। वे केवल हमारी खुशियों में नहीं, हमारी साधना और संघर्षों में भी सहभागी होते हैं।आध्यात्मिक मित्र की विशेषताएँ: वह आलोचना नहीं करता, प्रोत्साहित करता है। वह सत्संग देता है, गपशप नहीं। वह आपकी आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है। वह आवश्यकता पड़ने पर आपको आपके “धर्म” की याद दिलाता है। धार्मिक उदाहरण – कृष्ण और अर्जुन की मित्रता, महाभारत में श्रीकृष्ण और अर्जुन की मित्रता धार्मिक, आध्यात्मिक और कर्मयोग का सर्वोत्तम उदाहरण है। जब अर्जुन युद्ध भूमि में मोह और विषाद से भर गए, तब एक सच्चे मित्र के रूप में श्रीकृष्ण ने उन्हें “सांख्य योग”, “कर्म योग” और “भक्ति योग” के माध्यम से धर्म का वास्तविक स्वरूप समझाया। श्रीकृष्ण ने कहा –”सखा चेति मम सखा त्वं असि, अतः ते हित्तार्थं वक्ष्यामि”(भगवद्गीता 2.7) अर्थात – “तू मेरा प्रिय सखा है, इसलिए मैं तेरे हित की बात कहता हूँ।”यहाँ भगवान भी पहले सखा बनते हैं, फिर गुरु – यही मित्रता की श्रेष्ठता है। रामायण में मित्रता – राम और सुग्रीव भगवान श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता एक ऐसा उदाहरण है जहाँ मित्रता का उद्देश्य केवल साथ देना नहीं, धर्म की स्थापना में सहायक बनना था। राम ने सुग्रीव की सहायता की और बदले में सुग्रीव ने राम को सीता माता की खोज में मार्गदर्शन दिया। यह धर्म-मित्रता का अनुपम उदाहरण है। मित्रता का आधुनिक स्वरूप – योग साधकों के लिए संदेश आज के युग में मित्रता को केवल सोशल मीडिया, चैट और सेल्फी तक सीमित कर दिया गया है। लेकिन यदि हम योग और अध्यात्म को जीवन का हिस्सा बनाएँ, तो मित्रता भी गहराई प्राप्त करेगी। योग कक्षा में मिलने वाले साथी, ध्यान सत्र में साथ बैठने वाले साधक – ये सभी संभावित आध्यात्मिक मित्र हो सकते हैं।
कुछ योगिक मित्रता सूत्र: साथ योग करें, साथ ध्यान करें – यह मित्रता को ऊर्जावान बनाएगा। मित्र की आत्मिक उन्नति में सहायक बनें – उसकी साधना में बाधा नहीं, प्रेरणा बनें। मित्रता में सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह को अपनाएँ – ये यम-नियम हैं, जो योग का आधार हैं। एक-दूसरे के दोष न गिनें, गुणों को पोषित करें – यही सच्चा ‘मैत्री भाव’ है। मित्रता एक दिव्य उपहार है, जो जब योग, अध्यात्म और धर्म से जुड़ती है, तो केवल मनोरंजन नहीं, मोक्ष मार्ग का साथी बन जाती है। आइए, इस मित्रता दिवस पर हम सभी न केवल नए मित्र बनाएँ, बल्कि पुराने संबंधों को भी योग की ऊर्जा से पोषित करें। क्योंकि जब मित्रता में योग होता है, तो वह केवल हृदय से नहीं, आत्मा से निभाई जाती है।
योग गुरु अग्रवाल नें बताया कि कार्य में प्रेरणा, श्रेष्ठता, स्वस्थ शरीर , ताकतवर मन मस्तिष्क और आत्मविश्वास के लिए दोस्त जरुरी। मित्रता वह भावना है जो दो व्यक्तियों के हृदयों को आपस में जोड़ती है! जो पुरे संसार को एक साथ बांधे रख सकती है। अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है। दोस्त वह जो आपके अतीत को जानता है, आपके भविष्य में विश्वास करता है और आपको वैसे ही स्वीकार करता है जैसे आप है दोस्त खेल खेल में आपको परिपक्व और स्वस्थ बनाते हैं । वो जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने की ऊर्जा और उत्साह देते हैं | बचपन की दोस्ती शरीर से स्वस्थ बनाती है। बचपन में दोस्तों के साथ बिताया गया समय और खेल आपको जीवनभर के लिए स्वस्थ बनाता है। बचपन में जो दोस्ती हमने बहुत आसानी से खेल खेल में बना ली थी, उसके स्वास्थ्य लाभ हमें तब भी मिलते रहते हैं, जब हम वयस्क हो जाते हैं। बचपन में आप अपने सबसे अच्छे दोस्तों के साथ खेलने में जितना अधिक समय बिताएंगे वयस्क होने पर आपको उसका फायदा संतुलित वजन और सही रक्तचाप के रूप में उतना ही अधिक मिलेगा।
जवानी की दोस्ती मन से ताकतवर बनाती है। दोस्त हमारे व्यक्तित्व को विकसित करते हैं। वे हमारी थॉट प्रोसेस, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं। मित्र आपको आत्म-विश्वास देते हैं और उनकी वजह से आप खुद की नजरों में ऊपर उठते हैं। दोस्त तनाव से होने वाले शारीरिक और मानसिक नुकसान को कम करते हैं। अगर तनाव के समय आप दोस्तों के साथ समय बिताएं तो स्ट्रेस हार्मोन कार्टिसोल का स्तर कम होगा। जो लोग नर्सिंग, पुलिस या ऐसे ही अन्य तनावभरे पेशे में हों तो उनका दोस्ती का नेटवर्क अच्छा होना चाहिए ताकि वे तनाव को बेहतर हैंडल कर सकें। जो लोग दोस्तों के साथ अधिक समय बिताते हैं उनमें कॉलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है। इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है।
बुढ़ापे की दोस्ती दिमाग से सेहतमंद बनाती है। मजबूत दोस्ती आपके मस्तिष्क को हमेशा चौकन्ना बनाए रखती है। अगर 80 साल की उम्र में भी आपके दोस्तों से संबंध और संपर्क है तो आपकी याददाश्त 40 साल की उम्र के व्यक्ति के समान हो सकती है। जिन बुजुर्ग महिलाओं का दोस्ती का सर्कल व्यापक होता है उनकी याद रखने, नई चीजें सीखने, ध्यान केंद्रित करने और निर्णय लेने की क्षमता बेहतर होती है। जिन लोगों को बुढ़ापे में भी दोस्तों का साथ मिलता है उनमें डिमेंशिया का खतरा कम होता है। दोस्ती ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखती है। अधिक दोस्त यानी गंभीर बीमारी से निकलकर फिर सेहतमंद होने की संभावना अन्य की तुलना में दुगनी अधिक।
योग अभ्यास में सूर्य नमस्कार के मंत्र ॐ मित्राय नमः का मतलब जैसे सूरज हमारा सच्चा दोस्त है। एक सच्चे साथी की तरह हमसे प्यार करता है। हमेशा हमारे साथ रहता है। हम पर खुशियों बरसाता है। उनकी अनुपस्थिति में हम उसको बहुत याद करते हैं। जिस प्रकार सूर्य मित्रवत व्यवहार करते हुए सभी को समान रुप से अपनी गर्मी के साथ पेड़ों की शीतल छाया शीतल जल एवं उजाला देता हैं हमें भी इसी प्रकार लोगो के साथ सच्ची मित्रता रखते हुए व्यवहार करना चाहिये।
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