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साहित्यिक प्रतिस्पर्धा और व्यापार से दरकिनार होती संवेदनाओं और विचारों को दर्शाता नाटक “लेखक बनाने वाले”

भोपाल। वनमाली कथा समय समारोह में शाम के सत्र में रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के द्वितीय वर्ष के छात्रों ने संतोष चौबे की कहानी “लेखक बनाने वाले” की प्रस्तुति दी। इस कहानी का निर्देशन डॉ. चैतन्य आठले ने किया। इस दौरान राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के पूर्व निदेशक श्री देवेन्द्र राज अंकुर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

कहानी का सार

इसमें साहित्यिक व्यापार पर तीखा कटाक्ष किया गया है जो वर्तमान समय में प्रासंगिक है। वर्तमान समय में साहित्यिक प्रतिस्पर्धा और व्यापारिक साहित्य लेखन ने संवेदना एवं विचारों को दरकिनार कर दिया है। कहानी का नायक मनमोहन लेखक बनने की आकांक्षा मन में रखता है। एक दिन समाचार पत्र में लेखक बनाओं केन्द्र का विज्ञापन देखता है और वहां चल देता है। परंतु वहां उसको एक अलग ही दुनिया के दर्शन होते है। जो तकनीक के माध्यम से कम्प्यूटर द्वारा कहानी लिखना सीखाते है। वह व्यापारिक साहित्य के जाल में फंसकर लेखन के लिए प्रेरित होता है। परंतु जल्द ही वह स्वयं को परेशानी में पाता है और इस जंजाल से निकलने का रास्ता खोजता है। तब उसे सुकांत नाम का एक लेखक मिलता है और वह उसे ऐसे प्रपंच से दूर रहकर एक लेखक की नजर से दुनिया देखना सीखाता है। वह बताता है कि लेखन तो विचार, भावनाओं और मौलिक रचनात्मकता से आता है मशीनों से नहीं।

पात्र परिचय

मंच पर

मनमोहन  –    प्रकाश कुमार

सुकांत –       शिवम शर्मा

मुखर्जी   –     कंचन बिस्वास

स्मिता     –    नेहा यादव

काउंटर नंबर 10 –  अर्चना

काउंटर नंबर  12 –  नेहा

सूद साहब   –   अमरेश कुमार

नरेश तेज दौड़नकर – विजय जांगीड़

चाय वाला   – राम प्रताप

गार्ड 1 –  विशाल भाटी

गार्ड 2 – अनुराग तिवारी

कोरस – अनुराग, विशाल, राम प्रताप, साहिल

मंच परे

संगीत – मॉरिस लाज़रस

वेशभूषा – सोनू साहा

प्रकाश – डॉ. चैतन्य आठले

मंच निर्माण – शिवम,कंचन बिस्वास

सनिर्देशन – मॉरिस लाज़रस

मंच प्रबंधन – प्रशांत सोनी

प्रस्तुति प्रबंधन – विक्रांत भट्ट

निर्देशन – डॉ. चैतन्य आठले

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