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67वीं शलाका जनजातीय चित्र प्रदर्शनी 30 तक

भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय द्वारा प्रदेश के जनजातीय चित्रकारों को चित्र प्रदर्शनी और चित्रों की बिक्री के लिये सार्थक मंच उपलब्ध कराने की दृष्टि से प्रतिमाह ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ में किसी एक जनजातीय चित्रकार की प्रदर्शनी सह विक्रय का संयोजन शलाका नाम से किया जाता है। इसी क्रम में 3 नवंबर, 2025 से भील जनजातीय चित्रकार बसंती ताहेड़ के चित्रों की प्रदर्शनी सह-विक्रय का संयोजन किया गया है। 67वीं शलाका चित्र प्रदर्शनी 30 नवंबर, 2025 (मंगलवार से रविवार) तक निरंतर रहेगी।

युवा भील चित्रकार श्रीमती बसंती ताहेड़ का जन्म जनजातीय बहुल जिले आलीराजपुर के ग्राम जोबट में वर्ष 1990 में हुआ। आपके पिता श्री रतनसिंह मेढ़ा खेती-किसानी करते हैं। आप कुल ग्यारह भाई-बहन हैं। जंगल-पहाड़ों से घिरे ग्रामीण वातावरण और प्रकृति के सान्निध्य में आपका बचपन गुजरा। गाँव में कोई स्कूल आसपास न होने और परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से आप शिक्षा से वंचित रहीं। आपका विवाह अपने ही समुदाय के श्री बब्बू ताहेड़ से वर्ष 2016 में हुआ। विवाह के उपरांत आप अपनी सास श्रीमती लाड़ो बाई जो भीली चित्रकला की अत्यन्त सम्मानित एवं सुपरिचित कलाकार हैं, उनके चित्रकला कार्यों में सहयोग करने लगीं। उन्हीं के सान्निध्य और सहयोग से आपने पारम्परिक भीली चित्रकला की बारीकियों को सीखा-समझा और अपनी स्वतंत्र अंकनविधि विकसित की।

वर्तमान में आप भोपाल में निवासरत हैं। आपकी दो संतानें हैं, वे भी आपके कलाकर्म में सहायता करती हैं। आपने विभिन्न शहरों में आयोजित कुछेक संयुक्त चित्रकला प्रदर्शनियों में भाग लिया है। आपके चित्रों में पशु-पक्षी और प्रकृति विशेष तौर पर द्रष्टव्य होते हैं। आप अपनी सफलता का सम्पूर्ण श्रेय अपनी सास श्रीमती लाड़ो बाई को देती हैं, जिनकी सतत प्रेरणा और मार्गदर्शन ने आपकी चित्रकला को सुघड़ बनाया।

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