महेश अग्रवाल
योग गुरु महेश अग्रवाल ने गाँधी जयंती और विश्व अहिंसा दिवस का महत्व बताया कि हर वर्ष 2 अक्टूबर को भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया महात्मा गाँधी को स्मरण करती है। यह दिन केवल गाँधी जयंती के रूप में ही नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह हमें सत्य, अहिंसा, शांति, करुणा और आत्मसंयम जैसे उन मूल्यों की याद दिलाता है जो न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए आवश्यक थे, बल्कि मानव जीवन को स्वस्थ, संतुलित और सार्थक बनाने के लिए भी आवश्यक हैं।

गाँधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम को नैतिक और आध्यात्मिक ऊँचाई दी। वे मानते थे कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत और सामाजिक स्वास्थ्य से भी जुड़ी हुई है। एक बीमार, अस्वस्थ और मानसिक रूप से असंतुलित समाज कभी भी सच्ची स्वतंत्रता का आनंद नहीं ले सकता। इसीलिए उन्होंने अपने जीवन में योग, उपवास, प्राकृतिक चिकित्सा, संतुलित आहार, अच्छी नींद और आत्मसंयम को उतना ही महत्व दिया जितना कि सत्याग्रह और अहिंसा को।
महात्मा गाँधी का जीवन परिचय और योगदान
बाल्यावस्था और शिक्षा – मोहनदास करमचंद गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ। उनके पिता करमचंद गाँधी एक राजकीय पद पर कार्यरत थे और माता पुतलीबाई अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। बचपन से ही गाँधी जी पर सत्यनिष्ठा, करुणा और सादगी का गहरा प्रभाव पड़ा। लंदन में बैरिस्टर की पढ़ाई के बाद वे दक्षिण अफ्रीका गए। वहीं उन्होंने नस्लीय भेदभाव का सामना किया और यहीं से उनके भीतर सत्याग्रह और अहिंसा की भावना मजबूत हुई। दक्षिण अफ्रीका में ही उन्होंने “सत्याग्रह” को एक हथियार के रूप में प्रयोग करना आरंभ किया।
भारत लौटकर स्वतंत्रता संग्राम
1915 में गाँधी जी भारत लौटे और गोखले के मार्गदर्शन में भारतीय राजनीति में सक्रिय हुए। चंपारण सत्याग्रह, खेड़ा आंदोलन, असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों के माध्यम से उन्होंने करोड़ों भारतीयों को एकजुट किया। गाँधी जी केवल एक राजनेता नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक नेता और जीवन-दर्शन के प्रवर्तक थे। वे मानते थे कि सत्य और अहिंसा की शक्ति के आगे कोई भी सत्ता टिक नहीं सकती। उनका पूरा जीवन तपस्या, सेवा और आत्मसंयम का आदर्श उदाहरण है।
गाँधी जी और प्राकृतिक चिकित्सा
स्वास्थ्य प्रयोग और जीवनशैली – गाँधी जी का मानना था कि “सच्चा धन स्वास्थ्य है, सोने-चाँदी के ढेर नहीं।” उनका स्वास्थ्य दृष्टिकोण अत्यंत सरल, व्यावहारिक और प्राकृतिक था। आहार पर बल – वे कहते थे कि “आहार ही औषधि है।” उपवास का महत्व – उन्होंने उपवास को केवल धार्मिक साधना नहीं, बल्कि शरीर-शुद्धि और मानसिक नियंत्रण का साधन बताया। नींद और विश्राम – उनका मानना था कि संतुलित नींद और नियमित दिनचर्या स्वस्थ जीवन के लिए अत्यावश्यक है। प्रकृति पर विश्वास – वे दवाइयों के अंधाधुंध प्रयोग के विरोधी थे और प्रकृति की चिकित्सा पद्धतियों (जल, वायु, आहार, मिट्टी, सूर्य) को प्राथमिकता देते थे। गाँधी जी ने स्वयं पर अनेक स्वास्थ्य प्रयोग किए। उन्होंने शरीर और मन को अनुशासित करने के लिए उपवास, सादा आहार और प्राकृतिक चिकित्सा अपनाई। उनका विश्वास था कि रोगों का मूल कारण शरीर में संचित विजातीय पदार्थ हैं और उनका निष्कासन ही उपचार है।
प्राकृतिक चिकित्सा के मूलभूत सिद्धांत
