यतीन्द्र अत्रे
भोपाल। उजले पक्ष से सरोकार रखना तो अच्छी बात है लेकिन किसी उजले पक्ष तक पहुंचने के संघर्ष की कहानी को जानना भी कभी-कभी प्रत्येक व्यक्ति के लिए जरूरी हो जाता है,संभव हो यह दूसरों के लिए प्रेरक बन जाए। लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि आज पर्दे के पीछे का सच कोई भी नहीं जानना चाहता है ।
विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च को भोपाल के रंग कर्मियों के बीच शुभ कामनाओं और बधाई को आदान-प्रदान करने का क्रम चल रहा था । अगले दिन की संध्या यानी की 28 मार्च को शहर के ही एक रंगकर्मी एक कलाकार के संघर्ष की यात्रा और उसके पीछे छुपी सच्चाई को दर्शकों से प्रत्यक्ष करने का प्रयास करते हैं।
लेकिन वहां एक दूसरी सच्चाई देखने को मिलती है । रंगप्रेमियों से हमेशा गुलजार रहने वाला यह शहीद भवन उस दिन ऐसा प्रतीत हुआ मानों जैसे चमचमाती दुनिया में रहने के आदि लोगों को प्रस्तुत होने वाली एक कलाकार की सच्ची कहानी से कोई लेना देना नहीं था । पर शो मस्ट गो आन की तर्ज पर हर दशा में प्रस्तुति को आरंभ होना ही था, सो वह आरंभ हुई…एक अच्छी बात यह देखने मिली की वहां वरिष्ठ पत्रकार, कलासमीक्षक श्री गिरजा शंकर, भारत भवन के कलाकार राजाराम पाटीदार मंचित हो रही प्रस्तुति के आकलन के लिए उपस्थित थे,साथ ही भवंस भारती स्कूल की प्राचार्य श्रीमती रीता राउत,रंगकर्मी बिशना उपस्थित दर्शकों के साथ कलाकारों को प्रोत्साहित कर रही थी। यह आंखों देखा हाल है शुक्रवार को शहीद भवन में प्रस्तुत हो रहे नाटक फ्लाप शो का जिसमें एक कलाकार की संघर्ष यात्रा को संस्मरण के रूप में दिखाया गया ।
रंगकर्मी एवं लोकगायक प्रवीण चौबे द्वारा लिखित, निर्देशित एवं एकल अभिनय के रूप में प्रस्तुत नाटक ‘फ्लाप शो’ में प्रवीण ने मंच पर दिखाई अपनी रंग यात्रा के माध्यम से एक कलाकार की रंग यात्रा को दर्शकों से प्रत्यक्ष कराया। कहानी का मजबूत पक्ष यह था कि- एक कलाकार को स्थापित होने में किन बाधाओं, विपदाओं से संघर्ष करना होता है । जैसे आग में तपने के बाद लोहार लोहे को पीट-पीट कर एक सुंदर आकृति में परिवर्तित करता है वैसे ही एक कलाकार तमाम परेशानियों के बावजूद अपनी जिद पर पड़े रहते हुए उसे जो चाहिए उस लक्ष्य को पाने का प्रयास करता है । एक दिन ऐसा आता है जब वह अपने सपनों को तो जीता है लेकिन अन्य कईं चरित्रों के माध्यम से, जिन्हें मंच पर जीवंत करता है । इसी उधेड़बुन में वह दर्शकों का मनोरंजन करते हुए अपने यथार्थ जीवन से दूर होता चला जाता है। नाट्य कला में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त प्रवीण चौबे रंगमंच के अनुभव के साथ संगीत में भी दक्ष होने का प्रमाण मंच पर स्पष्ट देते हैं, जिसके द्वारा वे एकल प्रस्तुति में भी दर्शकों को अंत तक बांधे रखते हैं। प्रवीण ने नाटक में रंगमंच के प्रति अपनी सक्रियता, अपने बाबूजी की कविता एवं दूरदर्शन के बहुत चर्चित सीरियल ‘रामायण’ के कुछ दृश्य को दशकों से प्रत्यक्ष कराते हुए उन्हें दूरदर्शन के उस काल की याद ताजा कराई जब वही छोटे पर्दे का एकमात्र माध्यम हुआ करता था । एक शहीद के अभिनय के दौरान मंच पर क्रांतिकारी लक्ष्मी प्रसाद पासी की फांसी के पूर्व उनके द्वारा दिए राष्ट्र के नाम संदेश की पंक्तियां भी वे दर्शकों को सुनाते हैं । साथ ही अपने बाबूजी गुरुजनों एवं ईस्ट मित्रों से मिले प्रत्यक्ष एवं परोक्ष ज्ञान एवं सहयोग के प्रति कृतज्ञता भी अर्पित करते हैं ।
नाटक में धनु लाल सिंह की प्रकाश परिकल्पना और संचालन दृश्य को उभारते है वहीं मॉरिस लाजरस और संदीप शर्मा के पार्श्व स्वर कहानी को समझने में सहायक होते हैं । सूत्रधार के रूप में कहानी को पिरोने में रंगकर्मी प्रयाग साहूगुणी नजर आए। संगीत संचालन अरुण भट्ट का था तो मंच से परे व्यवस्थाओं में शीतल चौबे के साथ विवेक बावसकर रश्मि जॉन, मयंक, कृष्णलाल विश्वकर्मा, कमलेश वर्मा, निधि बर्मन, सहयोगी बने। नाट्य समारोह में पूर्व रंग के तहत दी गई प्रस्तुति में विकास सिरमोलिया ने दर्शकों का मन मोह लिया था । संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली के सौजन्य से होने वाले इस नाट्यमंचन आयोजक संस्था लोक गुंजन नाट्य संस्था थी ।
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