मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय की स्थापना का ग्यारहवां वर्षगाँठ समारोह का समापन….

भोपाल। जनजातीय जीवन, देशज ज्ञान परम्परा और सौन्दर्यबोध एकाग्र मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय की स्थापना के ग्यारहवें वर्षगाँठ समारोह ’महुआ महोत्सव’ के पांचवे और समापन दिवस 10 जून, 2024 को कार्यक्रम का शुभारंभ एडीजी, जेल, श्री अखेतो सेमा, निदेशक, जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे द्वारा कलाकारों के स्वागत से किया।
इसके बाद महोत्सव में मणिपुर राज्य की नृत्य-गायन की प्रस्तुतियाँ हुई, जिसमें श्री नामीराकपम टिकेन एवं साथी, मणिपुर द्वारा मणिपुर लोक संगीत, थांग-टा, लाई हरोबा, ढोल ढोलक चोलम, पुंग चोलम, बसंत रास की प्रस्तुति दी गई।
लाई हरोबा
लाई हरोबा मणिपुर के मुख्‍य उत्‍सवों में से एक है। इसका शाब्दिक अर्थ है- “देवताओं का आमोद-प्रमोद”। यह मणिपुर के सभी शैली के नृत्‍य रूपों का आधार है। यह नृत्‍य तथा गीत के एक आनुष्ठानिक अर्पण के रूप में प्रस्‍तुत किया जाता है। मायबा और मायबी (पुजारी और पुजारिन) मुख्‍य आनुष्ठानिक होते हैं, जो सृष्टि की रचना की विषय-वस्‍तु को अभिनीत करते हैं।
थांग-टा
थांग-टा दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘थांग’ का शाब्दिक अर्थ है- तलवार और ‘टा’ का अर्थ है – भाला। यह नृत्य मणिपुर की युद्धकला का प्रदर्शन है, जिसमें नर्तक तलवार और भाला लेकर काल्पनिक युद्ध करते हैं। तलवार और भाले के साथ इस युद्ध-नृत्य में मल्लयुद्ध शैली का भी समावेश होता है।
ढोल ढोलक चोलम
होली का त्योहार मणिपुर में याओशांग के नाम से प्रसिद्ध है। यह उत्सव पाँच दिनों तक चलता है और उत्सव के दूसरे दिन मंदिर में पूजा के बाद ढोल ढोलक चोलम नृत्य को बड़े धूमधाम के साथ किया जाता है, जो भक्ति और आनंद को दर्शाता है।
बसंत रास
यह वस्तुतः मणिपुरी श्रीकृष्ण लीला है। चैतन्य के मंगलाचरण से लीला की शुरुआत होती है। इसके बाद लाल अबीर से होली खेली जाती है। लीला में श्रीकृष्ण चंद्रावली की तलाश करते हैं, यह देखकर राधा गुस्सा आता है और फिर श्रीकृष्ण को झुककर राधा से मनुहार करते हुए क्षमा माँगनी पड़ती है।
मेले में पांच राज्यों के पारंपरिक शिल्पियों को आमंत्रित किया गया, जिसमें बाँस, धातु, कपड़ा, ज्वैलरी, खराद, दरी एवं अन्य शिल्प शामिल रहे। वहीं व्यंजन मेले में भी मध्यप्रदेश के साथ ही गुजरात, उड़ीसा, मणिपुर के व्यंजनकारों द्वारा सुस्वादु व्यंजनों का प्रदर्शन सह-विक्रय किया गया। साथ ही महोत्सव में बच्चों के लिये कठपुतली प्रदर्शन भी किया गया, जिसमें 10 जून को सुश्री हेमलता जिम्बो एवं साथी, भोपाल द्वारा प्रस्तुति दी गई। कलाकारों ने कठपुतली कला में धागा शैली पर आधारित राजस्थानी संगीत पर नृत्य और कई छोटी-छोटी हास्य कहानियों पर प्रस्तुति दी। वर्षगाँठ समारोह में बच्चों के लिये विशेष रूप से कठपुतली कला प्रदर्शन की प्रस्तुतियाँ संयोजित की गईं।
महुआ महोत्सव अंतर्गत प्रतिदिन शाम 6.30 बजे से मध्यप्रदेश के लोक संगीत के साथ-साथ गुजरात, तेलंगाना, उड़ीसा एवं मणिपुर राज्यों की विभिन्न नृत्य प्रस्तुतियाँ संयोजित की गईं, जिसमें मध्यप्रदेश की भील जनजातीय कलाकार श्री मनीष सिसोदिया एवं साथी-धार द्वारा भगोरिया नृत्य की प्रस्तुति दी गई। झाबुआ, अलीराजपुर और निमाड़ के भीली क्षेत्रों में भगोरिया नृत्य होली पूर्व भगोरिया हाट या अन्य अवसरों पर युवक-युवतियों द्वारा किया जाता है। फागुन के मौसम में भगोरिया हाट युवक-युवतियों के मिलन मेले भी हैं। यहीं से वे एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं, आकर्षित होते हैं और जीवन सूत्र में बँधने के लिये भाग जाते हैं, इसलिये इन हाटों का नाम ‘भगोरिया’ पड़ा। इस नृत्य में विविध पदचाप समूहन पाली, चक्रीपाली तथा पिरामिड नृत्य संरचनाएँ आकर्षण का केन्द्र होती हैं। रंग-बिरंगी वेशभूषा में सजी-धजी युवतियों का श्रृंगार और युवकों का हाथ में तीरकमान लिये नाचना ठेठ पारम्परिक नृत्य अद्भुत अनुभव होता है।

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