भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, स्कोप ग्लोबल स्किल यूनिवर्सिटी भोपाल एवं राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगीत सेमिनार का सफल समापन संपन्न हुआ। नई शिक्षा नीति 2020 तथा भारतीय ज्ञान परंपरा के अंतर्गत संगीत में नवाचार की संभावनाएं विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी में आज के मुख्य वक्ता श्री प्रेमचंद होम्बल, डॉ.शोभा चौधरी,श्रीमती श्रीमती दीपा मिश्रा, सुश्री उल्लास तैलंग एवं अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी भोपाल के पूर्व निर्देशक एवं श्री राहुल रस्तोगी बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे।
आज के प्रथम सत्र में वक्ताओं में श्री प्रेमचंद होम्बल ने नाट्यशास्त्र के अध्यायों का संक्षिप्त विश्लेषण कर आंगिक अभिनय पर विस्तार से अपनी बात रखी साथ ही डॉ.शोभा चौधरी ने संगीत में परंपरागत एवं प्रचलित बंदिशों के सौंदर्य शास्त्र के गूढ़ रहस्यों को अपने प्रदर्शनात्मक व्याख्यान के माध्यम से सरल कर समझाया। इसके पश्चात डॉ.स्मिता सहस्त्रबुद्धे ने कलाओं की शिक्षागत नीति पर अपने विचार व्यक्त करते हुए नई शिक्षा नीति के कुछ तकनीकी पहलुओं के महत्व बताते हुए उसके क्रियान्वयन की सार्थकता पर मंच से शिक्षकों एवं शोधार्थियों विचार मांगे।
आज के दूसरे स्ट्रीम श्रीमती दीपा मिश्रा ने अपने उद्बोधन में कहा कि रबींद्रनाथ के संगीत में गीतों की सुसंगति ने अमूर्त को मूर्त किया है। जीवन की विविध रूप-छटाओं की बहुआयामी अभिव्यक्ति ने उनके संगीत को ऊंचाई प्रदान की है। संगीत का ऐसा मानवीयकरण हम विश्व में कहीं ओर नहीं देखते. साहित्य और संगीत के इस अनोखे मिलन ने रबींद्रनाथ को पूरी दुनिया में सबसे अलग स्थान प्रदान किया है।
संस्कृति विभाग के उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत एवं कला अकादमी के पूर्व उपनिदेशक राहुल रस्तोगी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमें अपने मूल्यों, संस्कृति और परंपराओं की निरंतर साधना करते रहना चाहिए। हमें लोक और शास्त्र की परंपरा को साथ लेकर चलना चाहिए। शब्द की यह यात्रा बहुत गहरी और लंबी है। इसे बिसराकर हम कहीं नहीं पहुंच सकते हैं। बहुत लंबी साधना के बाद शास्त्र की परंपरा और लोक की परंपरा हमें प्राप्त हुई हैं। अपने मूल रूप में इसका ज्ञान पहले शब्द थे। इसलिए हमारे यहा ज्ञान का अर्थ होता है दृष्टि। इसीलिए हमारे यहां ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले को दृष्टा कहा जाता है, लिखने वाला या लेखक नहीं कहा जाता। देखने वाला दृष्टा कहा जाता है।
अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी भोपाल के पूर्व निर्देशक उल्लास तैलंग ने अपने उद्बोधन में बताया कि भारतीय संगीत की परंपरा व प्रयोग पर दृष्टि डालें तो इसकी विशिष्टता ही इसकी प्रयोग धर्मिता है। सृजनशीलता ही इसके सौन्दर्य का आधार है। प्रत्येक कलाकार ने कला को जिस रूप में देखा, कल्पना ने कला आकाश में वैसी ही उड़ान भरी और सुन्दर व्यक्तिगत रूप में ‘रचना’ का जन्म हुआ। वही रचना जो रची गई थी बरसों बरस उसने हर मंच पर हर कलाकार के द्वारा नया रूप पाया है।
संगोष्ठी के समापन समारोह में शोधपत्र प्रस्तुत करने वाले शोधार्थियों को एवं संगीत प्रस्तुत करने वाले कलाकारों को डॉ.स्मिता सहस्त्रबुद्धे कुलपति राजा मान सिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय,ग्वालियर द्वारा प्रमाणपत्र वितरित किये गए।
कार्यक्रम का संचालन सुश्री विशाखा राजुरकर द्वारा किया गया। इस दौरान रबिन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय की प्रतिकुलपति श्रीमती संगीत जौहरी,राजा मानसिंह तोमर विश्वविद्यालय की कुलपति स्मिता सहस्त्रबुद्धे, स्कोप ग्लोबल स्किल्स विश्वविद्यालय,भोपाल के मानविकी एवं उदार कला संकाय की अधिष्ठाता श्रीमती टीना तिवारी,मानविकी एवं उदार कला संकाय रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय,की अधिष्ठाता रुचि मिश्रा तिवारी, विभागाध्यक्ष डॉ. हर्षा शर्मा, सह प्राध्यापक डॉ. शैलेन्द्र सिंह, रबिन्द्र नाट्य विद्यालय के निदेशक श्री मनोज नायर, सहायक प्राध्यापक श्री चैतन्य आठले प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
Leave a Reply