दीपक चाकरे
सुस्त हो, बैठा मुसाफिर,
सुस्ताना तेरा काम नही?
अभी तो सफ़र बाकी है,
यह आखिरी मुकाम नही?
बहुत लम्बा है रास्ता,
अभी तो तुझको चलना है।
अभी रोशनी सूरज की,
रात में दीया बन जलना है।।
बहकने ना देना कदम,
यह दिवानो की शाम नही?
सुस्त हो बैठा मुसाफिर,
सुस्ताना तेरा काम नही?
धर धरा पे पग तू,
भूचाल भी थर्राने लगे।
ज्वाला बरसा आंखों से,
कब्र से रूह निकलने लगे।
तू फरिश्ता,तू निर्मिता,
कायरो का गिरेबान नही?
सुस्त हो बैठा मुसाफिर,
सुस्ताना तेरा काम नही?
तू वीरों की शान है,
तू ॠषियों की संतान हैं।
आने वाले युग की,
तू ही सही पहचान है।।
उठा कमान लगा निशाना,
लक्ष्य से चूके ऐसा बाण नही?
सुस्त बैठा मुसाफिर,
सुस्ताना तेरा काम नही?
अविरल बहती नदियां,
कल कल करती धारा।
फतेह कर हर अवरोध को,
देना होगा जवाब करारा।।
फड़कने दे बाजुओं को,
ठण्डी रगो का काम नही?
सुस्त हो बैठा मुसाफिर,
सुस्ताना तेरा काम नही?
मिटना तो सबको है,
हम मिट जायेंगे एक दिन।
शत्रुदल को कर तहस नहस,
बैठे बैठे तू सांसे न गिन?
मातृभूमि का लाल तू,
वतन फरिश्ता तू आम नही?
सुस्त हो बैठा मुसाफिर,
सुस्ताना तेरा काम नही?
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