भोपाल। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग द्वारा कहानी, अफ़साना, लघुकथा और उपन्यास पर आधारित। “अफ़साने का अफ़साना ” का आयोजन दिनांक 16 सितम्बर, 2025 को सायं 5.30 बजे महादेवी वर्मा कक्ष, हिन्दी भवन पॉलिटेक्निक चौराहा, भोपाल में किया गया।
उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कहा कि मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा आज आयोजित एक दिवसीय वैचारिक एवं साहित्यिक संवाद “अफ़साने का अफ़साना” में अफ़साना, उपन्यास और अफ़साँचे की परंपरा, विकास और समकालीन परिदृश्य पर विचार किया जाएगा। चूंकि अफ़साँचा आज के डिजिटल युग में अपनी प्रभावशीलता और संक्षिप्तता के कारण तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है तो अकादमी द्वारा स्कूल, कॉलेज और शोधार्थियों के बीच “अफ़साँचे लिखिए” प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया जिनके विजेताओं को भी पुरस्कृत किया जा रहा है। डॉ नुसरत मेहदी के उद्बोधन के पश्चात अफ़साने का अफ़साना प्रारम्भ हुआ जिसकी अध्यक्षता अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार एवं आलोचक प्रो. शाफ़ेय किदवई-अलीगढ़ ने की। उन्होंने “उर्दू फ़िक्शन में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना” विषय पर वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कि मानव जीवन शैली सांस्कृतिक चेतना से आकार लेती है और कहानियाँ प्राचीन काल से इसको सिंचित करती आ रही हैं। अलिफ़ लैला, पंचतंत्र, हितोपदेश और जातक कथाएँ एवं विभिन्न लोककथाओं से लेकर आज के युग तक का कथा साहित्य, संस्कृति की विविध संभावनाओं को उजागर करके मानव की मानसिक, संवेदनात्मक, सौंदर्यबोध और सांस्कृतिक आकांक्षाओं को पूरा करता है। संस्कृति, सहिष्णुता, परंपराओं और रीति-रिवाजों के प्रति सम्मान, तथा विश्वासों के स्तर पर भिन्नता के बावजूद एकता में अनेकता का पाठ पढ़ाती है, और कहानियों में इसे पात्रों के माध्यम से एक मानवीय अनुभव के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। प्रौद्योगिकी के इर्द-गिर्द घूमने वाली दुनिया में सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने की अत्यंत आवश्यकता है। मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी ने इस दिशा में एक स्वागतयोग्य पहल की है और समकालीन कथा साहित्य और उसकी समझ के लिए एक नया विमर्श स्थापित किया है। टी.एस. इलियट ने कहा था कि सांस्कृतिक चेतना के प्रसार के लिए एक ऐसे समाज की आवश्यकता होती है जहाँ के लोग न तो पूरी तरह एक-दूसरे में विलीन हो गए हों और न ही एक-दूसरे से पूरी तरह भिन्न हों। इस परिभाषा पर हमारा देश पूरी तरह खरा उतरता है। मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात साहित्यकार एवं कहानीकार श्री संतोष चौबे ने “राम कुमार के जीवन का एक दिन” के शीर्षक से एक कहानी प्रस्तुत की जो एक राजनीतिज्ञ के कार्यकर्ता के एक दिन की कहानी थी जिसमें यांत्रिकता आ जाती है यहां तक कि उसके प्रेम में भी यांत्रिकता आ जाती है। इस कहानी का सार ये था कि हमें जीवन को अलग तरह से देखना चाहिए।
प्रख्यात फिक्शन निगार दीपक बुदकी-नोएडा ने अफ़साँचों पर वक्तव्य प्रस्तुत किया एवं अफ़साँचों का पाठ भी किया। उन्होंने अफ़साँचों पर वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि अफ़सांचा जीवन की किसी अत्यंत संक्षिप्त घटना का प्रतिबिंब होता है। पाठक स्वयं ही कहानी के पृष्ठभूमि का अनुमान लगाता है। इसमें न तो कथानक के काल और स्थान के विस्तार की गुंजाइश होती है, न चरित्र के विकास की, और न ही दृश्य-चित्रण की। संक्षिप्तता अफसांचे की आत्मा है। समझदार पाठक का मन स्वयं ही कहानी के क्षैतिज विस्तार, लंबवत गहराई और अनकहे अंत का अनुमान लगा लेता है। कहानी में उत्सुकता और अप्रत्याशित अंत का होना आवश्यक है।
सुल्ताना हिजाब-भोपाल ने अपनी कहानी “प्यासी धरती” का पाठ किया एवं नफ़ीसा सुल्ताना अना’-भोपाल ने अफ़साँचों का पाठ किया जिनके शीर्षक थे, “खुद्दारी”, बहाव, चार्म एवं अफ़्सुर्दूगी” । इस अवसर पर लघुकथा एवं कहानी प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत भी किया गया एवं लघुकथा पुरस्कृत लेखकों को लघुकथा प्रस्तुत करने का अवसर भी दिया गया।
कार्यक्रम का संचालन रुशदा जमील द्वारा किया गया ।
कार्यक्रम के अंत में डॉ नुसरत मेहदी ने सभी अतिथियों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
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