इंजी. महक कछावा
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence – AI) आज 21वीं सदी की सबसे क्रांतिकारी खोजों में से एक है। यह केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि मानव जीवन की दिशा, दशा और सोच में परिवर्तन लाने वाला तत्व बन चुका है। चिकित्सा से लेकर शिक्षा, उद्योग से लेकर मनोरंजन और रक्षा से लेकर घरेलू कार्यों तक—AI का प्रभाव व्यापक, तीव्र और गहरा हो रहा है। परंतु यह प्रभाव केवल सुविधा तक सीमित नहीं, इसके सामाजिक, नैतिक और भावनात्मक पहलू भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। 21वीं सदी तकनीकी विकास की दृष्टि से अभूतपूर्व साबित हो रही है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence – AI) आज हमारे जीवन के हर क्षेत्र में अपनी गहरी छाप छोड़ रही है। शिक्षा-जैसे मानवीय और संवेदनशील क्षेत्र में भी AI ने क्रांति ला दी है। स्मार्ट क्लासरूम, पर्सनलाइज़्ड लर्निंग, चैटबॉट्स और वर्चुअल असिस्टेंट्स ने शिक्षण के पारंपरिक तरीकों को चुनौती दी है। ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है—AI के युग में शिक्षक की भूमिका क्या रह गई है? क्या वे अप्रासंगिक हो जाएंगे या उनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी?
AI और शिक्षा प्रणाली में बदलाव
AI शिक्षा में बहुआयामी परिवर्तन लेकर आया है:
व्यक्तिगत शिक्षण (Personalized Learning): AI हर विद्यार्थी के सीखने के स्तर और गति के अनुसार सामग्री प्रस्तुत करता है।
आकलन और मूल्यांकन (Assessment): AI आधारित टूल्स विद्यार्थियों के प्रदर्शन का विश्लेषण कर त्वरित और सटीक फीडबैक देते हैं।
डाटा एनालिटिक्स: छात्रों के प्रदर्शन, उपस्थिति और व्यवहार का विश्लेषण कर शिक्षकों को निर्णय लेने में मदद मिलती है।
ऑनलाइन शिक्षण: AI आधारित प्लेटफॉर्म जैसे Coursera, Khan Academy या ChatGPT विद्यार्थियों को 24×7 शिक्षा की सुविधा देते हैं।
AI से शिक्षक की भूमिका पर प्रभाव
AI के आगमन ने शिक्षक की पारंपरिक भूमिका को चुनौती तो दी है, लेकिन समाप्त नहीं किया। बल्कि शिक्षकों की भूमिका में एक परिवर्तन हुआ है:
ज्ञान प्रदाता से मार्गदर्शक तक
पहले शिक्षक ज्ञान के प्रमुख स्रोत थे, अब छात्र इंटरनेट और AI से जानकारी पा सकते हैं। ऐसे में शिक्षक का कार्य सूचनाओं को दिशा देना, उन्हें समझने और सही उपयोग की बुद्धिमत्ता विकसित करना बन जाता है।
संवेदनशीलता और नैतिक शिक्षा का संवाहक
AI में भावनाएं नहीं होतीं। शिक्षक ही हैं जो विद्यार्थियों में मानवता, नैतिकता, करुणा, सहिष्णुता और जिम्मेदारी जैसी मूल्यवान बातें संप्रेषित करते हैं।
21वीं सदी के कौशल का प्रशिक्षण
शिक्षकों को अब केवल पाठ्यक्रम पढ़ाना ही नहीं, बल्कि सृजनात्मक सोच, आलोचनात्मक विश्लेषण, सहयोग और नेतृत्व जैसे कौशल विकसित करने में मार्गदर्शन देना होता है, जो AI नहीं कर सकता।
भावनात्मक सहयोगी
जब विद्यार्थी मानसिक तनाव, भ्रम या असमंजस में होते हैं, तब एक शिक्षक ही उन्हें भावनात्मक संबल और समझदारी भरी सलाह दे सकता है। AI ऐसा मानवीय स्पर्श नहीं दे सकता।
भविष्य में शिक्षक की अपेक्षित भूमिका
AI के बढ़ते प्रभाव के बीच शिक्षकों को भी स्वयं को पुनः प्रशिक्षित (Re-skill) और अद्यतन (Up-skill) करना होगा-
तकनीकी दक्षता: शिक्षक को AI टूल्स, वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स और डेटा विश्लेषण की समझ होनी चाहिए।
सहयोगात्मक शिक्षण: AI को सहयोगी के रूप में अपनाते हुए शिक्षकों को तकनीक का रचनात्मक उपयोग करना होगा।
जीवन पर्यंत शिक्षा का मॉडल: शिक्षक को “सीखते रहना” चाहिए ताकि वे बदलते युग के साथ कदम मिला सकें।
नवाचार और रचनात्मकता के प्रेरक: शिक्षक को ऐसी शिक्षा देनी होगी जो विद्यार्थियों को नई सोच, समाधान और समाज के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने में सक्षम बनाए।
AI मानव जीवन का अटूट हिस्सा बन चुका है। यह हमारे कार्य करने, सोचने और जीने के ढंग को बदल रहा है। इसका प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों है—यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसका उपयोग मूल्य आधारित, न्यायसंगत और विवेकपूर्ण तरीके से करें। जहाँ AI हमारे हाथों में एक शक्ति है, वहीं यह हमें याद दिलाता है कि “हर तकनीक तब तक उपयोगी है, जब तक वह मानवता के मूल्यों के अधीन है। ”AI युग में शिक्षक की भूमिका समाप्त नहीं, और भी अधिक महत्वपूर्ण और बहुआयामी हो गई है। AI केवल एक सहायक है, मानवता, नैतिकता और संवेदनशीलता के मूल्यों का संवाहक केवल शिक्षक ही हो सकता है। जहाँ AI सीमित है, वहीं शिक्षक असीमित संभावना का स्रोत हैं। इस नई शैक्षिक व्यवस्था में शिक्षक को एक मार्गदर्शक, प्रेरक और मानवीय मूल्य आधारित नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभानी होगी।
अंततः यही कहा जा सकता है — “AI शिक्षण को स्मार्ट बना सकता है, पर शिक्षकों का स्थान नहीं ले सकता।”
लेखक के ये अपने विचार हैं।
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