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रॉग नंबर कॉल ने बचाया पति पत्नी का रिश्ता

कोलकाता। “मैथ के फार्मूलों से मोहब्बत के सवाल हल करोंगे तो आंसर निगेटिव ही आयेगा।” कल्पना की यह बात आखिरकार मानव को समझ में आती है और सत्या के साथ उसका टूटने की कगार पर पहुंच चुका रिश्ता बच जाता है। 

दिल को गहराई से छूने वाला यह संवाद था 21 मई को यहां बानी निकेतन हॉल में आयोजित थिएटर कार्निवल में अनुकृति कानपुर द्वारा प्रस्तुत नाटक रॉग नंबर का।

पाली भूपिंदर सिंह के  लिखे नाटक का निर्देशन डा. ओमेन्द्र कुमार ने किया। नाटक में व्हील चेयर पर अपनी जिंदगी गुजार रहे मानव (दीपक राज राही) के दोनों पैर एक कार एक्सीडेंट में बेकार हो चुके हैं। हालांकि उसकी पत्नी सत्या (दीपिका सिंह) उसका बहुत ख्याल रखती है लेकिन मानव सत्या पर शक करता है। उसे लगता है कि उसके दोस्त संभव के साथ सत्या का अफेयर चल रहा है। इस बीच मानव के पास एक कॉल आती है, जो कि रॉग नंबर है। कॉल करने वाली खूबसूरत कल्पना (संध्या सिंह) अपने नीरस जीवन में खुशियों के कुछ पल तलाश रही है। बूढ़े अमीर की पत्नी कल्पना दिन भर की बोरियत से बचने के लिए एक काल्पनिक प्रेमी आकाश का नंबर तलाश रही है मगर कॉल लगती है मानव को। 

संभव (नरेन्द्र सिंह) की मां का निधन होने पर सत्या शोक व्यक्त करने उसके घर जाती है। मानव को पता चलता है तो उसके दिमाग में चल रही उथल-पुथल बढ़ जाती है। वह सत्या को फोन पर कहता है कि तुम्हें अपने आशिक की मां का मरना याद है मेरा पैदा होना नहीं। याद है तुम्हें आज मेरा जन्मदिन है। 

कल्पना की कॉल आती है तो मानव उसे सत्या की बेवफाई के बारे में बताता है। कल्पना कहती हैं कि मैथ के फार्मूलों से मोहब्बत के सवाल हल करोंगे तो आंसर निगेटिव ही आयेगा।

वह मानव को समझाती है कि पत्नी पर बेवजह शक करना ठीक नहीं। मानव कल्पना को बताता है कि आज मेरा बर्थडे है, सत्या ने केक मंगवाया है और मैंने जहर, जो केक पर छिड़क दिया है। कल्पना मानव को खुद को कॉल करने की सलाह देती है। खुद को कॉल यानी मानव की प्रति मानव (अंतरात्मा) से बातचीत होती है। 

प्रति मानव भी मानव को समझाता है “सवाल करो तो ज्यादा से ज्यादा जवाब ही मिलते हैं, मोहब्बत नहीं मिलती। तुम्हारा सवाल है कि सत्या तुम्हें इतना प्यार क्यों करती है? अगर कोई किसी से इतना प्यार नहीं कर सकता मानव तो प्यार का इतना दिखावा भी नहीं कर सकता। 

एक बार फिर कल्पना की कॉल आती है, उसके सकारात्मक नजरिये और बेबाक बातों से अब तक मानव कशमकश के बीच शायद किसी फैसले तक पहुंच चुका है। वह सत्या को रि डायल करने की इच्छा जताता है। सत्या घर लौटती है तो मानव केक काटने की तैयारी कर रहा है। रिश्तों के बीच जमी बर्फ पिघल रही है। मानव सत्या से कहता है “मैं तुम्हारा नाम कल्पना और अपना नाम आकाश रखना चाहता हूं। सत्या हैप्पी बर्थडे आकाश कहते हुए मानव को गुलाब का फूल देती है। मानव मुस्कराते हुए “थैंक्यू कल्पना” बोलते हुए सत्या का हाथ थाम लेता है।

कलाकारों के शानदार अभिनय ने दर्शकों को नाटक से आखिर तक बांधे रखा। नाटक में संगीत विजय भास्कर व प्रकाश परिकल्पना कृष्णा सक्सेना की रही।

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