गाँधी जी ने प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाकर समाज को इसके महत्व से अवगत कराया। प्राकृतिक चिकित्सा के 12 मूल सिद्धांत इस प्रकार हैं : सभी रोगों का मूल कारण एक है – शरीर में विजातीय पदार्थों का जमाव। रोग का कारण जीवाणु नहीं, विजातीय पदार्थ हैं। तीव्र रोग शत्रु नहीं, शरीर के स्व-उपचार प्रयास हैं। प्रकृति सबसे बड़ी चिकित्सक है। रोग की नहीं, रोगी की चिकित्सा होती है। रोग निदान सरल है। जीर्ण रोग भी प्राकृतिक चिकित्सा से ठीक होते हैं। दबे हुए रोग भी बाहर आकर समाप्त होते हैं। चारों स्तरों (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक) पर उपचार। सम्पूर्ण शरीर की चिकित्सा। आहार ही औषधि है। राम नाम और प्रार्थना भी महान चिकित्सा है। गाँधी जी ने अपने आश्रमों में प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र चलाए और स्वयं इस पर प्रयोग कर लोगों को प्रेरित किया।
योग और गाँधी जी का जीवन
गाँधी जी का पूरा जीवन एक प्रकार से योग का ही उदाहरण है। योग केवल आसन और प्राणायाम नहीं है, बल्कि सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और संतोष जैसे यम-नियमों का पालन भी है। सत्य और अहिंसा – योग का आधार । ब्रह्मचर्य – ऊर्जा और आत्मबल का स्रोत। संतुलित आहार – योगिक स्वास्थ्य का नियम। प्रार्थना और ध्यान – मानसिक शांति और आत्मबल।सेवा और करुणा – योग का सामाजिक पक्ष। गाँधी जी मानते थे कि योग का अर्थ है आत्मसंयम। आत्मसंयम ही व्यक्ति को सच्चे स्वास्थ्य, सच्ची आज़ादी और सच्चे सुख की ओर ले जाता है।
त्याग, प्रेम और करुणा का स्वास्थ्य पर प्रभाव
आज विज्ञान भी मानता है कि नकारात्मक भावनाएँ रोगों को जन्म देती हैं, जबकि प्रेम, करुणा, क्षमा और त्याग जैसी भावनाएँ मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को मजबूत करती हैं। गाँधी जी का जीवन इसी का उदाहरण है। उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी दूसरों के प्रति करुणा और क्षमा का भाव बनाए रखा। उनका विश्वास था कि “दूसरों के लिए जीना ही सच्चा धर्म है।” यही भावना मानसिक शांति और आत्मिक संतोष का स्रोत है।
आधुनिक संदर्भ में गाँधी जी का स्वास्थ्य-दर्शन
आज के समय में जब जीवनशैली रोग – जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, अवसाद, तनाव आदि बढ़ रहे हैं, गाँधी जी के स्वास्थ्य सिद्धांत और भी प्रासंगिक हो गए हैं। संतुलित आहार – मोटापा और पाचन रोगों से बचाव। नियमित योग और प्राणायाम – तनाव, हृदय रोग, श्वसन रोगों से बचाव। प्राकृतिक चिकित्सा – दवाइयों पर निर्भरता कम करना। उपवास और संयम – शरीर की शुद्धि और ऊर्जा का संरक्षण। सत्य और अहिंसा का पालन – मानसिक शांति और सामाजिक सौहार्द्र।
गाँधी जी के प्रेरणादायक उद्धरण – सच्चा धन स्वास्थ्य है, सोने-चाँदी के ढेर नहीं। प्रकृति से प्रेम करना और सरल जीवन जीना ही स्वास्थ्य का रहस्य है। जब तक आदमी अपने शरीर का मालिक नहीं बनता, तब तक वह आत्मा का मालिक नहीं बन सकता। राम नाम सबसे बड़ी प्राकृतिक चिकित्सा है।
गाँधी जी का संदेश और हमारी जिम्मेदारी
गाँधी जी ने हमें केवल स्वतंत्र भारत ही नहीं दिया, बल्कि एक स्वस्थ, संतुलित और करुणामय जीवन जीने की राह भी दिखाई। उन्होंने योग, उपवास, प्राकृतिक चिकित्सा, संयम और सेवा को अपने जीवन में अपनाकर यह सिद्ध किया कि सच्चा स्वास्थ्य शरीर, मन और आत्मा – तीनों का संतुलन है।
आज आवश्यकता है कि हम गांधी जी के बताए मार्ग पर चलें – योग और प्राकृतिक चिकित्सा को जीवन में अपनाएँ, आहार, नींद और संयम पर ध्यान दें, प्रेम, करुणा और सत्य को जीवन का आधार बनाएँ, और समाज को स्वस्थ बनाने में अपनी भूमिका निभाएँ। यही गाँधी जयंती का सच्चा संदेश है।
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