यतीन्द्र अत्रे
73 वर्षों में संविधान में बदलाव के साथ देश में भी कई बदलाव हुए, लेकिन गणतंत्र दिवस की प्रातः बेला के दृश्य में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। स्कूल हो या कॉलेज जहां के विद्यार्थी सुबह-सुबह रंग बिरंगी पोशाकों में देश के तिरंगे को वंदन करने जाते हुए दिखाई देते हैं तो कहीं सेना या पुलिस के जवान बड़े जोश में अपने मादरे वतन के प्रतीक तिरंगे को सलामी देने के लिए उत्सुक है। इस मनोरम दृश्य के दौरान तेजी से जनप्रतिनिधियों का काफिला भी गुजरता है उनकी गतिविधियां भी इस दौरान ही संचालित होती रहती हैं। सब कुछ वैसा ही होता है जैसा कि बड़े बजुर्गों के अनुसार 26 जनवरी 1950 को हुआ था। इतिहास में हम झांक कर देखें तो इस तिथि के पूर्व 24 जनवरी 1950 को सरदार वल्लभ भाई पटेल सहित 284 संसद सदस्यों ने संविधान के अंतिम प्रारूप पर हस्ताक्षर कर अपने देश को संवैधानिक रूप से समृद्ध करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया था,फिर 26 जनवरी 1950 को पूरे देश मे यह संविधान लागू हो गया। तभी से प्रतिवर्ष हम इस दिन को महान बनाने हेतु हर संभव प्रयास करते रहे हैं। कहा जाता है कि शुभ दिनों से हमारे यहां अच्छे कार्यों को पूर्ण करने के लिए संकल्प लेने की परंपरा रही है। समाचार पत्रों में प्रकाशित एक खबर के अनुसार जगदगुरू रामभद्राचार्य महाराज ने भोपाल के भेल दशहरा मैदान में चल रही कथा के पहले ही दिवस एक अनूठा संकल्प लिया, जिसमें उन्होंने कहा – मेरी अगली कथा यहां तब होगी जब भोपाल का नाम भोजपाल होगा। मध्यप्रदेश सरकार ने होशंगाबाद का नया नाम ‘नर्मदा पुरम देकर अपना संकल्प पूरा किया, वहीं इस्लामनगर को अपना वास्तविक नाम जगदीशपुर मिलने से वहां के रहवासी उल्लासित हैं, क्योंकि उनका मानना है कि हमारा संकल्प पूरा हुआ।समाचारों के ही अनुसार पिछले दिनों प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना के अंतर्गत प्रदेश की सबसे बड़ी रसोई का शुभारंभ हुआ,जहां 1 घंटे में मशीन से 20 हजार रोटियां बनेगी जिससे 50 हजार बच्चों को मिड डे मील के अंतर्गत शारीरिक ऊर्जा प्राप्त होगी। अब हमारे अंदर एक सामान्य विचार जागृत होना स्वाभाविक होगा कि, यह सब तो सरकार के कार्य हैं यहां हमारा महत्व कहां है ? लेकिन गणतंत्र दिवस है जनाब… हमें इस दिन को सैर सपाटा के साथ या पार्क में बिताना भी तो उचित नहीं होगा… तो फिर क्या करें ?
आइये हम भी इस दिन को कुछ इस तरह यादगार बना लें…
आज के दिन या आने वाली छुट्टियों में हम ओल्ड एज होम में निवास कर रहे वरिष्ठ जनों के साथ कुछ समय बिताकर उनकी खुशी का कारण बन सकते हैं, उनमें से कई वरिष्ठ जन ऐसे होंगे जो स्वतंत्रता आंदोलन के साक्षी रहे होंगे। यह उनके लिए एक सम्मान होगा। उन शहीदों के परिवारों से मिल सकते हैं जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए हैं, इस बहाने आपमें अपने देश को एक सच्ची सलामी देने का भाव जागृत होगा। 15 अगस्त और 26 जनवरी ऐसे पवित्र दिवस हैं जब अनेक सामाजिक संस्थाएं ब्लड डोनेशन कैंप लगाती है। यदि आप युवा हैं, स्वस्थ हैं तब इन कैंप में अवश्य सम्मिलित हों। किसी की जान बचाना, किसी के उपचार में सहयोगी होना इससे बड़ी देश सेवा और कोई नहीं हो सकती है। गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होना, तिरंगे को सलामी देना मात्र इस भाव से इतिश्री नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री एवं सेनाध्यक्ष जवानों के साथ समय बिता कर निरंतर उनको प्रोत्साहन देते रहते हैं। संभवतः हमारे क्षेत्र में रह रहे भूतपूर्व सैनिकों एवं उनके परिवार के साथ हम खुशियां बांटकर उनसे उनके देश प्रेम के किस्से तो सुन ही सकते हैं। ऐसे अनेक कार्य होंगे जिनको करने से हमें आत्म संतुष्टि मिलेगी। सम्भवतः एक सामान्यजन महापुरुष तब बनता होगा जब वह संकल्प लिए किसी कार्य को पूर्ण करता है। गणतंत्र यानी कि जनता का तंत्र। जब तंत्र हमारा है तब संकल्प हमारा क्यों ना हो ।
जय हिन्द, जय भारत।
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